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19.2.11

दश महाविद्या "शक्ति उपासना"……(राज शिवम)


मै कौन हूँ इसे खोजना पड़ेगा,जानना पड़ेगा,घोर कर्म कितने जप तप करना पड़ेगा,तभी पता चलेगा कि मै कौन हूँ?सृष्टि के सारे जीव महामाया के माया से मोह के बंधन में है।इसलिए हमे समझना पड़ेगा।परिवार,शिक्षा,विवाह,नौकरी से इतना व्यस्त जीवन है आज का कि लगता है क्यों सोचूँ,क्या करुँ?तो आप बताएँ कब सोचेंगे,कभी समय मिलने वाला नहीं है।कई जन्मों से तो यही करते रहे हो,महावीर के साथ चालीस हजार शिष्य चलते थे।
उस समय इतनी संख्या में लोग दीक्षीत हो रहे थे,उससे कई सौ गुणा आज लोग दीक्षा ले रहे है।परंतु बात जस का तस।कारण आपका शरीर,आपका मन बीमार है।बंध गये,परंतु सिर्फ बात से,प्रवचन से समझ गये कि मै कौन हूँ?पाँच छह वर्ष पहले एक व्यक्ति मेरे सम्पर्क में आये,बहुत सेवा भाव था।मधुर वचन ऐसा कि कोई  प्रसन्न हो जाये।परंतु वे मुझे जँचे नहीं,मैने अपने पास आने पर रोक लगा दिया।वे भागे एक संत के पास वैष्णव दीक्षा लिएँ,कुछ सेवा कर उन्हे भी मोह लिएँ।परंतु संत के समाधि हो जाने के बाद उनका कहना है,मै भगवान के समकक्ष हो गया हूँ।अब बताओ ये दुर्गति है उस व्यक्ति का कि वो जिस स्तर पर पाँच वर्ष पहले था,उससे ज्यादा निचे गिर गया।कारण दीक्षा कही भी ले बदलना तो आपको पड़ेगा ही,सोचना तो आपको पड़ेगा ही।सभी को कभी ना कभी एक क्षण के लिए भी अपनी आत्मतत्व की याद आती है,भले वे उसे समझ नहीं पाते।सभी अतृप्त है किसी  किसी कारण से,सभी की वेदना,बुद्धि,तर्क,अहंकार,पद,यश पाने के लिए अतृप्त रहते है।ये मिल भी जाये तो भी ये तृप्त नहीं हो पाते।कोई भी उच्च कोटि का साधक थोड़ा विक्षिप्त हो जाये तो ज्यादा से ज्यादा चाहते है कि लोगो का कल्याण हो जाये।विवेकानन्द जब अपनी शिष्या सिस्टर निवेदीता को लेकर कोलकता आये,तो कम विरोध नहीं हुआ।लोग गलत इल्जाम लगाने लगे।उस समय उन्हे इतनी वेदना हुई थी कि वो कह उठे शायद लोगो को सही रास्ता पर लाना बड़ी मुश्किल है।लोग कुछ ही क्षण में सिद्ध भक्त मान लेते है,परंतु हमेशा इस ताक में रहते है कि उसका एक भी अवगुण पता चले तो लतार दे।इंसान में कमोबेश,गुण अवगुण मौजूद रहता है।उस निर्गुण निराकार जो सभी का परमात्मा,स्वामी है।वही हमारा कल्याण करने हेतु कई रुप में आया।एक दो रुप से कार्य हो जाता,तो इतने रुप बनाने की जरुरत क्या थी।इसके कारण काफी रहस्यपूर्ण है।दक्ष प्रजापति की पुत्री सती जो शिव पत्नि थी,उन्होनें एक बार शिव को निमंत्रण नहीं दिये जाने पर अपने क्रोध में आकर शिव से बोली की मुझे अपने पिता के यहा जाना है,कि उन्होनें ऐसा क्यों किया।शिव का अपमान सती को मर्माहत कर दिया था।शिव इस पक्ष में नहीं थे,कि बिना निमंत्रण सती जाये।इस प्रसंग को टालने के लिए सती के कहने पर भी शिव उठकर चल दिये।तभी सती ने शिव को रोकने के लिए अपना दश स्वरुप प्रकट किया।प्रथम सती ने काली का भयंकर रुप प्रकट किया।उस रुप को देख कर शिव भी भाग पड़े,तो सती ने अपना दश रुप दशों दिशाओं में प्रकट कर दिया।अब शिव जाये तो कहा जाये,शिव रुक गये और सती को जाने की आज्ञा दी।सती जानती थी,कि ये शरीर छोड़ना है,उसके पूर्व दश रुप प्रकट कर दी,जो दश महाविद्या के नाम से प्रसिद्ध है।ये सिद्ध विद्यायें है,इन्हे ब्रह्म विद्या भी कहा जाता है।इन सभी की उपासना कलियुग में विशेष फलप्रद है,परंतु बिना गुरु मार्ग के यह साधना फलिभूत नहीं है।ये भक्तों को स्वरुप प्रदान करती है,आत्म दर्शन कराती है,और परमात्मा के सामने लाकर स्वयं एक का  रहस्य से परिचित कराती है।इनका दश नाम जिसमें प्रथम .काली,.तारा,.श्री महा त्रिपुरसुंदरी षोडशी,.भुवनेश्वरी,.भैरवी,.छिन्नमस्ता,.धूमावती,.बगलामुखी,.मातंगी,१०.कमला।
राम कृष्ण ने काली के बाद त्रिपुर सुंदरी की साधना किये थे,ये दश रुप का क्या महत्व है इस पर अपनी एक विशेष संक्षिप्त अनुभूति जो लिख रहा हूँ।ये दश महाविद्या की लीला में नवदुर्गा भी समाहित है।वही ये आदिशक्ति कुमारी है।दुर्गति से जीव की जो रक्षा कर वर देने वाली है,जो त्रिशक्ति है,त्रिगुणात्मका है,वही दुर्गा के रुप में सभी देव ,मानव का कल्याण करती है।

काली:-
काल के भय को दुर कर जो जीव की रक्षा करती है वही काली है।पूर्व जनित पापों का क्षय कर जीव की रक्षा करती है वही काली है।पूर्व जनित पापों का क्षय कर जीव में पवित्रता,आत्मबल प्रदान करती है,और उस लायक जीव को सक्षम बना देती है,कि साधक उनके और विशेष रुप,लीला,रहस्य को जान सके।श्री विष्णू की योगनिद्रा,शिव की शक्ति,साधक को भोग,मोक्ष प्रदान करती है।श्री यही है,प्रथमा आद्या शक्ति यही है।सृष्टि के पूर्व और अंत में यही विराजमान है।ये शिवा नाम से सम्बोधित,श्यामा श्री कृष्ण वर्ण वाली ये शिव शक्ति दोनों है।उनसे अलग होकर शिव निचे पड़ गये,यही इनकी मूल प्रकृति है।

इनके रहस्य बहुत है,ये जीव को उस लायक बनाती है,दृष्टि प्रदान करती है,तभी साधक आगे बढ़ इनके और रुपों की साधना कर सकता है।इनकी इच्छा,इनकी कृपा के बिना कोई साधक दशमहाविद्या की साधना नहीं कर सकता।ये आगे चलती है,इनके पीछे शिव चलते है।ये महाकाल शिव की भी रक्षिता है,इसलिए महाविद्याओं की साधना में बिना शिव कृपा साधना हो नहीं पाती।बिना शिव कृपा साधना खंडित हो जाता है।

क्रमशः अगले विद्याओं पर लेख जारी रहेगा.........

1 comment:

Dr Om Prakash Pandey said...

bahut achchha laga .