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24.9.11

मिश्रित

- [कविता ]
* मैं बहुत ही
ख़राब आदमी हूँ
मुझे स्वीकार
* मैं ही तो हूँ
जनता जनार्दन
मैं ही शासक

* अब जग का
आकर्षण समाप्त
बहुत देखा

* आम आदमी
चिंतन विषय मात्र
जीवन उसका
अनुकरणीय । #

- [विचार ]
गाली हमारी भाषा नहीं है , हो ही नहीं सकतीवह भाषा की विकृति हैजिस प्रकार वह हमारे मुख से तभी निकलती / उच्चारित होती है जब हम स्वयं विकृत अवस्था में होते हैं , हम स्वाभाविक शांत नहीं होते । #
- पाठकों के पत्र आने लगे हैं कि भूख हड़ताल को आत्म हत्या का प्रयास [Attempt to suicide]मानकर तदनुसार कार्यवाही की जायदेखिये शायद कुछ लोग मेरी बात तक ही जायं कि Right to die of Hunger strike होना चाहिए ! #
4 - अगर हिन्दुस्तान अपनी आज़ादी संभाल पाया तो इसका दोष निश्चय ही जनता पर डालने का कुत्सित प्रयास किया जायगा , कुछ कुछ है भी इसलिए कुछ माना भी जायगालेकिन यह सत्य नहीं होगाजनता से ज्यादा ज़िम्मेदारी नेताओं की है और वे ही सच्चे दोषी हैंक्योंकि इस जन प्रतिनिधित्व प्रणाली में जनता ने नेताओं को पूरा अधिकार , सुविधा और संसाधन सौपा हुआ हैइसलिए यदि आगे कोई कोर्ट बैठे तो नेताओं को ही फाँसी के फंदे पर चढ़ाया जाए
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