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11.8.11

देश को आजाद करने के लिए स्वस्थ होना आवश्यक है


चमत्कारी जड़ी-बूटी : हिन्दी = गिलोय, संस्कृत = गुडूची , वज्ञानिक =Tinospora cordifolia


अंग्रेजी में कोई नाम नहीं , क्योकि बेचारों के पैदा ही नहीं होती . 

गिलोय गाथा 

                   


प्रिय ब्लॉग मित्रों , 


देश खतरे में है , 


इस वक्त देश के अलावा कोई और बात करना देशद्रोह के सामान है .  


फिर भी , कहा जाता है , जान है तो जहान है ,  


प्रभु श्री राम ने भी मानस के उत्तरकांड में कहा है , 


बड़े भाग मानुस तन पावा ,  


और आखिर हम , देश को बड़ा किसलिए कहते हैं !  


क्योकि , देश है तो हमारे चारों पुरुषार्थ , धर्म अर्थ , काम और मोक्ष पुरे हो जाते हैं .  


इसलिए , जरा सी बात आत्मा को रखने वाले इस शरीर कि भी कर लें :
 
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अभी कल ही अचानक , श्री अनुराग द्विवेदी जी , एडवोकेट , रायबरेली , से फोन आया. 


उन्होंने, मेरा ब्लॉग दुधिया घास के बारे में कहीं देख लिया , और मेरी  इस विषय में रुची देख कर गिलोय के बारे में बताया . 


उनके अनुसार तो यह जड़ी (वनस्पति) जादू कि सी चीज है ,  पुरे शारीर के जाने अनजाने रोगों के लिए राम बाण कि तरह है ,   उन्होंने अपने पिताजी को इसका सेवन कराया, व् कई और लोगों को भी , क्योंकि वह आयुर्वेद भी बखूबी जानते हैं .  यदि आप उनसे कुछ जानना चाहें तो उनका फोन न. 94528 01885 है . 


(यह न. उनसे बिना पूछे दे रहा हूँ , क्योंकि , उनसे बात चीत के बाद मेरा यह मानना है कि उन जैसे लोग , किसी का भलाई का काम करके खुश ही होंगे)


यदि में केवल इस औषधि का नाम ही बता दूँ , तो मेरे प्रबुद्ध ब्लॉग मित्र , इतनी आसानी से इसकी शान में लाखों पेज , जो इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं वो पढ़ सकते हैं . 


इसका नाम है :  हिन्दी = गिलोय,   संस्कृत = गुडूची , वज्ञानिक =Tinospora cordifolia है , 


चित्र ऊपर उपलब्ध करा दिए हैं , 


मगर कुछ तो लाभ लिखने ही चाहिए , सो हाजिर हैं . 
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गिलोय (अंग्रेज़ी:टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया) की एक बहुवर्षिय लता होती है। इसके पत्ते पान के पत्ते कि तरह होते हैं। 


रंग: गिलोय हरे रंग की होती है।
स्वाद: गिलोय खाने में तीखी होती है।
स्वरूप: गिलोय एक प्रकार की बेल होती है जो बहुत लम्बी होती है। इसके पत्ते पान के पत्तों के समान होते हैं। इसके फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लगते हैं। इसके फल मटर के दाने के जैसे होते हैं।
प्रकृति: गिलोय की प्रकृति गर्म होती है।
तुलना: गिलोय की तुलना सत गिलोय से की जा सकती है।
मात्रा: गिलोय की 20 ग्राम मात्रा में सेवन कर सकते हैं।
गुण: गिलोय पुरानी पैत्तिक और रक्तविकार वाले बुखारों का ठीक कर सकती है। यह खांसी, पीलिया, उल्टी और बेहोशीपन को दूर करने के लिए लाभकारी है। यह कफ को छांटता है। धातु को पुष्ट करता है। भूख को खोलता है। वीर्य को पैदा करता है तथा उसे गाढा करता है, यह मल का अवरोध करती है तथा दिल को बलवान बनाती है।
गिलोय का उपयोग:
  • घी के साथ गिलोया का सेवन करने से वात रोग नष्ट होता है।
  • गुड़ के साथ गिलोय का सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
  • खाण्ड के साथ गिलोया का सेवन करने से पित्त दूर होती है।
  • शहद के साथ गिलोय का सेवन करने से कफ की शिकायत दूर होती है।
  • रेण्डी के तेल के साथ गिलोय का उपयोग करने से गैस दूर होती है।
  • सोंठ के साथ गिलोय का उपयोग करने से आमवात (गठिया) रोग ठीक होता है।
          आयुर्वेद के अनुसार गिलोय बुखार को दूर करने की सबसे अच्छी औषधि मानी जाती है। यह सभी प्रकार के बुखार जैसे टायफाइड (मियादी बुखार), मलेरिया, मंद ज्वर तथा जीर्ण ज्वर (पुराने बुखार) आदि के लिए बहुत ही उत्तम औषधि है। इससे गर्मी शांत करने की शक्ति होती है।
          गिलोय गुण में हल्की, चिकनी, प्रकृति में गर्म, पकने पर मीठी, स्वाद में तीखी, कड़वी, खाने में स्वादिष्ट, भारी, शक्ति तथा भूख को बढ़ाने वाली, वात-पित्त और कफ को नष्ट करने वाली, खून को साफ करने वाली, धातु को बढ़ाने वाली, प्यास, जलन, ज्वर, वमन, पेचिश, खांसी, बवासीर, गठिया, पथरी, प्रमेह, नेत्र, केश और चर्म रोग, अम्लपित्त, पेट के रोग, मूत्रावरोध (पेशाब का रुकना), यकृतरोग, मधुमेह, कृमि और क्षय (टी.बी.) रोग आदि को ठीक करने में लाभकारी है। 
         यूनानी पद्धति के अनुसार गिलोय की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है। यह तीखा होने के कारण से पेट के कीड़ों को मारता है। यह सभी प्रकार के बुखार में बहुत ही लाभदायक है।
वैज्ञानिको के अनुसार :
           गिलोय की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसमें गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा अल्कोहल ग्लिस्टेराल, बर्बेरिन एल्केलाइड, अनेक प्रकार की वसा अम्ल एवं उड़नशील तेल पाये जाते हैं। पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फास्फोरस और तने में स्टार्च भी मिलता है। कई प्रकार के परीक्षणों से ज्ञात हुआ की वायरस पर गिलोय का प्राणघातक असर होता है। इसमें सोडियम सेलिसिलेट होने के कारण से अधिक मात्रा में दर्द निवारक गुण पाये जाते हैं। यह क्षय रोग के जीवाणुओं की वृद्धि को रोकती है। यह इन्सुलिन की उत्पत्ति को बढ़ाकर ग्लूकोज का पाचन करना तथा रोग के संक्रमणों को रोकने का कार्य करती है।

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यह हर आयुर्वेद औषधि की दूकान पर उपलब्ध है , मुझे तो उन्होंने केवल २ से ५ ग्राम लेना काफी है ऐसा बताया था . 

   
   


अगर आप बाबा रामदेव को पसंद न भी करते हों. तो भी इस औषधि को अवश्य लें , क्योंकि उनका कोई औषधि पर पेटेंट नहीं है . 


यदि आपको कोई लाभ व् हानि हो तो कृपया टिपण्णी में अवश्य लिख दें . जिससे औरों को भी लाभ हो जाये .   या वकील साहिब से परामर्श कर लें. 
  असली डाक्टर : (क्या यह कहीं से डाक्टर लगता है !)

1 comment:

https://worldisahome.blogspot.com said...

1 COMMENTS:

जाट देवता (संदीप पवाँर) said...
रामदेव भी पसंद व ये गिलोये की बेल भी पसंद,
और आपने विस्तार से बताया वो सबसे ज्यादा काम का है।
अगले सप्ताह किसी से मिलने का संयोग है,
कौन है?

AUG 11, 2011 11:07:00 PM