लोकपाल की कहानी: दोस्तों, जैसा कि आप सब जानते हैं, लोकपाल बिल 27/12/11, देर रात मंगलवार को लोकसभा में पारित हो गया था।लोकपाल बिल पर चर्चा के लिए 27,28 और 29 दिसंबर को संसद के शीतकालीन सत्र का विशेष सत्र बुलाया गया था।28 दिसंबर, बुधवार को लोकपाल बिल को राज्यसभा में पेश किया गया जिस पर 28 और 29 तारीख को जोर-शोर से चर्चा हुई।राज्यसभा में इस बिल को लाया गया तो संशोधनों की बाढ़ आ गई।कुल 187 संशोधन पेश किए गए।इन संशोधनों में से कई ऐसे हैं, जिन पर एक नहीं बल्कि कई पार्टियों की राय अलग है।लोकपाल के कुछ प्रावधानों पर कांग्रेस के सहयोगी दल भी उसका साथ छोड़ते दिखाई दिए।कांग्रेस ने बिल में लोकपाल अध्यक्ष और और उसकी आठ सदस्यीय न्यायपीठ में आरक्षण की पूरी व्यवस्था की है।बिल में अल्पसंख्यक पिछड़ों को भी आरक्षण दिया गया है जो कि खासा विवादों में रहा।कांग्रेस ने लोकपाल बिल में कुल 50% या उससे ज्यादा आरक्षण की व्यवस्था की है।बिल में कुछ सुरक्षा शर्तों के साथ प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखा गया है।आंतरिक सुरक्षा, रक्षा नीति, पब्लिक और्डर, अंतरिक्ष नीति, विदेश नीति व परमाणु ऊर्जा जैसे मामलों पर लोकपाल सुनवाई नहीं कर सकता।प्रधानमंत्री के खिलाफ जाँच के लिए लोकपाल बेंच में दो तिहाई सदस्यों की इजाजत जरूरी होगी।पीएम के खिलाफ जाँच की कार्रवाई बंद कमरे में होगी।सांसदों के मामले में कार्रवाई की जानकारी लोकपाल को देना स्पीकर/सभापति के लिए जरूरी नहीं।कांग्रेस ने टीम अन्ना की एक ही माँग मानी है-सी और डी समूह के कर्मचारी लोकपाल के दायरे में रहेंगे।कांग्रेस चाहती है कि उसने लोकपाल के गठन के लिए जो बिल बनाया है, उसे राज्यों के लिए मानना अनिवार्य हो।कांग्रेस ने यह भी कहा है कि सरकार इस मामले में राज्यों की सहमति से ही इस प्रावधान को लागू करेगी।लोकपाल की नियुक्ति के लिए चयन समिति के अध्यक्ष होंगे प्रधानमंत्री।उनके अलावा उसमें लोकसभा स्पीकर, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस या उनका नौमिनी और राष्ट्रपति की ओर से नियुक्त लीगल एक्सपर्ट होगा।सीबीआई पूरी तरह से लोकपाल से बाहर है।लोकपाल किसी भी मामले की जाँच सीबीआई को भेजेगा और सीबीआई जो कि पूरी तरह से सरकार के नियंत्रण में रहकर काम करती है, जाँच करके रिपोर्ट देगी।लोकपाल या लोकपाल के किसी भी सदस्य के खिलाफ अगर संसद के कम से कम 100 सदस्य हस्ताक्षर करके राष्ट्रपति को याचिका देते हैं या फिर किसी नागरिक की याचिका से संतुष्ट होने पर राष्ट्रपति जाँच के लिए मामला सुप्रीम कोर्ट भेजते हैं तो रिपोर्ट आने पर लोकपाल या उसके सदस्य को निलंबित रखा जा सकेगा।
लटक गया लोकपाल बिल: संसद का शीतकालीन सत्र गुरूवार यानि 29 तारीख को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया।सरकार ने राज्यसभा में वोटिंग टालने की योजना के तहत लोकपाल बिल को चयन समिति को सौंपने पर भी विचार किया।चयन समिति का गठन खास मकसद के लिए किया जाता है।रिपोर्ट पेश करने के बाद समिति अपने आप निरस्त हो जाति है।लोकसभा से पास बिल में अगर राज्यसभा में संशोधन होता तो उसे फिर लोकसभा भेजना पड़ता है।अगर राज्यसभा में वोटिंग की स्थिति में सरकार हार जाती तो संयुक्त सत्र का विकल्प खुल जाता।मौजूद स्थिति में लोकसभा के 543 और राज्यसभा के 243 सीटों को मिलाकर 786 होती है जिसमें बहुमत के लिए 393 सांसदों की सहमति जरूरी होगी।राज्यसभा में सरकार अल्पमत में है, इसलिए सरकार के मंत्री समय-समय पर कभी विपक्ष तो कभी अपने ही सहयोगी दलों को मनाने की नाकाम कोशिश करते रहे।
भाजपा ने देश को दिया नववर्ष का तोहफा: लोकपाल बिल की खामियों पर लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज जी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी ने मोर्चा संभाला।सुषमा स्वराज जी ने लोकसभा में आरक्षण का, खासतौर पर धर्म आधारित आरक्षण का खुलकर विरोध किया।उनका कहना है कि संविधान में धर्म आधारित आरक्षण की व्यवस्था नहीं है।उन्होंने सरकार के उस फैसले पर भी विरोध जताया जिसमें कहा गया है कि लोकपाल बिल में आरक्षण 50% या उससे अधिक होगा क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।क्या सरकार भ्रष्टाचार से निपटने के लिए ऐसा लोकपाल बिल लाना चाह रही थी जो कि सुप्रीम कोर्ट में चुनौतीपूर्ण हो?सुषमा स्वराज जी ने सरकार के अनिवार्य लोकायुक्त के फैसले का भी विरोध किया जो कि देश के संघीय ढाँचे पर प्रहार है, राज्यों के अधिकारों पर डकैती है।इस मामले में यूपीए के सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस ने तो भाजपा से भी एक कदम आगे बढ़ते हुए अनिवार्य लोकायुक्त का कड़ा विरोध किया।भाजपा ने लोकपाल के चयन पर भी सवाल उठाए और कहा कि सरकार ने उसे अपने ही हाथों में रखा है।लोकपाल को हटाने की प्रक्रिया पर भी भाजपा ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि इस अधिकार को भी सरकार ने अपने ही हाथों में रखा है जिससे लोकपाल खुद निर्भय होकर कार्य नहीं कर सकेगा।भाजपा सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाने के पक्ष में है।अगर सरकार का ये बेकार लोकपाल बिल पारित नहीं हो सका है तो उसका श्रेय जाता है विपक्ष को।बेशक, विपक्ष ने देशवासियों को नववर्ष के अवसर पर तोहफा दिया है।एक मजबूर लोकपाल पास न होने से देशवासी खुश भी होंगे और एक मजबूत लोकपाल पास न होने से दुखी भी होंगे।
विपक्ष नहीं सरकार है दोषी:सदन में चर्चा के दौरान सरकार कई बार विपक्ष पर आरोप लगाती रही कि अगर लोकपाल बिल पारित नहीं हुआ तो देश विपक्ष को कभी माफ नहीं करेगी।सरकार ने विपक्ष पर यह भी आरोप लगाए कि उसने लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने के लिए लाए गए संविधान संशोधन विधेयक को पारित नहीं होने दिया जबकि उसने स्टैंडिंग कमिटि में समर्थन का वादा किया था।इसमें विपक्ष की कोई गलती नहीं है; सरकार तो खुद ही वोटिंग के दौरान दो-तिहाई बहुमत भी नहीं जुटा पाई।अगर भाजपा ने स्टैंडिंग कमिटि में संविधान संशोधन विधेयक को समर्थन देने का वादा किया भी होगा तो एक सशक्त लोकपाल बिल के लिए न कि इस कमजोर लोकपाल बिल के लिए।जब सरकार ने लोकपाल को कोई पावर ही नहीं दी है तो इसे संवैधानिक दर्जा दिलवा कर ही क्या करेगी?राहुल गाँधी ने लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दिलवाने की बात तो कह दी लेकिन उसके लिए जो सशक्त लोकपाल की जरूरत है उसकी माँग राहुल गाँधी ने कभी नहीं उठाई।दिग्विजय सिंह ने कहा था कि अगर राज्यसभा में भाजपा की वजह से लोकपाल बिल पारित नहीं हुआ तो अन्ना हजारे को भाजपा के सांसदों के घरों के सामने आंदोलन करना चाहिए।अन्ना हजारे और उनकी टीम तो चाहती ही नहीं है कि सरकार का ये बेकामी लोकपाल बिल पास हो, और भाजपा ने तो उनकी इच्छा पूरी कर दी है।सरकार की शुरू से ही एक कमजोर लोकपाल बिल पेश करने की मंशा थी।वह जानती थी कि भाजपा कमजोर लोकपाल बिल पास होने नहीं देगी और इस तरह से सरकार लोकपाल बिल को लटकाने में एक बार फिर सफल हो गई।सरकार कभी चाहती ही नहीं थी कि लोकपाल बिल पास हो और जब विपक्ष ने कमजोर लोकपाल का विरोध करके अपना फर्ज पूरा किया तो सरकार के मंत्री लोकपाल बिल लटकाने का बेबुनियाद आरोप विपक्ष पर लगा रहे हैं।अगर ये कमजोर लोकपाल बिल पारित हो जाता तो देश इस सरकार को कभी माफ नहीं करती।हम देशवासी तो भाजपा के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने एक मजबूर लोकपाल बिल पास होने से बचा लिया और उम्मीद है कि आगे भी सरकार की गलत नीतियों के के खिलाफ डटे रहेंगे।
लोकपाल को बना डाला चुनावी स्टंट: दोस्तों, आप तो जानते ही हैं कि हमारे देश के नेता जात-पात की राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ते।लोकपाल में अल्पसंख्यक आरक्षण को लेकर लालू यादव और मुलायम सिंह यादव ने सरकार का जमकर साथ दिया।उन दोनों ने मिलकर लोकपाल जैसे भ्रष्टाचार निरोधक कानून को भी चुनावी स्टंट ही बना दिया।लगता है लालू यादव जी का बिहार में लगातार दो चुनावी हार से मन नहीं भरा है और उन्होंने मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर अगले चुनाव में भी हारने की पूरी तैयारी कर ली है।इस मामले में सुषमा स्वराज जी ने सराहनीय कदम उठाते हुए इसका जमकर विरोध किया।उन्होंने अल्पसंख्यक राजनीति जैसी गंदी राजनीति को दरकिनार करते हुए खुलकर अल्पसंख्यक आरक्षण का विरोध किया।
नहीं चाहिए कमजोर लोकपाल: सरकार ने जिस तरह से सिविल सोसायटी की माँगों को नजरअंदाज़ करते हुए सीबीआई और पीएम को लोकपाल से बाहर रखा, सरकार ये न समझे कि उसकी जीत हुई है, ये सरकार की हार है।सरकार ने जिस तरह से सीबीआई को लोकपाल से बाहर रखने की वकालत की, यह प्रमाणित करता है कि सरकार में मौजूद कुछ भ्रष्टाचारी सीबीआई पर से सरकार का शिकंजा हटने से कितना डर रहे हैं।सरकार ने पीएम को तो लगभग सभी मामलों में लोकपाल के दायरे से बाहर ही रखा है, नाम के ही प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में है।क्या सरकार ने सिविल सोसायटी और देश की जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिए यह कदम उठाया?सरकार पीएम की लोकपाल के द्वारा जाँच बंद कमरे में क्यों चाहती है?सरकार इतनी बंदिशें क्यों चाहती है?पिछले 44 वर्षों से सरकार ने लोकपाल बिल पारित नहीं किया क्योंकि सरकार में मौजूद भ्रष्टाचारी ऐसा नहीं होने देते, उन्हें पता है कि लोकपाल उनके लिए खतरा है।इस बार उन्होंने जैसे ही सिविल सोसायटी की माँग सुनी होगी(जिसमें सीबीआई को लोकपाल के दायरे में रखा गया है), उन्होंने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया होगा कि सीबीआई को लोकपाल के दायरे में न रखा जाए।सरकार में जो कुछ ईमानदार भी हैं वो भी इन भ्रष्टाचारियों के दबाव में आ जाते हैं क्योंकि उनकी संख्या बेहद कम है या यूँ कहे कि न के बराबर है।जब तक सीबीआई लोकपाल के दायरे में नहीं आएगी, लोकपाल बिल आधा-अधूरा माना जाएगा।आखिर कब तक सीबीआई सरकार के हाथ की कठपुतली बनी रहेगी?सीबीआई को कभी सरकार के चंगुल से छुटकारा मिलेगा या नहीं?सरकार अपना ये कमजोर लोकपाल वापस ले।हमें एक ऐसा लोकपाल नहीं चाहिए जो खुद ही भ्रष्टाचार के द्वारा धराशायी हो जाए।हमें एक ऐसा लोकपाल चाहिए जो भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर कड़ा प्रहार कर सके।
नहीं देखा कभी ऐसा संघर्ष: कांग्रेस की पूजनीय सोनिया गाँधी जी ने कहा था कि वह लोकपाल लाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखेंगी।पहले के जमाने में कोई नेता अगर संघर्ष करते थे तो देशहित में करते थे।पर यह कैसा संघर्ष था लोकपाल लाने का और भ्रष्टाचार मिटाने का?समझ नहीं आया कि सोनिया गाँधी जी का यह संघर्ष लोकपाल के द्वारा भ्रष्टाचार मिटाने के लिए था या भ्रष्टाचार के द्वारा लोकपाल मिटाने के लिए।लोकपाल को लेकर सारी मेहनत, संघर्ष किया अन्ना हजारे और उनकी टीम ने तो फिर अचानक एक और संघर्ष का आगमन कैसे हो गया?इस मामले में प्रधानमंत्री महोदय भी कुछ कम नहीं हैं।उन्होंने आरटीआई लागू करने का पूरा श्रेय खुद को और अपनी सरकार को ही दे दिया, जबकि आरटीआई लाने में सिविल सोसायटी ने वर्षों संघर्ष किया था।
जरूरत है पुराने दिनों को याद करने की: लोकसभा में लालू यादव ने टीम अन्ना का जमकर विरोध किया और सभी सांसदों को चीख-चीख कर संसद की सर्वोच्चता याद दिलाई।उन्होंने कहा कि दो रिटायर्ड अफसर, दो वकील और एक समाज सेवक मिलकर संसद पर अपना फैसला थोपने की कोशिश कर रहे हैं।अगर टीम अन्ना गलत है तो लालू जी कैसे सही हो गए?वो भी तो लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ आंदोलन करते-करते ही इतने बड़े नेता बने हैं।उन्होंने भी तो संसद के ही फैसलों के खिलाफ कई बार आंदोलन में भाग लिया है।क्या इतनी जल्दी वो भूल गए अपने पुराने दिनों को?उस समय भी तो फैसले संसद ही लिया करती थी।तो फिर उस समय वो क्यों संसद के फैसलों के खिलाफ धरना देते थे?क्या उस समय संसद सर्वोच्च नहीं थी या उस समय यह बात उन्हें पता नहीं थी?आज जब वो खुद संसद के अंदर हैं तो उन्हें संसद की सर्वोच्चता याद आ गई।वो कहते हैं कि सड़कों से संसद नहीं चलती।वो शायद भूल रहे हैं कि उन्हीं सड़कों से उन्होंने भी अपनी राजनीतिक जीवन की शुरूआत की थी।क्या उन्हें अपने संघर्ष के दिन याद नहीं?अन्ना हजारे पर राजनीति करने का आरोप लगाते हैं, अन्ना हजारे तो इतने वर्षों से आंदोलन कर रहे हैं लेकिन आज तक राजनीति में नहीं आए पर आप तो आंदोलन करते-करते ही राजनीति में सक्रिय हुए हैं।तो फिर आंदोलन के प्रति आपकी मंशा सही या अन्ना जी की?बेशक, अन्ना जी की।आप आंदोलन करते थे राजनीति में खुद को स्थापित करने के लिए।अन्ना जी आंदोलन करते हैं सिर्फ देशवासियों के हित के लिए।लालू जी टीम अन्ना को कमजोर न समझें; सारे देशवासी उनके साथ हैं।
एक राय: अपने देश में किसी भी मामले में नेताओं की एक राय हो या न हो पर आरक्षण पर सभी एक हो जाते हैं।इस बार भी लोकपाल में अल्पसंख्यक आरक्षण को लेकर भाजपा को छोड़ सभी ने समर्थन किया।जहाँ सीबीआई को लोकपाल के दायरे में रखने की बात आई तो लालू जी और मुलायम सिंह जी ने सबसे पहले इसका विरोध किया।इस मामले में तो विरोध होना ही था, आखिर इन नेताओं के केस जो लटके रहते हैं सीबीआई में।सीबीआई पर जब तक सरकार का नियंत्रण है तब तक तो इनके मामले ठंडे पड़े रहते हैं, पर जैसे ही सीबीआई लोकपाल के दायरे में चली जाएगी तो इन नेताओं की मुश्किलें शुरू हो जाएँगी।
अपना रुख साफ करें लालू:लोकसभा में लालू यादव ने कहा कि वो नहीं चाहते कि लोकपाल के दायरे में पीएम और सीबीआई आए।और बार-बार यह भी कह रहे थे कि वो मजबूत लोकपाल के पक्ष में हैँ।आखिर वो चाहते क्या हैं?सीबीआई और पीएम को बाहर रखकर लोकपाल मजबूत कैसे हो जाएगा?लालू जी ने लोकपाल में सीबीआई का विरोध करके यह तो साबित कर दिया कि वह लोकपाल से कितना डरे हुए हैं और जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिए दिखा रहे हैं कि वो एक मजबूत लोकपाल के पक्ष में हैं।
देश को गुमराह अन्ना नहीं आप कर रहे हैं: लालू यादव ने अन्ना जी पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया।देश को गुमराह अन्ना हजारे जी नहीं आप कर रहे हैं।अन्ना जी तो भटके हुए देश को सही रास्ता दिखा रहे हैं।संसद की सर्वोच्चता के नाम पर देश को मूर्ख बना रहे हैं लालू यादव।संसद की सर्वोच्चता कैसे झलकती है?भरी संसद में एक ईमानदार समाज सेवक पर बेबुनियाद आरोपों की झड़ी लगाकर और उनका अपमान करके?संसद के अंदर संसद भवन स्वयं कानून नहीं बनाती है।कानून बनाते हैं संसद भवन में बैठे सांसद जो कि जनता के द्वारा ही चुना के जाते हैं।इसलिए संसद नहीं बल्कि जनता सर्वोच्च है क्योंकि बगैर जनता के संसद नहीं चल सकती।
जल्दी नहीं गलती हुई है: कुछ सांसद यह भी कह रहे थे कि कि लोकपाल बिल लाने में सरकार ने जल्दबाजी कर दी।मुझे तो लगता है सरकार ने जल्दी नहीं गलती की है।लोकपाल बिल लाने में इससे ज्यादा देर हो ही नहीं सकती।पिछले 44 वर्षों से लोकपाल बिल लटका पड़ा है।देश की आजादी के बाद से ही पूरा देश इंतजार कर रहा है एक भ्रष्टाचार निरोधि कानून की।सरकार को इसी सत्र में सिविल सोसायटी की माँगों को मानते हुए एक मजबूत लोकपाल बिल लेकर आना चाहिए था।
ईमानदारों को नहीं फँसा सकता लोकपाल: लोकसभा में मुलायम सिंह यादव कह रहे थे कि लोकपाल आने के बाद एक दरोगा को भी इतनी शक्ति हो जाएगी कि वह नेताओं को जेल में डाल देगा।लोकपाल आने के बाद दरोगा बेवजह किसी निर्दोष को जेल में नहीं डाल देंगे।अगर कोई नेता गलत काम करते हैं तो आज भी उन्हें कोई दरोगा या हवलदार ही जेल में बंद करेगा, कोई भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी नहीं।अगर आपको अपनी ईमानदारी पर भरोसा है तो एक दरोगा से क्यों डर रहे हैं?लालू यादव कहते हैं कि लोकपाल के दायरे में पीएम को रखने से उन पर हमेशा लोकपाल की तलवार लटकती रहेगी और उनकी इज्जत खत्म हो जाएगी।अगर पीएम ईमानदार होंगे तो उन्हें लोकपाल तो क्या कोई नहीं फँसा सकता लेकिन अगर पीएम दोषी हुए तो लोकपाल उन पर कार्रवाई कर पाता लेकिन ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि सरकार ने पीएम को लोकपाल के दायरे से लगभग बाहर ही रखा है।जो ईमानदार होंगे वो क्यों डरेंगे लोकपाल से।लोकपाल से डरने की जरूरत तो भ्रष्टाचारियों को है बशर्ते कि सरकार एक सशक्त लोकपाल बिल लाए।
मीडिया की गलती: मीडिया में अकसर लोगों से यह सवाल पूछे जाते हैं कि अगर जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गाँधी जी आज जीवित होते तो क्या वो अन्ना से ज्यादा अच्छी तरह से निपट पाते?क्या मीडिया अन्ना जी को ऐसा समझती है कि उनसे निपटने की जरूरत है?अन्ना हजारे का विरोध वही नेता करते हैं जिनका अपना कोई वजूद न हो या वजूद खतरे में हो।अन्ना जी का विरोध करके वो खुद को पार्टी आलाकमान की नजरों में उठाना चाहते हैं।
उम्मीदों पर खड़ी उतरी सरकार: चाहे जो भी हो पर एक बात तो पक्की है कि यूपीए सरकार जनता की उम्मीदों पर पूरी तरह से खड़ी उतरी है क्योंकि जैसा मजबूर लोकपाल उसने पेश किया, उससे ज्यादा देश की जनता ने सरकार से उम्मीद भी नहीं की थी।
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