संजय सक्सेना, लखनऊ
एक मई-मजदूर दिवस पर विशेष... किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर/कारीगर) पर निर्भर होती है। एक मकान को खड़ा करने और सहारा देने के लिये जिस तरह मजबूत “नीव” की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ठीक वैसे ही किसी समाज,देश,उद्योग,संस्था,व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों (कर्मचारियों) की विशेष भूमिका होती है। मजदूरों की विशेष भूमिका को सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष एक मई को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। मजदूरों के बारे में चार लाईनों में समझना हो तो हम कह सकते हैं-
मेहनत उसकी लाठी है,मजबूत उसकी काठी है,
हर बाधा वो कर देता है दूर, दुनिया उसे कहती है मजदूर।
मजदूर दिवस उन श्रमिक वर्ग को समर्पित है जो अपना खून-पसीना बहा कर अथक परिश्रम कर के विश्व के विभिन्न हिस्सों में दिन रात काम करके उस देश की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान देते हैं। इतिहास के पन्ने पलटनें पर मजदूर दिवस मनानें की प्रथा शुरू होने का कारण जानने को मिलता है। जो कुछ इस प्रकार है- पूर्व काल में मजदूर एवं कामगार वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। मजदूरों को दिन में दस से पंद्रह घंटे काम कराया जाता था। कार्य स्थल इतने विषम और प्रतिकूल होते थे की वहाँ आये दिन काम पर मजदूरों की अकस्मात मृत्यु की घटनायेँ होती रहती थीं। इन्हीं परिस्थितियों के चलते अमरीका में कुछ मजदूर समस्या निवारण संघ और समाजवादी संघ द्वारा मजदूरों के कल्याण के लिये आवाज उठाई जाने लगी।
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 से हुई। इस दिवस को मनाने के पीछे उन मजदूर यूनियनों की हड़ताल है जो कि आठ घंटे से ज्यादा काम ना कराने के लिए की गई थी। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेय मार्केट में बम ब्लास्ट हुआ था, जिससे निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी, जिसमें सात मजदूरों की मौत हो गई।
तत्पश्चात 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की द्वितीय बैठक में जब फ्रेंच क्रांति को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया कि इसको अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाए। साथ ही अमेरिका में मात्र 8 घंटे ही काम करने की इजाजत दे दी गई।
बात अपने देश की कि जाए तो भारत में मजदूर दिवस सबसे पहले चेन्नई में एक मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। तब इस दिन को मद्रास दिवस के तौर पर मनाया जाता था। आज की तारीख में भारत समेत लगभग 80 देशों में यह दिवस पहली मई को मनाया जाता है। इस दिन तमाम देशों में श्रमिक की छुट्टी रहती है। यूरोप में यह दिन ऐतिहासिक रूप से ग्रामीण त्योहारों से जुड़ा है।
मजदूर दिवस पर कई मजदूर संगठन बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन करते हैं। दिनभर मजदूर वर्ग किसी खास जगह पर एकत्रित हो कर विशेष कार्यक्रमों के आयोजन भी करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन द्वारा इस दिन पर सम्मेलन आयोजन किया जाता है। देश के मजदूर वर्ग की उन्नति और प्रगति के लिये कई बार इस दिवस पर सरकार द्वारा मजदूर वर्ग को विशेष सहायता और भेंट भी अर्पण की जाती है जिसमें मुफ्त या कम दाम में राशन, कपड़े, शिक्षा, सस्ते ब्याज पर पक्के मकान के लोन, नौकरियाँ या फिर किसी अन्य स्वरूप में प्रदान की जाती है। मजदूर दिवस पर टीवी, अखबार, और रेडियो जैसे प्रसार माध्यम द्वारा मजदूर जागृति प्रोग्राम प्रसारित किये जाते हैं। बड़े-बड़े पोलिटिशियन इस दिवस पर मजदूर वर्ग कल्याण के लिये कई महत्वपूर्ण घोषणायेँ भी करते हैं।
एक मई-मजदूर दिवस पर विशेष... किसी भी देश की तरक्की उस देश के किसानों तथा कामगारों (मजदूर/कारीगर) पर निर्भर होती है। एक मकान को खड़ा करने और सहारा देने के लिये जिस तरह मजबूत “नीव” की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ठीक वैसे ही किसी समाज,देश,उद्योग,संस्था,व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों (कर्मचारियों) की विशेष भूमिका होती है। मजदूरों की विशेष भूमिका को सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष एक मई को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। मजदूरों के बारे में चार लाईनों में समझना हो तो हम कह सकते हैं-
मेहनत उसकी लाठी है,मजबूत उसकी काठी है,
हर बाधा वो कर देता है दूर, दुनिया उसे कहती है मजदूर।
मजदूर दिवस उन श्रमिक वर्ग को समर्पित है जो अपना खून-पसीना बहा कर अथक परिश्रम कर के विश्व के विभिन्न हिस्सों में दिन रात काम करके उस देश की प्रगति में अपना अमूल्य योगदान देते हैं। इतिहास के पन्ने पलटनें पर मजदूर दिवस मनानें की प्रथा शुरू होने का कारण जानने को मिलता है। जो कुछ इस प्रकार है- पूर्व काल में मजदूर एवं कामगार वर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। मजदूरों को दिन में दस से पंद्रह घंटे काम कराया जाता था। कार्य स्थल इतने विषम और प्रतिकूल होते थे की वहाँ आये दिन काम पर मजदूरों की अकस्मात मृत्यु की घटनायेँ होती रहती थीं। इन्हीं परिस्थितियों के चलते अमरीका में कुछ मजदूर समस्या निवारण संघ और समाजवादी संघ द्वारा मजदूरों के कल्याण के लिये आवाज उठाई जाने लगी।
अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 से हुई। इस दिवस को मनाने के पीछे उन मजदूर यूनियनों की हड़ताल है जो कि आठ घंटे से ज्यादा काम ना कराने के लिए की गई थी। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेय मार्केट में बम ब्लास्ट हुआ था, जिससे निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी, जिसमें सात मजदूरों की मौत हो गई।
तत्पश्चात 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय महासभा की द्वितीय बैठक में जब फ्रेंच क्रांति को याद करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया कि इसको अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाए। साथ ही अमेरिका में मात्र 8 घंटे ही काम करने की इजाजत दे दी गई।
बात अपने देश की कि जाए तो भारत में मजदूर दिवस सबसे पहले चेन्नई में एक मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। तब इस दिन को मद्रास दिवस के तौर पर मनाया जाता था। आज की तारीख में भारत समेत लगभग 80 देशों में यह दिवस पहली मई को मनाया जाता है। इस दिन तमाम देशों में श्रमिक की छुट्टी रहती है। यूरोप में यह दिन ऐतिहासिक रूप से ग्रामीण त्योहारों से जुड़ा है।
मजदूर दिवस पर कई मजदूर संगठन बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन करते हैं। दिनभर मजदूर वर्ग किसी खास जगह पर एकत्रित हो कर विशेष कार्यक्रमों के आयोजन भी करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन द्वारा इस दिन पर सम्मेलन आयोजन किया जाता है। देश के मजदूर वर्ग की उन्नति और प्रगति के लिये कई बार इस दिवस पर सरकार द्वारा मजदूर वर्ग को विशेष सहायता और भेंट भी अर्पण की जाती है जिसमें मुफ्त या कम दाम में राशन, कपड़े, शिक्षा, सस्ते ब्याज पर पक्के मकान के लोन, नौकरियाँ या फिर किसी अन्य स्वरूप में प्रदान की जाती है। मजदूर दिवस पर टीवी, अखबार, और रेडियो जैसे प्रसार माध्यम द्वारा मजदूर जागृति प्रोग्राम प्रसारित किये जाते हैं। बड़े-बड़े पोलिटिशियन इस दिवस पर मजदूर वर्ग कल्याण के लिये कई महत्वपूर्ण घोषणायेँ भी करते हैं।
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