-अजमेर से शकीर रहमान भाई ने अपने मोबाइल नंबर के साथ एक मेल भेजकर भड़ास की मेंबरशिप के लिए अनुरोध किया है। शकीर भाई, आपको न्योता भेज दिया है। मेंबर बनते ही एक पोस्ट लिखकर अपने बारे में, अपने शहर के बारे में और अपने करियर व जीवन के बारे में थोड़ा हम भड़ासियों को भी बताइएगा ताकि आपसे जान पहचान बढ़ सके।
-शार्दूल विक्रम जी, आपने भड़ास की मेंबरशिप के लिए मेल भेजकर अनुरोध किया है, साथ में मोबाइल नंबर भी दिया है, शुक्रिया। आपको मैंने निमंत्रण भेज दिया है। मेंबर बनते ही पहली पोस्ट प्रकाशित कर भड़ासियों को अपने आगमन की खबर दे दीजिएगा।
-अपने वरिष्ठ भड़ासी साथी अंकित माथुर के सौजन्य से सहारनपुर के खालिद और बनारस के गौरव मिश्रा ने भड़ासी बनने के लिए अनुरोध किया है। अंकित भाई, दोनों ही साथियों को मैंने उनकी मेल आईडी पर न्योता भेज दिया है। उम्मीद करते हैं कि वो भी भड़ासी बनकर भड़ास पर धमाल मचाएंगे। दोनों साथियों का एडवांस में स्वागत कर देता हूं।
-शेफाली, आपके अनुरोध पर आपको भी भड़ास का मेंबर बनने के लिए न्योता भेज दिया गया है। हालांकि हम भड़ासी थोड़े बेवकूफ, बुरे व भदेस किस्म के लोग हैं, बावजूद इसके आपको लगता है कि आप इन लंठों के साथ मजे में रह सकेंगी तो आपका स्वागत है।
-गिरीश बिल्लोरे जी अपने पुराने व सक्रिय भड़ासी साथी रहे हैं लेकिन पिछले दिनों जब कुछ लोगों ने भड़ास की भाषा व अश्लीलता आदि को लेकर चूतियापे का बवाल मचाया तो उसी दौरान बिल्लोरे साहब भी चुपके से भड़ास से कट लिए। एक दो और साथी भी कट लिए। ऐसे साथियों के बारे में मेरी बड़ी साफ राय है कि कमजोर दिल वाले और मौका देकर पलटी मारने वालों के लिए भड़ास में कोई जगह नहीं है। बिल्लोरे जी के हर कदम पर भड़ास खड़ा रहा पर जाने किस बात पर वो चुपके से भड़ास से कट लिए। बिल्लोरे जी ने जो मेल भेजा है उसमें वजह बताया है रमेश मिश्रा की पोस्ट को। तो भइये, रमेश मिश्रा की पोस्ट से आपको दिक्कत थी तो मुझे फोन करते, एतराज जताते....। ये क्या कि चुपचाप खुद की मेंबरशिप डिलीट कर दी। आप अब अगर दुबारा भड़ासी बनना चाहते हैं तो कृपया स्पष्टीकरण दें कि....
नंबर एक- आपने देखा कि भड़ास के खिलाफ माहौल बन रहा है तो चुपके से कट लिए, क्या ये अवसरवादिता नहीं है कि जिस भड़ास ने आपकी लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया, आपके ब्लाग को प्रमोट किया, आपने भड़ास का अपने ब्लाग के लिए बखूबी इस्तेमाल किया और हम लोगों ने होने दिया....और उसी भड़ास के सामने जब कुछ चूतियों ने संकट खड़ा किया तो आप निकल लिए पतली गली से? हमें लगता है कि ये घोर अवसरवादिता है, आपका क्या कहना है?
नंबर दो- अगर किसी रमेश मिश्रा की किसी पोस्ट से आपको दिक्कत थी तो आपको मुझे तुरंत फोन कर मिश्रा की पोस्ट हटवाने का अनुरोध करना चाहिए था और ये हक हर एक भड़ासी को है। आपने ऐसा करने के बजाय भड़ास की सदस्यता ही डिलीट कर दी। मुझे तो लगता है कि रमेश मिश्रा का मामला एक बहाना है, आप असल में दिल से कमजोर आदमी हैं, ये मेरा आरोप है? हो सकता है मैं गलत हूं, आप स्पष्टीकरण दें।
नंबर तीन- अब जबकि सीधे सदस्यता लेने की परंपरा खत्म कर दी गई है तो आपने अनुरोध किया है कि आपको फिर से भड़ासी बना लिया जाए। मेरा मानना है कि जब आपने अपना रंग दिखा ही दिया है तो आपको फिर क्यों भड़ास का सदस्य बनाया जाए? भड़ास दरअसल उन साथियों और दोस्तों के लिए है जो मुश्किल घड़ी में भी साथ रहते हैं और साथ लड़ते मरते हैं न कि सुख के साथी बने रहिए और दुख में पोलो ले लीजिए।
हो सकता है मैं गलत होउं लेकिन यह तभी स्पष्ट हो पाएगा जब आप अपनी स्थिति स्पष्ट कर देंगे। उम्मीद है आप मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगे और मेरे बातों को मेरी भड़ास समझकर अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे।
जय भड़ास
4.3.08
भड़ासी बनने को छह अनुरोध, बिल्लोरे फिर चाहते हैं भड़ासी बनना, भई क्यों बनाएं?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
billore ko kbhi member mt bnana bhai....rnge siyar ko pahchankr maf krna dhokha hai...sbke sath
अब जानने-पहचानने का दौर शुरू होगा जो वो फाईनल होगा क्योंकि सबसे पहले क्वार्टर फाईनल में एक बार दादा ने भड़ास को ही डिलीट कर दिया था और अब आपत्ति काल में सेमीफाईनल हो गया जिसमें गिरीष बिल्लोरे,आशीष जैसे कमजोर विकेट गिर गये लेकिन मैच तो हम भड़ासी ही जीते....
जय जय भड़ास
DADA BHUL GAYE KYA ''HAM DUSHMANON PAR BHI JAAN CHHIRAKTE HAIN''...KYA KIJIEGA EK MAUKA DE DIJIE.
nhi mnish bhagodon ko goli maro
धन्यवाद दादा। खालिद हसन व गौरव मिश्रा
काफ़ी तेज़ तर्रार पत्रकारों में से हैं।
आशा है, कि वे जल्द ही अपना सक्रिय योगदान
भड़ास पर देना शुरु कर देंगे।
धन्यवाद...
किसी बात का बखेड़ा बनाना ठीक नही, कि आप टाईटिल से लेख लिख डालिये। भड़ास का मंच बहुत पाक साफ नही रहा है।
आपको निवेदन ठुकरा देना था या उन्हे व्यक्तिगत रूप से मना कर देना था। इस प्रकार का सार्वजनिक प्रर्दशन सुचिता पर प्रश्न खड़ा करता है।
Post a Comment