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29.9.11


हाय, शहर का जीवन कैसा दुर्गम और दुश्वार है
कदम कदम पे पंगा है,हर शख्स यहां लाचार है
दो पैसे की खातिर बुनते झूठ का तानाबाना सब
नहीं किसी से नाता भइया,सब रिश्ता बाजार है
कुंवर प्रीतम

1 comment:

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण , बधाई

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें