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23.1.13

lalkila kavi sammelan par neelima pachauri ne lbtaya hai kis tarah vaha chotte kaviyo ka bolbala tha--emandfar kavi pade aur comment kare---


प्रिय मित्रों ,
आज मैं आपके बीच बहुत ही हताश और निराश मन से आई हूँ।
गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित राष्ट्रीय कवि--सम्मलेन के समारोह को ,
जिस हर्षोल्लास के साथ मैं 16 जनवरी को देखने और सुनने गई थी।
वहां जो हुआ उसे देखकर मैं अभी तक आहत हूँ ...............
लाल किले के पवित्र राष्ट्रीय मंच पर डॉ.ध्रुवेंद्र भदौरिया जी की कविता
''शहीद की पाती'' (पुस्तक - इदं-राष्ट्राय - पेज - 31-32 ) को एक कवि महोदय ने
अपनी कहकर (चुराकर ) वहाँ उस पवित्र मंच पर कवि डॉ. ध्रुवेंद्र भदौरिया की उपस्थिति में ही पढने का दुस्साहस किया।
जब डॉ.भदौरिया जी ने मंचासीन मंत्री जी और वरिष्ठ कवियों को अपनी पुस्तक ''इदम राष्ट्राय '' को दिखा कर,
अपनी बात को विनम्रता और शालीनता के साथ रखा,पर कुछ वरिष्ठ कवियों और मंत्री जी ने डॉ.भदौरिया जी से कुछ न कहने का आग्रह किया।
डॉ.भदौरिया जी ने उनका और मंच का सम्मान बनाये रखा किन्तु वे अपनी कविता की अस्मिता के साथ खिलवाड़ होते देखते रहे,
और अन्दर ही अन्दर आहत होते रहे ................मैं यहाँ डॉ.भदौरिया जी के बड़प्पन को सलाम करूँ या उस कवि के दुस्साहस को शाबाशी दूँ ??
मेरी प्रिय मित्र अंजलि पंडित भी मेरे साथ उस समारोह में शामिल थीं और वे भी यह सब देखकर बहुत दुखी थीं ,
मित्रों,आज तो यह कवि डॉ.ध्रुवेंद्र भदौरिया जी साथ हुआ है,पर कल अन्य वरिष्ठ कवियों की रचनाओं के साथ भी शायद यही होगा !
हम किसी कवि की रचना की मौलिकता समाप्त होते हुए देखते रहेंगे ? उस पवित्र मंच पर जाने से ऐसे कवियों को रोक पाएंगे ?
मैं अपने सभी मित्रों के साथ मिलकर ऐसे कवियों के खिलाफ लड़ाई जारी रखना चाहती हूँ ........
उस पवित्र मंच की स्मृतियों के कुछ चित्र आपके साथ शेयर करना चाहती हूँ ...

1 comment:

Naveen Mani Tripathi said...

vakai yah bahut hi dukhad hai ...kripaya jis kavi ne kavita padhi thi uska nam bhi prakashit kren jis se mukhaute wale kaviyon ko jamana samajh ske ....


es mahatvpoorn post ke liye abhar