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19.8.10

आज बहुत दिनों बाद कुछ लिख रही हूँ... शायद ये मेरे मन कि ही आवाज़ है.... जो कुछ इतने दिनों में महसूस किया जाना वो सब आप लोगों के साथ बतना चाहती हूँ....

घरोंदे कि नीव तक हिल गयी.....


एक हँसती खेलती दुनियाँ किसी कि आज बदल दी गयी....
रस्मों रिवाज़ो के बंधन में जकड़ ली गयी...
तिनको से शुरू किया था....ख्वाबो का घरोंदा बुनना...
लेकिन चंद रिवाजों के बिच वो खुद गुम हो कर रह गयी.....

दिन बदला, राते बदली और उनके साथ पूरी तस्वीर भी बदल गयी....
हुई थी नुमाइश उसके सपनो की...लुट ली गयी दुनियाँ किसी के अरमानो की....
उसने देखा जब अपनों के उदास चेहरों को....तो हर सांस उसकी घुटन में बदल गयी....
आज पहली बार सोचा एक मासूम ने कि क्यों उसे ये जन्म मिला....
और अगर जन्म दिया भी तो क्यों उसकी खुशियाँ किसी और के हवाले कर दी गयी...

उसका यह दोष कम था कि वो एक लड़की है....
लेकिन कहर बरपा उसके सीने पर जब उसने अपने माँ बाप के चेहरों को हर घड़ी......
अपनी आँखों से उदास होता देखा....
ऐसा क्यों हुआ ?
जब थी कोई कमी उसमे.... आखिर क्यों
समाज के नियमो में वह पिस गयी....

रस्मों के बिच वो इस कदर फंसी कि
उसके घरोंदे की नीव तक हिल गयी.....

1 comment:

पी.एस .भाकुनी said...

रस्मों के बिच वो इस कदर फंसी कि
उसके घरोंदे की नीव तक हिल गयी.....
sunder prastuti...