नारी -
तुझ से लेकर ,
अनुत्तरित है प्रश्न ?
नहीं ढूढ़ पाया हूँ हल,
कि-
तेरा पूजन ,
अब पंडालो में ,
या -
मंदिरों तक क्यों सिमट गया है ?
इसी आर्यावृत में कभी ,
तुम-
शक्ति और श्रद्धा थी ,
शुचिता और आद्या थी ,
दुर्गा और लक्ष्मी थी .
इसी आर्यावृत में अब ,
तुम-
भोग्या,
काम्या ,
अबला ,
निर्लज्जा बन रही हो .
क्या,
इसे स्वतंत्रता कहें?
इसे प्रगति पथ कहें ?
तुम्हारी -
इस दुर्दशा का जबाबदार कौन ?
तुम खुद,
या
पुरुष समाज !!
No comments:
Post a Comment