जाने क्यों सब उल्टा- पुल्टा लगता है ,
कोई और भी बसता है,
औरों के जख्मों को सीना होता है ,
तभी तो हमें मयकदों में
पीना होता है ,
मयकदों में शराब रोज़ ही गिरती है,
पर पैमानों से तो कभी कभार ही छलकती है .
जाने क्यों सब उल्टा लगता है ,
हममे शायद कोई और भी .....
सूनसान जहां है सारा ,
हर कोई ,
किस्मत का है मारा....
और
ये वेदांश जाने किस -किस से हारा..
कहते हैं ये दुनिया गोल है ,
कैसा ये सिस्टम ? जिसमे इतने होल हैं ,
बैठोगे ,सोचोगे तो जानोगे ..
क्यों?
ये सब उल्टा लगता है..
और हममे भी कोई और बसता है ,
दिल की म्यान में दिमाग के खंज़र रखे है ,
और दिमाग की
ढाल में सैकड़ो पैबंद लगे हैं .....
किसी ने सीने में पत्थर रखे हैं ,तो किसी ने
पत्थर में सीना मारा ..तभी तो .
आदम से सीखा हमने अश्कों को बहाना ,
जिस्म के सांचे में लहू जम गया है, और
आज एक और कवि मर गया है,....
इसीलिए तो सब उल्टा -पुल्टा लगता है ,और
हममे कोई और भी बसता है........................
वेदांश
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