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28.4.19

अब संभव है हृदय रोगों का बिना सर्जरी इलाज

भारत में हृदय रोगियों की संख्या में हाल ही के कुछ वर्षों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। भारतीय चिकित्सकों के लिये यह एक गंभीर मुद्दा इसलिये भी है क्योंकि एंजाइना और अन्य हृदय रोगों के उपचार के लिये भारत में उपयोग की जाने वाली शल्य चिकित्सा काफी महंगी हैं तथा रोगी के शत प्रतिशत स्वस्थ होने की कोई गारंटी भी नहीं देती। सिबिया मेडिकल सेंटर के निदेशक एस.एस.सीबिया का कहना है कि बहरहाल दुनिया भर के हृदय रोगियों के लिये पिछले कुछ समय से विकसित की गई ईसीपी (एक्सटर्नल काउंटर पल्सेशन) और एसीटी (आर्टरी कीलेशन थैरेपी) नामक गैर शल्य चिकित्सा पद्धति एक वरदान साबित हो रही है।

ई सी पी हृदय रोगों के उपचार की एक सहज, कम खर्चीली और प्रभावशाली पद्धति है। क्लीनिकली तौर पर परखी गई इस पद्धति में न तो रोगी के शरीर में कोई चीर फाड़ की जाती है और न ही उसे अस्पताल में दाखिल किये जाने की कोई आवश्यकता होती है। ईसीपी द्वारा धमनियों में होने वाली रुकावट को आसानी से दूर किया जा सकता है। धमनियों से अवरोध हटते ही हृदय और शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है। ईसीपी मूलतः उस सिद्धांत पर काम करती है जो कि यह सिद्ध करता है कि दिल के धड़कने की प्रक्रिया पर पड़ने वाले दबाव को कम करके दिल के दौरों को रोका जा सकता है।

रक्त की धमनियों में कोलेस्ट्राल, कैल्शियम लैड (सीसा), मरकरी (पारा) के जमाव के कारण भीखून में प्रदूषण बढ़ जाता है, जिससे विभिन्न प्रकार के हृदय रोग जन्म लेते हैं। डा. एस.एस. सिबिया ने बताया कि वास्तव में आर्टरी किलेशन थैरेपी, एक प्रकार की शुद्धिकरण चिकित्सा है। वास्तव में रक्त में दवा के जाने पर रक्त के विषैले पदार्थ एवं अतिरिक्त धातुएं उससे बांड (संयुक्त) हो जाते हैं एवं मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं। उसके साथ ही खान-पान में कुछ सुधार एवं जीवन शैली में परिवर्तन से हृदय रोगों को काबू में रखा जा सकता है। यदि हृदय रोगी लगातार प्रकृति के स्वाभाविक और नैसर्गिक वातावरण में रहने की आदत डालें और शाकाहारी व्यंजनों का इस्तेमाल करें तो इन तकलीफों का स्थायी निदान हो सकता है। भोजन में कम तेल और वसा का सेवन करने तथा सुबह-शाम योग, ध्यान और सहज व्यायाम करने से बहुत लाभ मिलता है।

ए.सी.टी. शुरू करने से पहले रोगी की पूरी मेडिकल हिस्ट्री एवं खान-पान के बारे में पूछताछ की जाती है। एलर्जी टेस्ट के साथ-साथ सभी समान्य लैब टेस्ट किये जाते हैं। ई.सी.जी एवं एक्सरे भी किया जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस इलाज में मरीज को अस्पताल में दाखिल होने की जरूरत नहीं रहती और इलाज के दौरान वे ड्रिप लेते हुए वह अपने आप को टीवी मॉनीटर पर देख सकते है, सो सकते है, पत्रिका पढ़ सकते है या फिर अपने चिकित्सक से बातें कर सकते हैं। डा.सिबिया के अनुसार जैसे-जैसे द्रव्य मरीज की शिराओं में उतरता चला जाता है, रोगी स्वास्थ्य लाभ लेना प्रारंभ कर देता है। इसकी सफल होने की दर 90 प्रतिशत है। यह इलाज अन्य विकल्पों से कम खतरे वाला एवं नान टॉक्सिक है। यह किसी प्रकार के दुष्प्रभावों (साईड इफैक्टस) से भी मुक्त है। इस पद्धति के अन्य फायदे हैं-शल्य चिकित्सा के मुकाबले मरीज शीघ्र ही सामान्य जिन्दगी जीने लगता है एवं बीच-बीच में इस इलाज की मेन्टैंनस लेने पर सालों-साल किसी भी तकलीफ से मुक्त रहता है। साथ ही रक्त शुद्ध हो जाने से मरीज के बुढापे को भी दूर भगाता है एवं एक नयी शक्ति का संचार उसके तनबदन में होता है। याददाश्त तेज हो जाती है एवं उच्च रक्तचाप भी नियन्त्रित हो जाता है।

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