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22.10.11

मैं और तुम या हम

मैं और तुम या हम
शब्दों का झंझावत है क्या उलझना
दो जिस्म दो रूह दो जान
पर भाग्य  की लेखनी से बंधे हम तुम

तुम कहते हो :हमारा साथ सात जन्मों का है
मैं कहती हू :ये मेरा सातवा और आपका पहला जन्म है
तुम कहते हो:एसा क्यों कहती हो?मेरा साथ नहीं चाहती?
मैं कहती हू: प्यार के कम होने से डरती हू
तुम कहते हो :कैसा डर?
मैं कहती हू : डर है  आपकी ऊब का
तुम कहते हो : एसा क्यों सोचती हो?
मैं कहती हू : जिसे अगाध प्रेम की कामना हो वो थोड़ी कमी से भी घबरा जाता है
तुम कहते हो: विश्वास नहीं मुझ पर ?
मैं कहती हू :मुझे खुद पर भरोसा नहीं,मेरा मन चंचल है
और तुम:तुम कुछ कहते नहीं बस मुस्कुरा देते हो

मैं और तुम या हम
शब्दों का झंझावत है क्या उलझना

हम तुम आज से नहीं जुड़े
अपनी माँ के गर्भ में आने के साथ ही
तीसरे हफ्ते में जब मेरे हाथों की रेखाएं बनी
मैं तुम्हारे साथ जुड़ गई
किसी ने चुपके से उन रेखाओं में तुम्हारा
नाम लिख दिया
अक्स नहीं दीखता तुम्हारा मेरे हाथों में
तब शायद दीखता होगा
अब तो बस रेखाएं ही रेखाएं है
पूरी कविता पढने के लिए कृपया लिंक पर क्लिक करें
मैं और तुम या हम

1 comment:

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई .