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24.10.11

देशी मिठाईयों पर विदेश चाकलेट का ग्रहण



दीपावली के त्यौहार पर मिठाईयों का अपना अलग महत्व है, देश का सबसे अधिक लोकप्रिय इस पर्व पर दूध से बनने वाले मिष्ठानों का प्रचलन है। भारत के उत्तरी क्षेत्र में खासतौर पर दूध से बर्फी, रसगुल्ले, मिल्क केक, रस मलाई, पेड़ा आदि कई ऐसी मिठाईयां है जिनकी दूध के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती है। हमारे देश में दूध प्रचुर मात्रा में होता है यहि कारण है कि दूध से बनने वाली मिठाईयों के कई प्रकार देखने को मिल जाते है। इनमें से अधिकतर मिठाई दूध को जला कर मावा या खोया से तैयार की जाती है। इन मिठाईयों को हिन्दुस्तान में खासा पसंद किया जाता है। लेकिन इस पसंद पर अब शायद विदेशी चाकलेट कम्पनियों की नजर पड़ गई है। यही कारण है कि दिपावली के आस-पास देश में नकली मावा, नकली मिठाईयों आदि तरह-तरह की खबरें देखने और सुनने को मिलती है। चाकलेट का अस्तित्व सन १६०६ से इटली से आया है। लेकिन दीपावली औऱ उसमें बनने वाली दूध की मिठाई ना जाने कितने समय से चली आ रही है। मैं यह कतई नहीं कहता हूं कि इस दौरान मिठाईयों में मिलावट नहीं होती है लेकिन जिस तरह से मीडिया में लगातार खबरें आ रही है जैसे देश के मध्यम या निम्न वर्गीय हलवाई द्वारा बनाई जा रही मिठाईयां जहर है उसको त्यौहार पर मत खाएं। उनको अकारण ही छापे मारकर उनके माल को नाले और कूड़े में बहाया जा रहा है वो बहुत ही दुःख का कारण है। समाचारों में यह तो बता देते है कि मावा नकली है किन्तु ये नहीं बताया जाता कि आखिर मावे में क्या मिला हुआ है जो शरीर के लिए हानिकारक है, हजारों सालों से मनाई जा रही दीपावली में हमेशा मिठाईयां तैयार होती रही है और लोगों ने जमकर उनका स्वाद लिया है। लेकिन जब से चाकलेट बाजार में आई है देशी मिष्ठानों पर तो जैसे ग्रहण ही लग गया है। आपको बता दे कि चाकलेट भी दूध से तैयार की जाती है क्या कभी किसी सरकारी अधिकारी ने किसी भी निजी कम्पनी के काऱखाने में जाकर ये देखा है कि बाजार में आने वाली चाकलेट की क्या गुणवत्ता है। ये चाकलेट किस दूध अथवा किस कैमिकल से तैयार की जाती है। लेकिन ऐसा नहीं होता क्योंकि सरकार को इससे भारी राजस्व और कुछ छोटे-मोटे अधिकारीयों को महिना मिल जाता है। इसमें सारी गुणवत्ता कम्पनी की चारदीवारी के अंदर बंद होकर रह जाती है। आज हमारे देश में ही नई पीढ़ी के बच्चे देशी मिठाईयों की बजाय चाकलेट की मांग करते है। हलवाईयों की मिठाईयों के मुकाबले चाकलेट काफी दिनों पुरानी होती है।
यानि इससे साफ जाहिर है मोटा मुनाफा कमाने की चक्कर में ये विदेशी चाकलेट कम्पनियां देश में मिठाईयों के खिलाफ कैंपैन चलाकर देश की वास्तविकता त्यौहार की मिठास को खो रही है। ये बेहद ही सोचनीय और दुःखदाई है। हमें और आपको इस पर विचार कर देश की मिठाईयों को लोकप्रिय और प्रचलन में लाना चाहिए।

सूरज सिंह सोलंकी।

2 comments:

yogesh kumar said...

sahi kah rahe hai bhai aj kal market me ji tarah se bidesi chocket me chhaye huye hai usase lagata hai ki desi chije ab musioum merakhi jayegi.

yogesh kumar said...

theek kah rahe hai ji.