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23.9.11

वो खुशबुएँ और मासूम लड़की-fragrances and that sweet girl

सुबह ८.३० की वो ए सी बस मेरे घर से ऑफिस आने का साधन बनती है रोज ,अनवरत , हमेशा की दिनचर्या है मेरी. उसी बस में बैठकर मैं ऑफिस तक आती हू .वैसे बेठना कहना सही नहीं क्यूंकि आज तक मुझे कभी उस बस में बेठने की जगह नहीं मिली ज्यादातर सफ़र खड़े होकर ही करना पड़ता है  पर में फिर भी खुश रहती हू क्यूंकि कम से कम बेस्ट की बस की तरह भाग दोड़ कर और गंभीर  भीड़ में लोगो से टकराते माफ़ी मागते हुए ,लोगो के टकराने पर भी कुछ ना कह पाने के गम से जूझते  हुए नहीं आना पड़ता .ये एक बस छूटी की मुझे ना जाने कितने पापड़ बेलते हुए भाग दौड़  करते हुए ऑफिस आना पड़ता है...हाँ तो मैं ए सी बस पर थी  आज सुबह मुझे मेरी किस्मत और भगवन के करम से फिर ए सी बस मिल ही गई किस्मत और भगवन का करम इसलिए कह रही हू क्यूंकि में बहुत ही बिखरी बिखरी सी लड़की हू आज भी बचपना है मुझमे जिसमे लोग अलार्म बजने पर खुद से ही कहते है १० मिनिट  और सो जाती हू १० मिनिट  में कोई फर्क नहीं पड़ेगा और ये १० मिनिट का फरक मुझे दौड़ लगाकर लंच तैयार करने और नहाने ,तैयार होने , भागते भागते दूध पीने और जल्दी जल्दी सीढियां उतरने पर मजबूर कर देता है....पर जाने क्यों सब जानते समझते में सुधरती नहीं या शायद सुधरना नहीं चाहती.

कनुप्रिया 

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