हे माताराम! संसद में उठापटक हुई, हमने टी.वी.देखा फिर अखबार पढ़े,कुछ बदलाव आया क्या? नहीं आपके खाने के लिये सड़क के किनारे घास भी है और सड़क पर बने गड्ढों में पीने के लिये पानी भी है और मुझे पेट भरने के लिये आपके थन में दूध भी है..... देश में सब ठीक है...(एक पुत्र और उसकी मां के बीच का संवाद जिसमें अनुभवी मां चुपचाप घास चर रही है और दुधमुंहा पुत्र एकालाप कर रहा है)
24.7.08
देश में सब ठीक है
हे माताराम! संसद में उठापटक हुई, हमने टी.वी.देखा फिर अखबार पढ़े,कुछ बदलाव आया क्या? नहीं आपके खाने के लिये सड़क के किनारे घास भी है और सड़क पर बने गड्ढों में पीने के लिये पानी भी है और मुझे पेट भरने के लिये आपके थन में दूध भी है..... देश में सब ठीक है...(एक पुत्र और उसकी मां के बीच का संवाद जिसमें अनुभवी मां चुपचाप घास चर रही है और दुधमुंहा पुत्र एकालाप कर रहा है)
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
Labels: देश
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1 comment:
इस बेहतरीन सँवाद को एक अनुभवी ओर पारखी आंखे ही पढ सकती है। ओर सच कहूं तो ये चित्रण इस बेजुबान के बहाने हमारे देश का है कि देश कि गुंगी बहरी अन्धी कानी लुली लंगडी जनता का किसी भी घटनाक्रम से कोइ सरोकार नही है।
क्युं रपेश भाई।
जय जय भडास
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