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30.9.11

एक बात

* - मुसलमानों के साथ रहना , गुज़र -बसर करना एक बात है । यहाँ आप जिन्ना से फर्क हो सकते हैं । लेकिन उनके साथ मिलकर राज्य चलाना संभव नहीं है । यहाँ आपको जिन्ना की बात माननी पड़ेगी । क्योंकि वे हिन्दू सांस्कृतिक राज्य नहीं मानेंगे , यह तो अलग बात है ,वे लोकतंत्र के वैश्विक नियमों को भी नहीं चलने देंगे । राज्य के रूप में तो उन्हें सिर्फ इस्लाम चाहिए । यह दिक्कत है जो भारतीय राज्य के समक्ष दरपेश है । और इससे भी विकत बात यह है कि भारतीय राजनीति और बढ़ाकू बुद्धि जीवी इस ज़मीनी सत्य को स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं , इसका निदान क्या ढूंढेंगे !
* इन्हें इस्लाम के अतिरिक्त किसी और कि जय करना मंज़ूर नहीं । अब हिन्दुस्तान तो जैसा सेकुलर है , वह है ही । यदि इसे इस्लामी राज्य घोषित कर दिया जाय तो देखिये इनसे बड़ा देशभक्त कोई क्या होगा !
* सुब्रमणियम स्वामी ने कहा तो है कि जो मुसलमान अपने पूर्व हिन्दुत्त्व को न माने उनसे वोट देने का अधिकार छीन लिया जाना चाहिए ।लेकिन यह कैसे व्यवहारिक होगा ? क्या सभी मुस्लिमों से कोई शपथ पत्र लिया जाना संभव है ? और वे लिख कर दे भी देन तो क्या फर्क पड़ जायगा ? किस पैमाने से नापेंगे उनकी आस्था ? इसकी अपेक्षा तो मेरा ही सुझाव बेहतर है कि पूरा हिन्दुस्तान केवल दलितों को वोट करे । मुसलमान भी सहमत हों और भाजपाई हिन्दू भी । दलित तो सबसे पुराने हिन्दू हैं न स्वामी जी ? फिर क्या दिक्कत है ? मुसलमान वैसे भी छंट जायेंगे । #####

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