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22.4.19

हेमंत करकरे पर प्रज्ञा का बयान और प्रधानमंत्री द्वारा किया गया उनका बचाव

जब 26/11 हुआ था, तब बहुत कुछ समझ नहीं आ रहा था। सिवाय इसके कि ताज होटल में कोई इजरायली बैठक चल रही थी, नरीमन हाउस भी इजरायली मामला है जहां आतंकी छुपे थे, गड़करी उस वक़्त इजरायल में थे और कर्नल श्रीकांत पुरोहित, प्रज्ञा ठाकुर, दयानंद पांडेय आदि इजरायल में हिन्दुओं की प्रवासी सरकार बनाने में लगे हुए थे जिसकी मुंबई एटीएस ने अपने चार्जशीट में बात की थी और जिसे हेमंत करकरे ने बनाया था।


इतना हम सब उस रात समझ रहे थे, बस कहने की खुलकर हिम्मत नहीं थी क्योंकि पत्रकारिता बर्गर बनाने जैसा काम नहीं है। कुछ दिन बाद मुंबई के पूर्व आईजी एस एम मुशरिफ ने किताब लिखी Who Killed Karkare, जिसको दिग्विजय सिंह ने लोकार्पित किया। इसमें मुंबई हमले में अतिदक्षिणपंथी संगठनों सहित इंटेलिजेंस की भूमिका का ज़िक्र था। हमारे पास जो तथ्य थे, उन्हें इस किताब में बखूबी पिरो दिया गया था। किताब को conspiracy theory कह कर पब्लिक डिसकोर्स में खारिज कर दिया गया। इसका डर तो था ही। इस थियोरी को उठाने वाले दो चार लोग भी चुप हो गए।

कोई साल भर बाद एक बहुत पुराने पत्रकार के घर पर बैठे बैठे एक सेलिब्रिटी टीवी पत्रकार की बात चली तो उन्हें हमने फोन लगा दिया। ये महोदय देश के इकलौते हैं जिनकी संघ और नक्सल में बराबर पैठ है। इनसे हमने पूछा कि आपको क्या लगता है? क्या 26/11 में कोई अंदरूनी पेंच था? महोदय थोड़ा सकपकाए, फिर धीरे से बोले - जानते तो सब हैं, बोल कोई नहीं रहा।

ऐसा लगता है इस बार किसी और को बोलने की जरुरत नहीं पड़ेगी। ज़िंदा आतंकी खुद गड़े मुर्दे उखाड़ लाएंगे। हेमंत करकरे पर प्रज्ञा का बयान और प्रधानमंत्री द्वारा किया गया उनका बचाव कहानी को 360 डिग्री

घुमा चुका है। बस, थोड़ा और ढीलने की ज़रुरत है। भाजपा की पतंग कन्नी से कट जायेगी।

पत्रकार Abhishek Srivastava की  एफबी वॉल से.

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