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11.7.08

उनको अपने भले की चिन्ता है, मुल्क की क्या करें भलाई वे

ग़ज़ल
देश की दे रहे दुहाई वे.
बांट खायेंगे फिर मलाई वे.

लोटे बिन पेंदी के लुढ़क करके,
दे रहे देखो अब सफाई वे.

गांड फाड़े है सब की मँहगाई,
बुश से करने चले सगाई वे.

चोर-चोरों में मौसिया रिश्ता,
हैं तो आपस में भाई भाई वे.

उनको अपने भले की चिन्ता है,
मुल्क की क्या करे भलाई वे.

भाँड निकले हैं फिर तमाशे को,
कर रहे देखो जगहँसाई वे .

हमने जिन पे था एतबार किया,
आज करते हैं बेवफ़ाई वे.

रोज़ ताज़ा वो ज़ख्म देते हैं,
हँस के बांटे हैं फिर दवाई वे।
-डॉ.सुभाष भदौरिया, अहमदाबाद.

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

डा.भदौरिया,अभी मेरे पास एक भले आदमी ने फोन करा और बताया कि आप मलद्वार या गुदा के स्थान पर भदेस भाषा के शब्द का प्रयोग कर रहे हैं जिस पर उन्हें आपत्ति है,आप बताएं कि उस शिशु-भड़ासी की समस्या का क्या उपाय है....

Anonymous said...

डॉक्टर साब,
भदौरिया जी ने तो बड़ी जल्दी बड़ी जल्दी बच्चे का कहना मान लिया और शब्दों को तब्दील कर दिया. ताज्जुब है .... अर्ररे बच्चा जितनी बार टॉफी मांगेगा थोड़े ना उसे देंगे, भदौरिया जी और डॉक्टर साब बच्चे को समझाओ, बेटा भडासी हो तो भाडासाना अंदाज में खुद भी नजर आओ और ओरों को भी देखो.
जय जय भड़ास

subhash Bhadauria said...

डॉ.रूपेशजी और रजनीश जी
भाषा का प्रोफेसर हूँ उर्दू,हिन्दी,गुजराती पर 1990 में पीएच.डी की है उर्दू छन्द शास्त्र पर काम है.शब्दों की कमी नहीं है.ऐसा लिख सकता था.

कीमतें आसमां को छूती हैं,
बुश से करने चले सगाई वो.

ऊपर की पंक्तियों के साथ
अब इन पंक्तियों को देखो-

गांड फाड़े है सब की मँहगाई
बुश से करने चले सगाई वो.
सो मेरे यारो उपरोक्त शब्द का प्रयोग जानबूझ कर किया है जो इस ग़ज़ल की जान है ये कबीराना ग़ज़लें है.लौडें से कहो भजन मंडली में शामिल हो जाये और सिया राम मैं सब जगजानी का आलाप करे भले कब्ज हो जाये.
हम तो फिर कह रहे हैं भजन कीर्तन से तो देश की बरसों से मिट्टी पलीत हो रही है हमारा तो मशवरा है इन शातिर नेताओं की----

खोलो चड्डी मारो गांड,
देश का होगा तब कल्याण.
यही भड़ासी रंग है प्यारे, मेरे नन्ने मुन्ने दुलारे.
हम समझते हैं लौंडों के साथ बापों का भी समाधान होगया होगा. जय भड़ास