शंकर जालान
कोलकाता। कहना गलत नहीं होगा कि महानगर कोलकाता के ज्यादातर धार्मिक स्थलों (मंदिरों, गिरिजाघरों, मस्जिदों व गुरुद्वारों) में अग्निशमन की कोई व्यवस्था नहीं है। शहर के बड़े व प्रसिद्ध मंदिरों में अगर कभी आग लगी तो कितने लोगों की जान जाएगी कहना मुश्किल हैं। बावजूद इसके मंदिर प्रशासन के साथ-साथ मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए जाने वाले लोग चुप्पी साधे हैं। और तो और राज्य सरकार, दमकल विभाग, कोलकाता पुलिस, कोलकाता नगर निगम व कलकत्ता इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन के अधिकारियों का भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है।
यह तो मानी हुई बात है कि मंदिरों में जितनी मात्रा में धूप, कपूर, अगरवत्ती, तेल, धी, धूना व मोमबत्ती का इस्तेमाल होता है उतना किसी बड़े मार्केट या बाजार, अस्पताल या शॉपिंग मॉल, आवासीय या वाणिज्यिक भवन में नहीं होता। फिर भी मार्केट, बाजार, अस्पताल, शॉपिंग मॉल और बड़ी इमारतों की तुलना में अग्निशमन की कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि धूप, कपूर, अगरवत्ती, तेल, धी, धूना व मोमवत्ती का सीधा संबंध आग से है और इस वजह से अगर आग लगती है तो सिवाय नुकसान ने और कुछ नहीं होगा।
हालांकि यह कहना पूरी तरह से ठीक नहीं होगा कि राज्य सरकार अग्निशमन को लेकर पूरी तरह सचेष्ठ है। दमकल विभाग पूरी तरह दुरुस्त है। केवल खामियां मंदिरों में ही है। लेकिन इतना जरूर है कि बड़ी इमारत, अस्पताल व मार्केट में आग लगने के बाद सरकार कुछ हरकत में आत है और कमिटी गठन कर मामले की तहकीकात के साथ-साथ अन्य संबंधित इमारतों, अस्पतालों व मार्केटों का जायजा लेना शुरू करती है। भले ही इन कमिटी की रिपोर्ट पर ईमानदारी से काम न होता हो, लेकिन इतना जरूर है कि कुछ दिनों के लिए ही सही लोग सचेत व जागरूक जरूर होते हैं।
दुख की बात यह है कि बड़ाबाजार के सत्यनारायण पार्क एसी मार्केट, न्यू हावड़ा ब्रिज एप्रोच रोड स्थित नंदराम-काशीराम ब्लॉक मार्केट, हावड़ा के मछली बाजार, पार्क स्ट्रीट के स्टीफन कोर्ट, तिलजला स्थित रबर फैक्ट्री व ढाकुरिया के एएमआरआई (आमरी) अस्पताल में आग लगने के बावजूद शहर के बड़े मंदिरों, गिरिजाघऱों, मस्जिदों व गुरुद्वारों की अग्निशमन व्यवस्था में किसी का ध्यान नहीं गया।
इस बारे में विभिन्न धर्मो के कई लोगों से बातचीत की गई। ज्यादातर लोगों ने माना क मंदिरों, गिरिजाघऱों, मस्जिदों व गुरुद्वारों में आग से रोकथाम क कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। लोगों ने कहा- बाजार, अस्पताल, बड़ी इमारत, शॉपिंग मॉलों की तरह ही धार्मिक स्थलों पर ही पर्याप्त व पुख्ता संख्या में अग्निशमन उपकरणों की जरूरत है। इन लोगों के मुताबिक अगर धार्मिक स्थलों पर आगजनी हुई तो हम हाथ मलते रह जाएंगे।
प्रसिद्ध व प्राचीन शिव मंदिर में जाने वाले एक भक्त ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि वे पिछले पचास सालों से रोजाना भूतनाथ मंदिर आते हैं। उनके मुताबिक आठ-दस पहले तक मंदिर में इतनी भीड़ नहीं होती थी, लेकिन इनदिनों रोजाना हजारों लोग मंदिर आने लगे। उन्होंने बताया कि भूतनाथ मंदिर आने वाले लोग कपूर जलाकर आरती करते हैं। उनके मुताबिक मंदिर परिसर में रोजाना २० से ३० किलो कपूर जलाया जाता है और अग्निशमन उपकरण के नाम पर मंदिर में कुछ नहीं है। इसी तरह कालीघाट, ठनठनिया काली, पुटेकाली, जोड़ासाकू काली मंदिर, विभिन्न शनि मंदिरों समेत शहर के ज्यादातर मंदिरों में अग्निशमन की कोई व्यवस्था नहीं है।
नाखुदा मस्जिद से निकल रहे अकमल खान नामक एक व्यक्ति ने बताया कि मैं मुसलमान हूं और सालों से इबादत के लिए नाखुदा मस्जिद आता हूं। उन्होने बताया कि मौके मिलने खुदा की इच्छा होने पर कभी-कभार शहर के अन्य मस्जिद न मजारो में भी जाना होता है, लेकिन दुख क बात यह है कि कहीं आग से रोकथाम का कोई इंतजाम नहीं है।
गिरिजाघऱ में आस्था रखने वाले जी. थामस और गुरुद्वारा में माथा टेकने वाले बलबीर सिंह भी मानते हैं कि धार्मिक स्थलों पर अग्निशमन नियमों की खुलकर अनदेखी की जाती है। थामस व सिंह ने बताया कि मामला धर्म से जुड़ा है इसलिए कोई खुलकर कुछ नहीं बोलता, लेकिन यह ठीक नहीं है। इनलोगों ने बताया कि मंदिरों, गिरिजाघऱों, मस्जिदों व गुरुद्वारों को भी अग्निशमन कानून के दायरे में लाना चाहिए। ताकि कोई बड़ा हादसा होने से पहले ही धार्मिक स्थलों को आग से रोकथाम पर काबू बनाने के काबिल बनाए जाए।
6.1.12
धार्मिक स्थलों पर अग्निशमन व्यवस्था को लेकर चुप्पी क्यों ?
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