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15.9.11

क्या हिंदू राष्ट्रवादी देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरा है?



 क्या हिंदू राष्ट्रवादी  देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरा है? 


अमरीकी संसद की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में स्वदेशी हिंदू चरमपंथ बढ़ता 
जा रहा है
रिपोर्ट कहती है कि इसका भारत की राष्ट्रीय मानसिकता पर गहरा असर पड़ा है और कई विश्लेषकों का
कहना है कि हिंदू राष्ट्रवादी देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरा साबित हो सकते हैं.
इस रिपोर्ट में गुजरात प्रशासन और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ों के पुल भी बांधे
 गए हैं
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कभी गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगे के बाद वीजा देने से मना करने वाले
 अब तारीफ करते हैं .(बिना स्वार्थ के, शंका है)
अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए किसी भी देश को आतंक फेलाने के नाम पर कुचल डालने वाले
 लोग अब समस्त हिन्दू धर्म को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरा मानने की शंका कर रहे हैं .
क्या इस संसार के किसी भी देश में इतनी संस्कृतियाँ फल फूल पाई है जितनी हिन्दुस्थान में पोषित हो रही है ?
क्या संसार का  कोई भी देश सभी धर्मों और मजहबों को साथ लेकर चल पाया है ,यह ताकत हिन्दुस्थान में है
और बहुसंख्यक हिन्दुओ की बदोलत है इस सत्य को संसार को स्वीकार करना पडेगा .

 देश के धर्म निरपेक्ष स्वरूप को बचाने के लिए धर्मांतरण को रोकना होगा,हिन्दू धर्म को पुष्ट करना होगा  .
हिन्दू एक पंथ नहीं है ,यह जीवन पद्धति है ,यह संस्कृति  है ,यह सनातन है,शत्रु पर भी दया इस धर्म में झलकती है ,वसुधेव कुटुम्बकम का सिद्धांत विश्व सभ्यता को हिन्दू धर्म ने दिया है .
वे लोग शिकागो धर्म सम्मलेन के युवा भारतीय को भूले जा रहे हैं .
विडम्बना है की लोग अपने गिरेबान में नहीं झांकते हैं  
    

6 comments:

रविकर said...

देखी रचना ताज़ी ताज़ी --
भूल गया मैं कविताबाजी |

चर्चा मंच बढाए हिम्मत-- -
और जिता दे हारी बाजी |

लेखक-कवि पाठक आलोचक
आ जाओ अब राजी-राजी |

क्षमा करें टिपियायें आकर
छोड़-छाड़ अपनी नाराजी ||

Dr Om Prakash Pandey said...

dharm nirpeksh jaise visheshan to maanavata ke liye sharmanaak hain . mujhe to sarb dharm sadbhaav ewam sarv dharm samanvay pasand hai aur hindu isake guru hain .

तेजवानी गिरधर said...

आप लाख शब्दजाल में उलझाएं और कहें कि हिंदू कोर्ठ धर्म या पंथ नहीं है, मगर असल बात ये है कि हिंदू धर्म ही है, दुर्भाग्य है कि आप जैसे लोग इसे सनातन कहते रहे और इसी सनातन धर्म में से जैन बौद्ध और सिख अलग हो गए, केवल खुशफहमी में रहना है तो रहिए

seema prakash said...

जल्दी ही हमारे ब्लॉग की रचनाओं का एक संकलन संभावित है. मैं आपको पढता रहा हूँ, अच्छा लगता है.

सादर आमंत्रण आपको... ताकि लोग हमारे इस प्रकाशन के द्वारा आपकी सर्वश्रेष्ट रचना को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें और सदैव लाभान्वित हो सकें.

हमसे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़े लेखकों का संकलन छापने के लिए एक प्रकाशन गृह सहर्ष सहमत है. हमें प्रसन्नता होगी इस प्रयास में आपका सार्थक साथ पाकर, यदि संभव हो सके तो आपके शब्दों को पुस्तिकाबद्ध रूप में देखकर.

सादर, संवाद की अपेक्षा में... जन सुनवाई

अधिक जानकारी हेतु लिंक http://jan-sunwai.blogspot.com/2011/09/blog-post.html

Ugra Nagrik said...

Blog rachnaon ke prakashan me main interested hun, if reasonable . Pl contact - NAGRIK, L-V-L /185, LUCKNOW -226024. Mob-9415160913 Email- priyasampadak@gmail.

Anonymous said...

सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म एक दूसरे के विलोम है । जब सत्यनिरपेक्ष व न्यायनिरपेक्ष शब्द व्यावहारिक नहीं है तब धर्मनिरपेक्ष शब्द व्यावहारिक कैसे हो सकता है । इसलिए भारत पंथ निरपेक्ष देश है ।