स्थानीय बद्री विहार सीकर में विगत तीन दिनों से चल रहे ज्ञान गंगा पुस्तक मेले के प्रथम सत्र में आज राजस्थानी एवं बाल साहित्य विमर्श पर वार्ता हुई। जिसमें पू.अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एवं साहित्यकार चैनसिंह राजपुरोहित एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ प्रदीप शेखावत ने भाग लिया। वार्ता का संचालन पूर्वा भट्ट ने किया।
चैनसिंह राजपुरोहित ने बताया कि हमारे यहां हर 14 कोस पर भाषा नहीं बल्कि बोली बदलती है, सिरोही में गोडवाड़ी, बांसवाड़ा डूंगरपुर में बांगड़ी कोटा बूंदी में हाड़ोती, भरतपुर - सवाई माधोपुर में ब्रज, जयपुर में ढुढाडी, जैसलमेर में मारवाड़ी आदि विभिन्न भाषाओं का समावेश राजस्थानी भाषा है। हिंदी भाषा अवधी, ब्रज, राजस्थानी तथा संस्कृत आदि भाषाओं का समावेश है। अर्थात हिंदी भाषा खड़ी भाषा का ही एक रूप है। राजस्थानी भाषा के शब्दों में ज्यादा अंतर नहीं है, बोलने के लहजे में अंतर है। उन्होंने बताया कि राजस्थानी में लिखी उनकी पुस्तक बंदिनी जिसमें पश्चिमी राजस्थान में अफीम के सेवन से बर्बाद हुए परिवारों की कहानी है- ने लोगों को काफी प्रभावित किया है। वर्तमान में अंग्रेजी को ज्यादा बढ़ावा मिल रहा है।
भाषा सम्प्रेषण का वर्तमान समय में अच्छा तरीका क्या है पूछे जाने पर प्रदीप सिंह शेखावत ने बताया कि जब बच्चे माता पिता, दादा दादी या नाना नानी के साथ बैठकर विभिन्न प्रकार की कहानियां सुनते हैं और वे कहानियां उनकी मातृभाषा में होती हैं तो सजीव सम्प्रेषण होता है। मातृभाषा में बालक जल्दी सीखता है।
मेले के द्वितीय सत्र में भारत में विज्ञान की परंपरा विषय पर वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वार्ताकार श्री केएन आमेटा विभागाध्यक्ष रसायन शास्त्र विभाग, मोदी विश्वविद्यालय लक्ष्मणगढ़ व श्री कन्हैया लाल चतुर्वेदी संपादक पाथेय कण उपस्थित रहे। वार्ता का संचालन डॉ उमेश गुप्ता ने किया। प्रो.आमेटा ने बताया कि संस्कृत में लिखे हमारे ग्रंथों में विज्ञान की बहुत सारी जानकारियां समाहित हैं। रामायण एवं महाभारत में जो कथाएं मिलती हैं वे वास्तव में विज्ञान पर आधारित हैं। आज नासा जब अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजता है तो अपने समय का मिलान भारतीय पंचांग से करता है। इसी प्रकार रशिया की अंतरिक्ष एजेंसी भी अपने समय का मिलान भारतीय पंचांग के आधार पर करती है। भारतीय पंचाग ग्रह नक्षत्रों के अनुसार सटीक और प्रमाणित है। वर्तमान समय में सिर्फ सैद्धांतिक बातों पर ही अध्यापन कार्य कराया जा रहा है प्रायोगिक कार्य को परे किया जा रहा है जिससे विज्ञान की अवधारणा 'करके सीखना' सार्थक नहीं हो रही है। विद्यालय तथा उच्च शिक्षा के केंद्र भी केवल उच्च परीक्षा परिणाम को लेकर चिंतित रहते हैं चाहे बालक का प्रायोगिक ज्ञान बहुत अल्प ही क्यों न हो। ऐसा करके हम अपने बालकों के साथ ठीक नहीं कर रहे।
चतुर्वेदी जी ने बताया कि हमारे पुरातन में जो धर्म ग्रंथ हैं उनकी अवधारणाएं वर्तमान विज्ञान की अवधारणा से पूर्णतया मिलान करती हैं लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में उचित वातावरण नहीं मिलने के कारण वैज्ञानिकों को अमेरिका जैसी जगहों पर जाकर अपने शोध कार्य पूर्ण करने पड़े हैं। आज भारत का इसरो, भारत का डीआरडीओ तथा यहां के वैज्ञानिक स्वदेश निर्मित सेटेलाइट, ऊर्जा तकनीकी, रक्षा तकनीकी पर बहुत सारे उपकरण बना चुके हैं तथा भारत को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं। यदि भारत इसी तरह निरंतर चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम अंतरिक्ष एजेंसी नासा और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियों से आगे निकल जाएंगे।
मेले के समापन सत्र में पूज्य श्री रमणनाथ जी महाराज का पावन सानिध्य मिला। उन्होंने कहा कि विज्ञान की प्रगति का मुख्य स्रोत और कारण लिपि का आविष्कार है, इसी ने विज्ञान के कार्य को गति दी, आज हम जो देख रहे हैं वो इसी कारण संभव हुआ। महाराज ने कहा कि बालमन पर साहित्य के पड़ने वाले प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण होते हैं अतः श्रेष्ठ नागरिकों के निर्माण के लिए आवश्यक है कि उन्हें श्रेष्ठ साहित्य उपलब्ध करवाया जाए।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए इंडियागेट न्यूज डॉट कॉम के मुख्य सम्पादक व वरिष्ठ पत्रकार अजय सेठिया ने कहा कि हिन्दू नववर्ष मनाया जाना एक सुखद परिवर्तन है। कल तक जो राम को काल्पनिक, रामायण को उपन्यास तथा रामसेतु को अस्वीकार करते थे वो आज मंदिर मंदिर घूमकर स्वयं को हिन्दू साबित करने में जुटे हैं। एक समय में नालंदा विश्वविद्यालय के 9 मंजिला पुस्तकालय को जला दिया गया ताकि हिन्दू साहित्य को समाप्त किया जा सके और गौरवशाली इतिहास को विस्मृत किया जा सके। 3 माह तक पुस्तकें जलती रहीं। इन सब की जड़ में कम्युनिष्ट व इस्लामिक विचारधारा है। कश्मीर समस्या भी कम्युनिष्टों की देन है और जहां इस्लाम है, वहां लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में रहता है।
सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्री दुर्गादास जी उपस्थित थे। प्रतिवेदन कैलाश जी शर्मा ने प्रस्तुत किया।
चैनसिंह राजपुरोहित ने बताया कि हमारे यहां हर 14 कोस पर भाषा नहीं बल्कि बोली बदलती है, सिरोही में गोडवाड़ी, बांसवाड़ा डूंगरपुर में बांगड़ी कोटा बूंदी में हाड़ोती, भरतपुर - सवाई माधोपुर में ब्रज, जयपुर में ढुढाडी, जैसलमेर में मारवाड़ी आदि विभिन्न भाषाओं का समावेश राजस्थानी भाषा है। हिंदी भाषा अवधी, ब्रज, राजस्थानी तथा संस्कृत आदि भाषाओं का समावेश है। अर्थात हिंदी भाषा खड़ी भाषा का ही एक रूप है। राजस्थानी भाषा के शब्दों में ज्यादा अंतर नहीं है, बोलने के लहजे में अंतर है। उन्होंने बताया कि राजस्थानी में लिखी उनकी पुस्तक बंदिनी जिसमें पश्चिमी राजस्थान में अफीम के सेवन से बर्बाद हुए परिवारों की कहानी है- ने लोगों को काफी प्रभावित किया है। वर्तमान में अंग्रेजी को ज्यादा बढ़ावा मिल रहा है।
भाषा सम्प्रेषण का वर्तमान समय में अच्छा तरीका क्या है पूछे जाने पर प्रदीप सिंह शेखावत ने बताया कि जब बच्चे माता पिता, दादा दादी या नाना नानी के साथ बैठकर विभिन्न प्रकार की कहानियां सुनते हैं और वे कहानियां उनकी मातृभाषा में होती हैं तो सजीव सम्प्रेषण होता है। मातृभाषा में बालक जल्दी सीखता है।
मेले के द्वितीय सत्र में भारत में विज्ञान की परंपरा विषय पर वार्ता का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य वार्ताकार श्री केएन आमेटा विभागाध्यक्ष रसायन शास्त्र विभाग, मोदी विश्वविद्यालय लक्ष्मणगढ़ व श्री कन्हैया लाल चतुर्वेदी संपादक पाथेय कण उपस्थित रहे। वार्ता का संचालन डॉ उमेश गुप्ता ने किया। प्रो.आमेटा ने बताया कि संस्कृत में लिखे हमारे ग्रंथों में विज्ञान की बहुत सारी जानकारियां समाहित हैं। रामायण एवं महाभारत में जो कथाएं मिलती हैं वे वास्तव में विज्ञान पर आधारित हैं। आज नासा जब अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजता है तो अपने समय का मिलान भारतीय पंचांग से करता है। इसी प्रकार रशिया की अंतरिक्ष एजेंसी भी अपने समय का मिलान भारतीय पंचांग के आधार पर करती है। भारतीय पंचाग ग्रह नक्षत्रों के अनुसार सटीक और प्रमाणित है। वर्तमान समय में सिर्फ सैद्धांतिक बातों पर ही अध्यापन कार्य कराया जा रहा है प्रायोगिक कार्य को परे किया जा रहा है जिससे विज्ञान की अवधारणा 'करके सीखना' सार्थक नहीं हो रही है। विद्यालय तथा उच्च शिक्षा के केंद्र भी केवल उच्च परीक्षा परिणाम को लेकर चिंतित रहते हैं चाहे बालक का प्रायोगिक ज्ञान बहुत अल्प ही क्यों न हो। ऐसा करके हम अपने बालकों के साथ ठीक नहीं कर रहे।
चतुर्वेदी जी ने बताया कि हमारे पुरातन में जो धर्म ग्रंथ हैं उनकी अवधारणाएं वर्तमान विज्ञान की अवधारणा से पूर्णतया मिलान करती हैं लेकिन भारतीय परिप्रेक्ष्य में उचित वातावरण नहीं मिलने के कारण वैज्ञानिकों को अमेरिका जैसी जगहों पर जाकर अपने शोध कार्य पूर्ण करने पड़े हैं। आज भारत का इसरो, भारत का डीआरडीओ तथा यहां के वैज्ञानिक स्वदेश निर्मित सेटेलाइट, ऊर्जा तकनीकी, रक्षा तकनीकी पर बहुत सारे उपकरण बना चुके हैं तथा भारत को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हैं। यदि भारत इसी तरह निरंतर चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हम अंतरिक्ष एजेंसी नासा और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियों से आगे निकल जाएंगे।
मेले के समापन सत्र में पूज्य श्री रमणनाथ जी महाराज का पावन सानिध्य मिला। उन्होंने कहा कि विज्ञान की प्रगति का मुख्य स्रोत और कारण लिपि का आविष्कार है, इसी ने विज्ञान के कार्य को गति दी, आज हम जो देख रहे हैं वो इसी कारण संभव हुआ। महाराज ने कहा कि बालमन पर साहित्य के पड़ने वाले प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण होते हैं अतः श्रेष्ठ नागरिकों के निर्माण के लिए आवश्यक है कि उन्हें श्रेष्ठ साहित्य उपलब्ध करवाया जाए।
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए इंडियागेट न्यूज डॉट कॉम के मुख्य सम्पादक व वरिष्ठ पत्रकार अजय सेठिया ने कहा कि हिन्दू नववर्ष मनाया जाना एक सुखद परिवर्तन है। कल तक जो राम को काल्पनिक, रामायण को उपन्यास तथा रामसेतु को अस्वीकार करते थे वो आज मंदिर मंदिर घूमकर स्वयं को हिन्दू साबित करने में जुटे हैं। एक समय में नालंदा विश्वविद्यालय के 9 मंजिला पुस्तकालय को जला दिया गया ताकि हिन्दू साहित्य को समाप्त किया जा सके और गौरवशाली इतिहास को विस्मृत किया जा सके। 3 माह तक पुस्तकें जलती रहीं। इन सब की जड़ में कम्युनिष्ट व इस्लामिक विचारधारा है। कश्मीर समस्या भी कम्युनिष्टों की देन है और जहां इस्लाम है, वहां लोकतंत्र का अस्तित्व खतरे में रहता है।
सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र प्रचारक श्री दुर्गादास जी उपस्थित थे। प्रतिवेदन कैलाश जी शर्मा ने प्रस्तुत किया।
No comments:
Post a Comment