सांप्रदायिक हिंसा कानून को
यदि जैसे है वैसे ही स्वीकार भी कर लिया जाय तो भी क्या इस बात का अंदेशा नहीं बनता कि उसका दुरूपयोग हो सकता है ? बल्कि उसका दुरूपयोग ही होगा ? कश्मीर में मुसलमानों के साथ और अन्य स्थानों पर हिन्दुओं के साथ । जैसा कि विनायक सेन एंड कम्पनी देश द्रोह कानून के साथ आरोप लगाते हैं । फिर पीड़ित चाहे मुसलमान हो या हिन्दू सभ्य समाज को इस से चिंतित , पीड़ित तो होना ही चाहिए । या नहीं ? अथवा वे इस बात से आश्वस्त हैं कि यह बिल्कुल ठीक ठीक लागू होगा ? नहीं , तो फिर ऐसा क्यों हो कि इसका विरोध भाजपा तो करे पर सेकुलर समाज खुश हो ? क्या भाजपा हिन्दुओं की ठेकेदार है जैसा कि वह समझती है ? यह एक अलग बिंदु है कि मुसलमानों के साथ साथ हिदुओं की भी ज़िम्मेदारी यदि सेकुलर समाज नहीं समझेगा तो फिर उनकी धर्म निरपेक्षता का भविष्य भारत में बहुत अंधकारमय है ,क्योंकि हिन्दू भी भारत की एक जायज़ आबादी है ।
और यह तो समझना ही होगा कि सख्त कानूनों की परिणति संदेहास्पद है । ###
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डायरी :-
१ - दूसरी आज़ादी नहीं , दूसरी तानाशाही के प्रेरक , नेता हैं अन्ना हजारे ।
२ - कल किसी प्रतिकूल निर्णय पर यह अपने समर्थकों से जजों का भी घेराव करने को कहेंगे ।
३ - आश्चर्य नहीं , भूख हड़ताल और भीड़ भौकाल के बल यदि वह तीनो सेनाओं की कमान अपने हाथ में मांगना चाहें !
४ - क्या आप किसी को किंचित भी नहीं लगता कि कुछ लोग देश के सर पर तानाशाही की भूमिका में आने के लिए तैयार हो रहे हैं ?
५ - या क्या इतना भी नहीं कि अन्ना को अपनी गरिमा के अनुसार विनम्र होना , व्यवहार करना चाहिए ? पर वह तो उलटे उच्छ्रुन्खालता ,उजड्डता , अराजकता की भाषा बोल रहे हैं । ab bhala इस marg पर चलने के लिए युवकों को आकर्षित करने में कहाँ देर लगती है ? और वही हो रहा है । उनके साथी एन जी ओ मस्तिष्कों को यह गुर अच्छी तरह पाता है , वे उसका इस्तेमाल कर रहे हैं । वर्ना अन्ना एक बार तो अपनी भीड़ से यह कसम खिला ही सकते थे कि वे अपने जीवन में कभी घूस , अनैतिक धन नहीं लेंगे ! तब भीड़ भाग न जाती ? काम या ज्यादा विनोबा ने ज़मींदारों से कुछ ज़मीनें लीं , जय प्रकाश ने डाकुओं से आत्म समर्पण कराया । अन्ना ने क्या किया ? कैसे करते ? उनके पास कोई रचनात्मक इरादा ही नहीं है । नहीं है तो नहीं है , पर उन्हें हम कोई गांधी कहने का हिमालयी भूल क्यों करें ?और यदि कुछ अशुभ aahat सुन पा रहे हों तो इनका , इस तरह की प्रवृत्ति का बहिष्कार , तिरस्कार क्यों न करे ? मैं अपने युग को यह चेतावनी देना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ कि ऐसी तानाशाही से , महा सुराज की अपेक्षा अपनी बिगड़ी हुयी , भ्रष्ट , स्वराज बहुत बेहतर है / होगा । ###
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13.9.11
सांप्रदायिक हिंसा कानून
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5 comments:
अन्ना क्या कर लेगा, जिस दिन ये सरकार चाहेगी उस दिन इसका हाल भी रामदेव जैसा होगा।
जनता का क्या? कल की कौन याद रखता है?
ऐसा प्रतीत होता है कि अन्ना जैसे अनेक अन्नाओं को लाकेतंत्र पच नहीं रहा, माना कि उसमें खामियां हैं, इसका मतलब ये नहीं कि उसे उखाड ही फैंका जाए, क्या वे भारत में तानाशाही लाना चाहते हैं
अन्ना के बारे में कहने का साहस दिखाने के लिए धन्यवाद,
प्रिय तेज , जाट देवता ।
उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ ।
इसका कोई जवाब जनलोकपाल नहीं है । कृ0 ठंडे मस्तिष्क से विचार करें ,भावाप्लावित न हों ।
I
I am interested . But you will have to edit from my blog - nagriknavneet.blogspot.com
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