न जाने कितनी बार लिखा और मिटाया ,समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे बात शुरू करें । लेकिन जो मन में है वो तो कहना ही है क्योंकि भाई बोलते है कि अगर मन में बात रखा तो बीमार हो जाते हैं । अभी मेरे नाम वाली मनीषा बहन से एकदम सीधी बात कि आपको मेरे कारण परेशानी और दुख हुआ तो माफ़ करिये मुझे और मेरे भाई को । भाई तो इमोशनल हैं तो उन्होंने मेरे को लेकर एकदम डिफ़ेंसिव तरीका अपना लिया वो भी गलत नही हैं । आप लोगों के सामने मैं भाई की लिखी एक कविता रख रही हूं जिससे आप सबको भाई की सोच की गहराई और प्रेम व करुणा का अंदाज हो जायेगा ।
ए अम्मा,ओ बापू,दीदी और भैया
आपका ही मुन्ना या बबली था
पशु नहीं जन्मा था परिवार में
आपके ही दिल का चुभता सा टुकड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
कोख की धरती पर आपने ही रोपा था
शुक्र और रज से उपजे इस बिरवे को
नौ माह जीवन सत्व चूसा तुमसे माई
फलता भी पर कटी गर्भनाल,जड़ से उखड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
लज्जा का विषय क्यों हूं अम्मा मेरी?
अंधा,बहरा या मनोरोगी तो नहीं था मैं
सारे स्वीकार हैं परिवार समाज में सहज
मैं ही बस ममतामय गोद से बिछुड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
सबके लिए मानव अधिकार हैं दुनिया में
जाति,धर्म,भाषा,क्षेत्र के पंख लिए आप
उड़ते हैं सब कानून के आसमान पर
फिर मैं ही क्यों पंखहीन बेड़ी में जकड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
प्यार है दुलार है सुखी सब संसार है
चाचा,मामा,मौसा जैसे ढेरों रिश्ते हैं
ममता,स्नेह,अनुराग और आसक्ति पर
मैं जैसे एक थोपा हुआ झगड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
दूध से नहाए सब उजले चरित्रवान
साफ स्वच्छ ,निर्लिप्त हर कलंक से
हर सांस पाप कर कर भी सुधरे हैं
ठुकराया दुरदुराया बस मैं ही बिगड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
स्टीफ़न हाकिंग पर गर्व है सबको
चल बोल नहीं सकता,साइंटिस्ट है और मैं?
सभ्य समाज के राजसी वस्त्रों पर
इन्साननुमा दिखने वाला एक चिथड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
लोग मिले समाज बना पीढियां बढ़ चलीं
मैं घाट का पत्थर ठहरा प्रवाहहीन पददलित
बस्तियां बस गईं जनसंख्या विस्फोट हुआ
आप सब आबाद हैं बस मैं ही एक उजड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
अर्धनारीश्वर भी भगवान का रूप मान्य है
हाथी बंदर बैल सब देवतुल्य पूज्य हैं
पेड़ पौधे पत्थर नदी नाले कीड़े तक भी ;
मैं तो मानव होकर भी सबसे पिछड़ा हूं
क्योंकि मैं हिजड़ा हूं..........
सोचिये हमारे बारे में भी ,मनीषा बहन से एक बार फिर माफ़ी मांगती हूं । अब आप सब लोग होली की तैयारियां करिये ।
नमस्ते
नमस्ते
2.3.08
मनीषा बहन से माफ़ी
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3 comments:
मनीषा दीदी,आज मैं डा.साहब के घर आयी हूं अपने बच्चों के संग रात में रुकूंगी ,माता जी से गप्पें मारूंगी और डा.साहब की सारी कविताएं पढ़ूंगी । मेरी प्यारी बहन मैं और डा.साहब के साथ कितने सारे लोग तुम्हे प्यार करने लगे हैं बस तुम हिम्मत न हारना,सच बताऊं तो मुझे तुम्हारा उस बिगड़ैल दिमाग लड़की से माफ़ी मांगना अच्छा नहीं लग रहा है पर शायद तुम्हे और डा.साहब को देख कर कुछ और प्यार और सरलता सीख सकूंगी .....
manisha bahan aapki yh post bahut marmik aur prasngik hai...aabhar..kvita ke lie bhi...
इस पोस्ट को मैं अभी तक पढ़ी गई कुछ सबसे अच्छी पोस्टों में गिनता हूं। मनीषा, क्या आपको लगता है कि अपने नाम के साथ 'हिजड़ा' लगाना जरूरी है? यह करने का जो भी मकसद था, वह पूरा हो चुका है, लिहाजा मेरे ख्याल से अब इसके बिना भी काम चलाया जा सकता है। डॉ. रुपेश श्रीवास्तव, इस कविता के लिए मैं आपको अपने दिल के सिंहासन पर बिठाता हूं।
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