जियाउर्रहमान
आप सोचिये कि यदि किसी मुस्लिम को जिसपर आतंकी घटना में शामिल होने का केस चल रहा हो उसे कांग्रेस या अन्य कोई दल लोकसभा का प्रत्याशी बना दे तो देश में कथित राष्ट्रवादियों और मीडिया की क्या प्रतिक्रिया होती ? देशभर में भाजपाइयों ने हंगामा खड़ा कर दिया होता और तूफ़ान ला दिया होता | लेकिन राष्ट्रवाद का राग अलापने वाली भाजपा ने अचानक चुनाव में आतंकवाद की आरोपी मालेगांव ब्लास्ट की आतंकी साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से चुनाव में उतारा है, राष्ट्रवादी मौन हैं ? | पीएम मोदी ने भी एक इंटरव्यू में साध्वी से हमदर्दी जताकर अपनी मौन स्वीकृति दे दी है | आतंकी साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने ऐसे समय में टिकट दिया है जब देश में दो चरण का मतदान हो चुका है | तो क्या यह माना जाये कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए आतंक के आरोपी के जरिये ध्रुवीकरण करना चाहती है ?
आतंकी को टिकट देने पर देश के मीडिया घरानो और विभिन्न मीडिया समूहों में खबरे ऐसे चल रही हैं जैसे किसी बड़े सामाजिक कार्यकर्ता को चुनावी मैदान में उतरा गया हो | आतंकी की प्रेस कांफ्रेंस और कथित जुल्म ज्यादती की बात को ऐसे चलाया जा रहा है जैसे कोई बहुत बड़ा कार्य देशहित में किया गया हो ? लेकिन सवाल यह है कि यदि प्रज्ञा की जगह कोई आतंक के आरोपों से घिरा मुस्लिम जुल्म-ज्यादती की बात करेगा तो भी मीडिया उसे ऐसे ही दिखाएगी ? क्या मीडिया उसे आतंकी की जगह आरोपी लिखेगी ? कई बड़े पत्रकार दोगलेपन की हद पार करते हुए प्रज्ञा को सिर्फ आरोपी और जमानत पर बाहर होने का हवाला देकर समर्थन कर रहे हैं, यह वही पत्रकार हैं जो किसी मुस्लिम युवक के शक के आधार पर भी गिरफ्तार होने पर उसे आतंकी घोषित कर देते हैं, बड़े बड़े डेबिट करते हैं और मीडिया ट्रायल करते हैं | हालाँकि मानवाधिकार आयोग और कई जांच एजेंसिया साध्वी के आरोपों को जांच में निराधार बता चुकी हैं, लेकिन मीडिया मौन है |
साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी पर देश के किसी भी मीडिया समूह ने उसे आतंकी लिखने की हिम्मत नहीं दिखाई है | मुंबई हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे पर भी साध्वी ने अपमानजनक बयां दिया है लेकिन आरएसएस और राष्ट्रवादी मौन हैं | वहीँ दूसरी ओर आप परिकल्पना कीजिये कि यदि कांग्रेस या किसी अन्य दल ने किसी आतंक के आरोपी या आतंकवादी घटना में बरी हुए किसी मुस्लिम को टिकट दी होती तो कथित राष्ट्रवादी और हिंदूवादियों ने अभी तक देश में हंगामा खड़ा कर दिया होता | मीडिया में भी बवाल चल रहा होता लेकिन प्रज्ञा के मामले में देश में चंद लोगों को छोड़ दें तो अजीब सी शांति है, आखिर क्यों ? क्या यह देश आतंकी का धर्म देखकर विरोध करता है ? सवाल बहुत हैं , लेकिन जवाब शायद ही किसी के पास हो | साध्वी प्रज्ञा को चुनाव लड़ाकर भाजपा ने ध्रुवीकरण कार्ड खेला है लेकिन क्या जनता इसे स्वीकार करेगी, बड़ा प्रश्न है ?
खैर, आतंक फ़ैलाने वाली साध्वी को लोग स्वीकारेंगे या नकारेंगे यह भविष्य की गर्त में है, लेकिन इतना जरूर है कि अब यह चुनाव देश में विचारधारा और कटटरपंथ का निर्णायक चुनाव हो गया है |
-लेखक जियाउर्रहमान, व्यवस्था दर्पण के सम्पादक हैं |
आप सोचिये कि यदि किसी मुस्लिम को जिसपर आतंकी घटना में शामिल होने का केस चल रहा हो उसे कांग्रेस या अन्य कोई दल लोकसभा का प्रत्याशी बना दे तो देश में कथित राष्ट्रवादियों और मीडिया की क्या प्रतिक्रिया होती ? देशभर में भाजपाइयों ने हंगामा खड़ा कर दिया होता और तूफ़ान ला दिया होता | लेकिन राष्ट्रवाद का राग अलापने वाली भाजपा ने अचानक चुनाव में आतंकवाद की आरोपी मालेगांव ब्लास्ट की आतंकी साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से चुनाव में उतारा है, राष्ट्रवादी मौन हैं ? | पीएम मोदी ने भी एक इंटरव्यू में साध्वी से हमदर्दी जताकर अपनी मौन स्वीकृति दे दी है | आतंकी साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने ऐसे समय में टिकट दिया है जब देश में दो चरण का मतदान हो चुका है | तो क्या यह माना जाये कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए आतंक के आरोपी के जरिये ध्रुवीकरण करना चाहती है ?
आतंकी को टिकट देने पर देश के मीडिया घरानो और विभिन्न मीडिया समूहों में खबरे ऐसे चल रही हैं जैसे किसी बड़े सामाजिक कार्यकर्ता को चुनावी मैदान में उतरा गया हो | आतंकी की प्रेस कांफ्रेंस और कथित जुल्म ज्यादती की बात को ऐसे चलाया जा रहा है जैसे कोई बहुत बड़ा कार्य देशहित में किया गया हो ? लेकिन सवाल यह है कि यदि प्रज्ञा की जगह कोई आतंक के आरोपों से घिरा मुस्लिम जुल्म-ज्यादती की बात करेगा तो भी मीडिया उसे ऐसे ही दिखाएगी ? क्या मीडिया उसे आतंकी की जगह आरोपी लिखेगी ? कई बड़े पत्रकार दोगलेपन की हद पार करते हुए प्रज्ञा को सिर्फ आरोपी और जमानत पर बाहर होने का हवाला देकर समर्थन कर रहे हैं, यह वही पत्रकार हैं जो किसी मुस्लिम युवक के शक के आधार पर भी गिरफ्तार होने पर उसे आतंकी घोषित कर देते हैं, बड़े बड़े डेबिट करते हैं और मीडिया ट्रायल करते हैं | हालाँकि मानवाधिकार आयोग और कई जांच एजेंसिया साध्वी के आरोपों को जांच में निराधार बता चुकी हैं, लेकिन मीडिया मौन है |
साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी पर देश के किसी भी मीडिया समूह ने उसे आतंकी लिखने की हिम्मत नहीं दिखाई है | मुंबई हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे पर भी साध्वी ने अपमानजनक बयां दिया है लेकिन आरएसएस और राष्ट्रवादी मौन हैं | वहीँ दूसरी ओर आप परिकल्पना कीजिये कि यदि कांग्रेस या किसी अन्य दल ने किसी आतंक के आरोपी या आतंकवादी घटना में बरी हुए किसी मुस्लिम को टिकट दी होती तो कथित राष्ट्रवादी और हिंदूवादियों ने अभी तक देश में हंगामा खड़ा कर दिया होता | मीडिया में भी बवाल चल रहा होता लेकिन प्रज्ञा के मामले में देश में चंद लोगों को छोड़ दें तो अजीब सी शांति है, आखिर क्यों ? क्या यह देश आतंकी का धर्म देखकर विरोध करता है ? सवाल बहुत हैं , लेकिन जवाब शायद ही किसी के पास हो | साध्वी प्रज्ञा को चुनाव लड़ाकर भाजपा ने ध्रुवीकरण कार्ड खेला है लेकिन क्या जनता इसे स्वीकार करेगी, बड़ा प्रश्न है ?
खैर, आतंक फ़ैलाने वाली साध्वी को लोग स्वीकारेंगे या नकारेंगे यह भविष्य की गर्त में है, लेकिन इतना जरूर है कि अब यह चुनाव देश में विचारधारा और कटटरपंथ का निर्णायक चुनाव हो गया है |
-लेखक जियाउर्रहमान, व्यवस्था दर्पण के सम्पादक हैं |
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