एक बार फिर संसद शर्मसार हुई। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र फिर से दुनिया के सामने नंगा हो कर खडा हो गया। हालांकि यह पहली बार नही की भारत की संसद में कोई शर्मिंदा कर देने वाली कोई घटना घटी हो पर जिस तरह ये सब हुआ, शायद देश हमारे नेताओं को कभी माफ़ नहीं कर पाएगा।
हुआ यह की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लगातार विपक्ष की ओर से सरकार पर सांसदों की खरीद फरोख्त के आरोप लगे, जिसके जवाब में प्रधानमन्त्री ने कहा की सबूत पेश करें और जवाब में भाजपा के तीन सांसद लोक सभा के अन्दर आए और पूरे देश के सामने ( लाइव ) निकाल कर रख दिए नोटों के बण्डल और चिल्ला कर कहा की ये उन्हें घूस के तौर पर दिए गए।
हो सकता है की ये रूपए उनको दिए गए हो, या फिर ना भी दिए गए हों पर दुर्भाग्य ये रहा कि ये सब देश की गरिमा की प्रतीक भारतीय संसद के अन्दर हुआ। हम सब जानते हैं कि ये सब जोड़ तोड़ होती है पर शायद कभी सोचा नही था कि ये सब टीवी पर लाइव देखने पर मिलेगा।
इधर भाजपा के सांसद अमर सिंह और अहमद पटेल पर घूस देने का आरोप लगा रहे हैं तो अमर सिंह, मुलायम सिंह और कांग्रेस सफाई देने में जुट गई है .................................... टीवी चैनलों को साल का सबसे बड़ा मसाला मिल गया है और आम आदमी परेशान है कि इन लोगों को उसने देश की रक्षा और उत्थान के लिए चुन कर भेजा है ?
अभी हाल ही में एक टीवी न्यूज़ चैनल ज्वाइन किया है और आज की बड़ी ख़बर पर लोगों का चेहरा खिला है कि आज टी आर पी का दिन है पर मेरा जी कुछ भारी हो रहा है। देख कर सोच रहा हूँ कि दुनिया शायद बहुत प्रोफेशनल हो गई है। कल के दुश्मन आज के दोस्त ....... और कल के भाई आज ..................... क्या मतलब इतना मतलबी बना देता है ?
कहीं हम सब ऐसे हो गए हैं क्या ?
क्या सच हमेशा इतना ही कड़वा होता है ?
बशीर बद्र साहब के कुछ शेर याद आ गए हैं तो रख ही देता हूँ .....
जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता ।
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
वो बड़े सलीके से झूठ बोलते रहे
मैं ऐतबार ना करता तो और क्या करता
कभी सोचा नहीं था कि हमारे प्रतिनिधि देश के विकास के प्रतिरोधक बन जाएँगे ........... क्या दुर्भाग्य वाकई इतना दुर्भाग्यशाली होता है ?
...................................................
मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com
हुआ यह की सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लगातार विपक्ष की ओर से सरकार पर सांसदों की खरीद फरोख्त के आरोप लगे, जिसके जवाब में प्रधानमन्त्री ने कहा की सबूत पेश करें और जवाब में भाजपा के तीन सांसद लोक सभा के अन्दर आए और पूरे देश के सामने ( लाइव ) निकाल कर रख दिए नोटों के बण्डल और चिल्ला कर कहा की ये उन्हें घूस के तौर पर दिए गए।
हो सकता है की ये रूपए उनको दिए गए हो, या फिर ना भी दिए गए हों पर दुर्भाग्य ये रहा कि ये सब देश की गरिमा की प्रतीक भारतीय संसद के अन्दर हुआ। हम सब जानते हैं कि ये सब जोड़ तोड़ होती है पर शायद कभी सोचा नही था कि ये सब टीवी पर लाइव देखने पर मिलेगा।
इधर भाजपा के सांसद अमर सिंह और अहमद पटेल पर घूस देने का आरोप लगा रहे हैं तो अमर सिंह, मुलायम सिंह और कांग्रेस सफाई देने में जुट गई है .................................... टीवी चैनलों को साल का सबसे बड़ा मसाला मिल गया है और आम आदमी परेशान है कि इन लोगों को उसने देश की रक्षा और उत्थान के लिए चुन कर भेजा है ?
अभी हाल ही में एक टीवी न्यूज़ चैनल ज्वाइन किया है और आज की बड़ी ख़बर पर लोगों का चेहरा खिला है कि आज टी आर पी का दिन है पर मेरा जी कुछ भारी हो रहा है। देख कर सोच रहा हूँ कि दुनिया शायद बहुत प्रोफेशनल हो गई है। कल के दुश्मन आज के दोस्त ....... और कल के भाई आज ..................... क्या मतलब इतना मतलबी बना देता है ?
कहीं हम सब ऐसे हो गए हैं क्या ?
क्या सच हमेशा इतना ही कड़वा होता है ?
बशीर बद्र साहब के कुछ शेर याद आ गए हैं तो रख ही देता हूँ .....
जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता ।
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
वो बड़े सलीके से झूठ बोलते रहे
मैं ऐतबार ना करता तो और क्या करता
कभी सोचा नहीं था कि हमारे प्रतिनिधि देश के विकास के प्रतिरोधक बन जाएँगे ........... क्या दुर्भाग्य वाकई इतना दुर्भाग्यशाली होता है ?
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मयंक सक्सेना
mailmayanksaxena@gmail.com
5 comments:
शायद पचास सालों में हमारे नेता अपने पैरों पर खड़ा होना भी न सीख पाये, शायद इसलिए भारत पिछड़ा होने का बार-बार सबूत दे रहा है!
भाई,ये सुअर नोटों के बंडल लेकर इस तरह से इसलिये सामने आ गये कि सौदा ज्यादा में हुआ होगा और पूरी रकम मिली नहीं.....वरना ये साले देश डकार जाएं ..... अगर ऐसे ही ईमानदार हैं तो राजनीति में क्या मरा रहे हैं.....
मयंक जी ,
मैंने रामा जी के एक पोस्ट पर भी लिखा है और फ़िर कह रहा हूँ
कि हमारा देश एक अदद क्रांति का तलबगार है. और क्रांति भी शायद
सशस्त्र ! क्योंकि नेताओं की जिस पौध ने इस समय देश पर कब्जा कर रखा है
उन्हें गाँधीवादी तरीकों से उखारना आसान नहीं होगा. परन्तु सवाल फ़िर वही है
कि शुरुआत कौन करेगा . रूपेश जी के अन्दर जो आग जल रही उसमें मुझे उम्मीद
की एक चिंगारी दिखती है . उनका विद्रोही व्यक्तित्व शायद हमें वह जरूरी नेतृत्व प्रदान कर सकता है.
उनकी छटपटाहट उनकी टिप्पणियों में स्पष्ट परिलक्षित होता है. मेरे ख्याल से उन्हें सिर्फ़ हनुमान जी
की तरह उनकी शक्ति की याद दिलाने की जरूरत है. साथ में यशवंत जी और उनका पूरा कुनबा है भड़ासियों का
इस मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए. तो क्या बात आगे बढाई जाय ?
मयंक जी ,
मैंने रामा जी के एक पोस्ट पर भी लिखा है और फ़िर कह रहा हूँ
कि हमारा देश एक अदद क्रांति का तलबगार है. और क्रांति भी शायद
सशस्त्र ! क्योंकि नेताओं की जिस पौध ने इस समय देश पर कब्जा कर रखा है
उन्हें गाँधीवादी तरीकों से उखारना आसान नहीं होगा. परन्तु सवाल फ़िर वही है
कि शुरुआत कौन करेगा . रूपेश जी के अन्दर जो आग जल रही उसमें मुझे उम्मीद
की एक चिंगारी दिखती है . उनका विद्रोही व्यक्तित्व शायद हमें वह जरूरी नेतृत्व प्रदान कर सकता है.
उनकी छटपटाहट उनकी टिप्पणियों में स्पष्ट परिलक्षित होता है. मेरे ख्याल से उन्हें सिर्फ़ हनुमान जी
की तरह उनकी शक्ति की याद दिलाने की जरूरत है. साथ में यशवंत जी और उनका पूरा कुनबा है भड़ासियों का
इस मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए. तो क्या बात आगे बढाई जाय ?
मयंक भाई,
एक बार नही बल्की ये सुअर हमें बार बार ओर हजार बार ऐसे ही शर्मशार करते रहेंगे। ओर डाकटर साहब ने सही कहा कि ये मामला पैसे कम मिलने का होगा नही तो ये सुअर लोग अपनी मा बहन के भी पैसे कमाने से शर्म ना करें।
ओर हां विनय भाई,
पीछडे होने का सबूत सिर्फ़ नेता क्यौं पत्रकार भी अकसर देते रहते हैं, याद करो कि जिसने अपने प्रेस कनफ़्रेंस में मुर्गा ओर दारू ना दी उसकी खबर के प्रति कितने इमानदार रहे थे।
जय जय भडास
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