* प्रेम बहुत गहरे मन का ठग [फ्राड] है , इसलिए जल्दी पहचान में नहीं आता , जब तक कि आदमी बाह्य जीवन में वास्तव में ठगा नहीं जाता । #
* क्या साहित्य वही है जो लिखा जा रहा है , पुस्तकों में , पत्र - पत्रिकाओं में ? क्या ख़बरें वही हैं जो छप रही हैं अखबारों में ? गालियों , चौबारों , यात्राओं में , ढाबे - ढाबलियों पर , घरों में जो बातें हो रही हैं , साहित्य रचा जा रहा है , ख़बरें बन रही हैं , वे साहित्य नहीं हैं ? #
28.9.11
ठग प्रेम
Labels: Citizens' blog
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment