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4.3.08

सुनले हुअ कि नाही-होली में चोली सिलबावे ला बुढ़बा

पंकज पराशर
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लोग कहते हैं होली का असली मजा ब्रज में आता है, मगर दो-तीन-सालों तक जब मैंने बनारस की होली देखी तो भैया होली में हर बार मन बनारस ही भागता है। तमाम गंभीरता और सोफिस्टीकेशन का लबादा उतरकर अस्सी घाट पर गिर जाता है जब अस्थि-पंजर वृद्ध भी होलियाते हैं- जा रजा पिछबाड़ा संभाल के...सुनले हुअ कि नाही-होली में चोली सिलबावे ला बुढ़बा...और गालियों का आलम यह है कि बहुत मासूमितय से गुरु लोग स्वीकारते हैं, अरे नाहीं बुजरौ वाले के हम कब ले गाली देली मरदे? तो जनाब सोफिस्टीकेटेड मरदे जो हैं न, वह औरत की तरह नजरें नीची करके हँसते रह जाते हैं। ऐसे में होली से पहले जो गलती-कुगलती से दुश्मन नामक विशेषण के दायरे में चले जाते हैं वो भी होली में चोली सिलवाकार साथ पहनाने के लिए निकल पड़ते हैं। होली बीतने के सप्ताह भर बाद तक दर्जियों के यहां गुरु लोग पेल्हड़ (नैतिकतावादी साहब लोग माफ कीजिये, वहां यही शब्द फगुआ में हर खास-ओ-आम प्रयोग में लाते हैं) और चोली के बीच रिश्ते के लिए बरइछा कराने की तैयारी में मुब्तिला हो जाते हैं।
एक अंग्रेज सज्जन अस्सी के पास के एक मोहल्ले भदैनी में एक भदेस पंडितजी से काशी की प्राचीनता के बारे में पूछ रहे थे। पंडित जी ने इत्मीनान से कहा कि अगर आपकी रूचि यहां के इतिहास में है तो आप जाकर बी.एच.यू. के डाक्टरों-प्रोफेसरों से मिलिये...और फिर साहब काशी के इतिहास को उन्होंने शरीर के उन-उन महिला और पुरुष अंगों के साथ जोड़कर बताना शुरु किया जिसके बारे में यहां बताने पर नैतिकतावादी लोग भड़ास को और ज्यादा बदनाम करेंगे। हम वहां जा रहे हैं। लौटकर तो लिखेंगे ही, संभव हुआ तो पल-पल की खबर उसी दिन वहीं से भड़ास पर लिखेंगे।

--पंकज पराशर

5 comments:

Anonymous said...

PARASHAR BHAI HOLI KA YAH ITEM TO GARDA HAI HI KUCHH FAGUAHAT TADKA PAROSIE NA HAM BHADASION KE LIYE.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंकज भाई,पेल्हर ओल्हर लिखने से अगर उन लोगों को समझ में आ गया जिनको होता तो होगा(?)पर वो लोग उसे कुछ और कह कर साहित्यिकता का जामा पहनाए रहे हैं तो फिर साले बवाल करेंगे । इन सालों का बस चले तो मूतें भी नैतिकता की पतलून पहने रहें ज़िप भी न खोलें...
पर आप लगे रहिए ...
जय जय भड़ास

Unknown said...

jio raja...holi me jo boli bolna ho bolo, bhr fagun bhudhaoo devr lgihen....aur budhiya sb girl friend.. jio....jio

Ashish Maharishi said...

आपने तो अचानक ही बनारस की होली की याद दिला दी, बनारस का गदौलिया हो या फिर चौक, हर जगह होली की धूम देखने लायक होती है

विशाल अक्खड़ said...

पंकज भैया, का कर रहे हैं, बनारस कय याद मत दिलाइए. नाहीं, तो कहीं गुरु काशीनाथ सिंह से मुलाकात हुई तो कइहैं, का हो शुकुल बड़े दिन बाद दिखे, कहां मरा रहे थे. उम्मीद है होली में उनके दशॆन जरूर करायेंगे.
विशाल