ग़ज़ल
ब्लॉग की मौसी बहुत हँसती हैं.
खेत में सबके जा बरसती हैं.
हाय इनकी अदा के क्या कहने !
उल्टे पल्लू में खूब जँचती हैं.
तितलियों और गुलों की बस्ती में,
सबसे पहले ये जा पहुँचती हैं.
छोरियों की करे ये वाह-वा हैं,
हमको अकसर ये आ घुड़कती हैं.
मिल के गाँधी से ये जुआ घर में,
पी के दारू ये फिर बहकती हैं.
चेले लेते हैं इनके इन्टरव्यू,
मौसीजी आप किस पे मरती हैं.
लौंडे जब भी बवाल करते हैं,
फिर तो धीरे से ये खिसकती हैं.
रेप के केश में फँसा गब्बर,
मौसी अपनी भी फिकर करती है.
ज़ख्मी ठाकुर की ये तो ग़ज़लें हैं.
सीधे जा के कलेजे घुसती हैं।
ब्लॉग की मौसी बहुत हँसती हैं.
खेत में सबके जा बरसती हैं.
हाय इनकी अदा के क्या कहने !
उल्टे पल्लू में खूब जँचती हैं.
तितलियों और गुलों की बस्ती में,
सबसे पहले ये जा पहुँचती हैं.
छोरियों की करे ये वाह-वा हैं,
हमको अकसर ये आ घुड़कती हैं.
मिल के गाँधी से ये जुआ घर में,
पी के दारू ये फिर बहकती हैं.
चेले लेते हैं इनके इन्टरव्यू,
मौसीजी आप किस पे मरती हैं.
लौंडे जब भी बवाल करते हैं,
फिर तो धीरे से ये खिसकती हैं.
रेप के केश में फँसा गब्बर,
मौसी अपनी भी फिकर करती है.
ज़ख्मी ठाकुर की ये तो ग़ज़लें हैं.
सीधे जा के कलेजे घुसती हैं।
डॉ.सुभाष भदौरिया अहमदाबाद।
4 comments:
भदोरिया जी,
आपका होलियाना अंदाज पसंद आया, लगता है की बहूत से ब्लोगरों की किताब खोलने का आपका पूरा प्लान है. मगर ये साड़ी तस्वीरें कुछ पुरानी सी लगती है. मगर पुरानी बोतल में नयी शराब का भी अपना मजा है.
जय जय भड़ास
डा.भदौरिया जी,जिनकी आप फाड़ेंगे उनकी तो शायद मोची भी न सिल पाएं :)
रजनीशजी और रुपेशजी मेरे लिए सही जगह भड़ास ही है नेट की दुनिया में मैं पाखंडियों पर जरा भी विश्वास नहीं करता पर यार भड़ासियों को दिल तो दे ही चुका हूँ जा लुटाने को जी चाहता है.आप लोगों की मुहब्बत से मालामाल हूँ.
और करुनाकर के लिए अगले पेंमट पर शीघ्र ही अपना योगदान दूंगा.बेटे की नेशनल युनवर्सिटी में 75000 फीस भरी है उसने इस बार बेंक से शिक्षालोन लेने से मना कर दिया. बेटी की अलग
15000 सो मात्र एकाउंट में 3000 बचे हैं.उधार लेने की आदत नहीं.अब दोस्तों से क्या छिपाना.ये इसलिए लिख रहा हूँ डॉ.रूपेशजी या इस यशवंतजी जाने के सोच रहें होंगे.फिर भी दिल पर इक बोझ है दूर करना चाहता हूँ क्या करुनाकर के एकाउंट में इनटरनेट से डायरेक्ट पैसाभेज सकता हूँ.रूपेशजी बतायें नेक काम में देरी ठीक नहीं.अब 1000 रुपये की तो शहर में इज्ज़त है ही कोई दे ही देगा.आप जल्द बतायें.
वो भी पढ़ने लिखने वाला हम सबका हीबच्चा है.
ये काम जल्द ही कर लूँ.अ
डा.भदौरिया,इतना पारदर्शी मत हो जाएं कि लोगों को दिखना ही बंद हो जाएं। भाईसाहब,हम दोनो के प्रति जितना आपका प्रेम और स्नेह है उससे एक नैनोग्राम भी कम हरगिज नहीं है हमारा भी आपके प्रति प्रेम,इसलिये जुतियाइये मत। करुणाकर के लिये धन ही नहीं दिल से आशीर्वाद चाहिये जो आपकी तरफ से मिल ही गया है शेष तो द्वितीयक बातें हैं। नेट से सीधे पैसा भेज सकते हैं "फंड ट्रान्सफ़र" आप्शन के द्वारा......
सादर
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