राजेन्द्र जोशी
देहरादून । भाई साहब नहीं लगेगा क्योंकि यह बीएसएलएल है। राजधानी देहरादून में आजकल यह जुमला काफी तेजी से भारत संचार निगम के उपभोक्ताओं में प्रचलित हो रहा है। देश तथा प्रदेश में कार्यरत तमाम निजी संचार कम्पनियों को संचार क्षेत्र में जोडने वाली इस कम्पनी का तो राजधानी देहरादून में जब बुरा हाल है तो पर्वतीय प्रदेश के अन्य दूर दराज के हिस्सों में इस सेवा का क्या हाल होगा यह सब आप सोच सकते हैं। बात चाहे बीएसएनएल के ब्राडबैंड सेवा की हो या मोबाईल सेवा की अथवा घरेलू टेलिफोन की प्रदेशभर में सभी का बुरा हाल है। उपभोक्ताओं की माने तो वे इनके दफ्तरों के चक्कर लगा-लगा कर थक चुके हैं। जहां तक उपभोक्ता शिकायत केन्द्रों की बात की जाय तो अधिकांश उपभोक्ताओं का कहना है कि या तो उनसे वहां बैठे कर्मचारी सीधे मुंह बात नहीं करते या फिर केवल शिकायत दर्ज तक अपने कर्तव्य की इतिश्री कर देते हैं। अधिकारियों का तो इतना बुरा हाल है कि वे उपभोक्ताओं की शिकायतों का निस्तारण करना तो दूर सरकारी फोन को उठाने तक की जहमत नहीं उठाते। भला ऐसे में उपभोक्ताओं की शिकायत भगवान भरोसे ही समझी जा सकती है।
राजधानी के कई ऐसे व्यापारी तथा इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़े कार्यालय हैं जिन्होने भारत संचार निगम लिमिटेड से व्यवसायिक प्लान के तहत ब्राडबैंड सेंवा ली हुई है लेकिन महीने में केवल यह सेवा दस दिन ही चल पाती है। ऐसे में उन्हे निजी ब्राडबैंड सेवा प्रदाता कम्पनियों से भी सेवा लेनी पड़ती है। संचार निगम के इस रवैये से उपभोक्ताओं की जेबों पर दोहरा डाका पड़ रहा है और वे बीएसएनएल के हाथों लूटने को मजबूर हैं। इतना ही नहीं सेवा न दे पाने के बाद भी उपभोक्ताओं को मोटी रकमों के बिल भेजे जा रहे हैं जिससे उपभोक्ताओं में रोष व्याप्त है।
राजधानी में संचार सेवा से जुड़े जानकारों का कहना है कि करोड़ों रूपये के उपकरणों की खरीद के बाद भी बीएसएनएल का यह रवैया देश हित में नहीं जबकि बीएसएनएल से संचार सेवा ले रहे निजी आपरेटरों की सेवाऐं गुणात्मक हैं इतना ही नहीं वे उपभोक्ता हितों की रक्षा करने में भी बीएसएनएल से कहीं आगे हैं। यही क ारण है कि आज दिन ब दिन लोग बीएसएनएल की सेवाओं को लेने से कतराने लगे हैं। बीएसएनएल के अधिकारियों से जब यह पूछा गया कि पिछले साल की तुलना में इस साल कितने टेलिफोन तथा मोबाईल व ब्राडबैंड कनक्सन कटवाये गये अथवा नये जोड़े गये तो एजीएम प्लानिंग ने बताया कि वह कोई जानकारी सीधे नहीं दे सकते बल्कि सूचना के अधिकार से यह जानकारी आप ले सकते हैं। जबकि चर्चाओं के अनुसार भारत संचार निगम की सेवाओं को लेने वालों की संख्या में दिनों दिन कमी दर्ज की जा रही है। जिससे निगम के आला अधिकारी परेशान हैं। इनका मानना है कि हम तभी निजी कम्पनियों से प्रतियोगिता कर सकते हैं जब हम उपभोक्ताओं को उनसे बेहतर सेवा दें। कई अधिकारियों ने दबी जुबान से यह स्वीकार किया कि उन्हे कर्मचारियों का सहयोग नहीं मिल पा रहा है। जबकि ठीक ऐसे ही दबी जुबान से कर्मचारियों का कहना है कि बड़े अधिकारियों का कहीं न कहीं निजी कम्पनियों से सांठ-गांठ है जिसके चलते निगम तरक्की नहीं कर पा रहा है।
5.8.10
भाई साहब नहीं लगेगा क्योंकि यह बीएसएलएल है
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2 comments:
पहले इसकी सेवा अच्छी थी .. आजकल सचमुच समस्या चल रही है !!
इसको कहते हैं छा जाना।
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