बड़ा हल्ला है महिला आरक्षण का पर आपको भी सोनिया , शीला , सुषमा से आगे कुछ दिखता है क्या ? केम्ब्रिज में पढ़े साम्यवादियो में वृंदा तो खुद सर्वहारा लगती है । जया पराजित नज़र आरही है । उमा , विजयाराजे पता नहीं कहाँ खो गई है ? माया तो अपनी माया में ही मस्त है , उनकी अकेली पार्टी ऐसी है जिसमे कोई महिला शाखा नाम को भी नहीं है । कोई भला परिवार जो आज की राजनीति से दूर है अपनी बहु-बेटिओं को इस व्यवसाय में भेजने को उत्सुक नज़र नहीं आता तभी तो बिना आरक्षण के विश्वविद्यालय में लड़कियों की भागीदारी ५२ प्रतिशत तक पहुँच गई और संसद और विधान सभाओं में महिलाओं की भागीदारी २० प्रतिशत तक नहीं पहुँच पाई । शिक्षा में लड़कियों ने दिलचस्पी ली तो सरकार के सर्व शिक्षा अभियान से आगे नज़र आई और इसी कारण परिजनों ने भी पूरा सहयोग दिया । यदि बेहतर माहोल होता तो महिलाऐं भी दिलचस्पी दिखाती और परिवार में कोई अपनी बेटी या बहु को विधायक या सांसद बनाने के बारे में सोचता । जबतक हमारी सामाजिक संस्कृति नहीं बदलती ये सब ढकोसलों से ज्यादा नज़र नहीं आता । अभी तो हाल ये है की महानगरों की लोकल बसों या ट्रेनों में आरक्षित सीटों तक पर बेठे इक्का-दुक्का भले-मानस ही अपने आप सीट छोड़ते है। जब सोनिया के नाम पर भी अडंगा लगता है तो दिखने वाले कारण और होते है और असली कुछ और । सबको लगता एक और इंदिरा की कल्पना से डर । अहम् मुद्दा विदेशी मूल हो ही नहीं सकता क्योंकि भारतीय परम्परानुसार सरनेम बदलकर गाँधी होजाने के बाद वे भारतीय संस्कार में संस्कारित होचुकी है जबकि उनके उलट भारतीय होकर भी ये संस्कार कई जगह नज़र नहीं आता ।
1 comment:
dekhna hee nahi chahte.narayan narayan
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