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9.4.19

पश्चिमी यूपी में ताजा की जा हैं मुजफ्फरनगर दंगों की यादें

अजय कुमार,लखनऊ

मुसलमान से मुस्लिम लीग तक सब पर सियासत : पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर प्रथम चरण में मतदान होना है। भाजपा नेता तो यहां काफी समय से परिक्रमा कर रहे थे,लेकिन सपा-बसपा-रालोद गठबंधन न मतदान से चार दिन पूर्व सहारनपुर के देवबंद में रैली करके अपनी ताकत का इजहार किया। रैली की सफल रही या नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है,लेकिन इस रैली में एक बार फिर बसपा सुप्रीमों मायावती अपने गठबंधन सहयोगी अखिलेश यादव से बीस नजर आईं। हालांकि अपने विवादित भाषण के चलते मायावती भाजपा नेताओं के साथ-साथ चुनाव आयोग की नजरों में भी चढ़ गई हैं,जिस प्रकार मायावती ने धर्म के आधार पर वोट मांगा है,उससे नाराज चुनाव आयोग माया के खिलाफ कोई सख्त कदम भी उठा सकता है।

   चुनाव आयोग को गठबंधन की रैली में बसपा सुप्रीमों मायावती का यह कहना बिल्कुल भी संवैधानिक नहीं लगा जिसमें उन्होंने मुसलमानों से गठबंधन को एकतरफा वोट देने की अपील की थी। इसका संज्ञान लेते हुए मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने सहारनपुर के जिलाधिकारी से रिपोर्ट मांगी तो जिलाधिकारी ने बिना देरी करे रिपोर्ट आयोग को सौंप दी। गौरतलब हो, भाजपा ने भी चुनाव आयोग से मायावती की इस अपील की शिकायत की थी। भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष और चुनाव प्रबंधन प्रभारी जेपीएस राठौर ने मायावती की मुसलमानों से की गई एकतरफा अपील को धार्मिक उन्माद फैलाने वाला भाषण बताया। चुनाव आयोग को लिखित शिकायत में उन्होंने कहा कि यह आचार संहिता का उल्लंघन है। किसी एक दल को सीधे वोट देने के लिए दबाव डालना उचित नहीं है। राठौर ने मांग की है कि चुनाव आयोग द्वारा कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न हो।

   बताते चलें रैली में अपने भाषण में मायावती ने कहा था ‘मैं खासतौर पर मुस्लिम समाज के लोगों से यह कहना चाहती हूं कि आपको भावनाओं में बहकर, रिश्ते-नातेदारों की बातों में आकर वोट बांटना नहीं है, बल्कि एकतरफा वोट गठबंधन को देना है।’ मायावती ने रैली में मुसलमानों से खासतौर पर अपील करते हुए कहा कि वे कांग्रेस को वोट न देकर सिर्फ गठबंधन को वोट दें ताकि भाजपा को सत्ता से बेदखल किया जा सके। ऐसा नहीं है कि मायावती को इस बात का अहसास नहीं था कि वह गलत बयानी कर रही हैं,लेकिन शायद उन्हें लगता होगा चुनाव आयोग उनके बयान पर जब तब कार्रवाई करेगा तब तक तो उन्हंे वोटों के रूप में इसका सियासी फायदा मिल भी चुका होगा।

     बात भाजपा की कि जाए तो ऐसा लगता है कि कांगे्रस ने केरल के  वायनाड से मुस्लिम लीग के रूप में उसे (भाजपा)पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिन्दुत्व के नाम पर वोटों का धु्रवीकरण करने का नया हथियार थमा दिया है। 04 अप्रैल को यूपी से हजारों किलोमीटर दूर केरल के वायनाड में जैसे ही राहुल गांधी के रोड शो में मुस्लिम लीग के झंड़े लहराते दिखे,भाजपा के स्टार प्रचारक और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी सियासी तपिश पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक पहंुचा दी। यहां प्रथम दो चरणों का मतदान 11 और 18 अप्रैल को होना है। भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक बार फिर वैसा ही प्रयोग करने जा रही है जैसा उसने 2014 के लोकसभा चुनाव में किया था। तब भाजपा ने मुजफ्फरनगर के दंगों को हवा-पानी देकर अपनी जीत की राह आसान की थी और अब वह मुस्लिम लीग के सहारे सबको ‘धो’ देना चाहती है। 2014 के आम चुनाव में भाजपा ने 2013 के मुजफ्फरनगर नगर दंगों (जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे और अरबों की सम्पति का नुकसान हुआ था) के बाद सपा-बसपा,रालोद और कांगे्रस नेताओं की तुष्टिकरण वाली सियासत को बड़ा हथियार बनाया था। तक मुस्लिम वोटर नाराज न हो जाए इसलिए भाजपा को छोड़कर किसी भी दल का नेता हिन्दू पीड़ितों का दुख-दर्द सुनने नहीं गया था। जिसके चलते वेस्ट यूपी से कांगे्रस,सपा और बसपा का पूरी तरह से सफाया ही हो गया था।

   खैर, मुस्लिम लीग का नाम लेते ही जहन में आजादी से पहले की वह पार्टी याद आती है जिसकी मांग पर ही भारत का बंटवारा हुआ था। मुस्लिम लीग का मूल नाम ’अखिल भारतीय मुस्लिम लीग’ था। जिसने 1947 में आजादी मिलने के समय एक अलग मुस्लिम राष्ट्र के लिए आन्दोलन चलाया था। मुस्लिम नेताओं, विशेषकर मुहम्मद अली जिन्ना ने इस बात का भय जताया कि स्वतंत्र होने पर भारत में सिर्फ हिन्दुओं का ही वर्चस्व रहेगा। इसीलिए उन्होंने मुस्लिमों के लिए अलग से एक राष्ट्र की मांग को बार-बार दुहराया। मुहम्मद अली जिन्ना ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया और 1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद लीग पाकिस्तान का प्रमुख राजनीतिक दल बन गई। इसी साल इसका नाम बदलकर ‘ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग’ कर दिया गया तो हिन्दुस्तान में यह अपने पुराने नाम से ही काम करती रही।

   केरल के वायनाड से जब कांगे्रस ने राहुल को  चुनाव लड़ने का फैसला लिया तो उसकी नजर यहां के करीब 51 प्रतिशत मुस्लिम और ईसाई वोटरों पर थी। यहां तक तो सब ठीक रहा,लेकिन राहुल के नामांकन जुलूस में हरे झंडे लहराते दिखे तो भाजपा को राहुल के खिलाफ बड़ा हथियार हाथ लग गया।

   दरअसल, राहुल के रोड शो में केरल में पार्टी की सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के झंडे ने विवाद खड़ा कर दिया । आईयूएमएल का झंडा देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले मुस्लिम लीग के झंडे जैसा है। हरे रंग के इस झंडे को रोड शो के दौरान लहराए जाने के वीडियो सोशल मीडिया में आने के बाद कई तरह की चर्चाएं चलने लगीं। खास बात यह है कि कांग्रेस भी राहुल के नामांकन और रोड शो के दौरान आईयूएमएल के झंडों से बचना चाह रही थी। लेकिन इसके बावजूद राहुल के रोड शो में ये झंडे देखे गए।

   इस मुददे को भाजपा ने तुरंत लपक लिया। योगी आदित्यनाथ ने राहुल पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाया और कहा कि उन्होंने अपने रोड शो में मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं को झंडा लहराने से मना किया. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और राहुल बेनकाब हो गए। पीएम मोदी भी एक रैली में राहुल का बिना नाम लिए कह चुके हैं, कुछ लोग हिंदुओं से इतना घबरा गए हैं कि अल्पसंख्यक बहुल सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं, ताकि उन्हें हिंदू बहुल सीट से हार ना झेलनी पड़े।’ वानयाड लोकसभा सीट वामपंथियों का मजबूत गढ़ है। पिछले चुनाव में भाजपा को यहां से मात्र 08 प्रतिशत वोट मिले थे। कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी पर आरोप यही लग रहे हैं कि एक तरफ तो वह मोदी के खिलाफ जंग छेड़ते हैं दूसरी तरफ मोदी को चुनावी मैदान में परास्त करने की बजाए वह ऐसी जगह से चुनाव लड़ते हैं जहां भाजपा का वजूद ही नहीं है।

  खैर, एक सच्चाई यह भी है कि मुस्लिम लीग भले ही मुसलमानों की पार्टी है लेकिन केरल के उत्तरी इलाकों में ये पार्टी दलित, पिछड़ी जाति और आदीवासी तक को साथ लेकर चलती है,इसी लिए कांगे्रस इसके मोहपाश से बच नहीं पाई।

लेखक अजय कुमार यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं. 

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