आस्तीनों में साँप पलने लगे है
कपडों की तरह लोग ख़ुद को बदलने लगे है
ज़रा ! संभलकर चलना दोस्त, चेहरे
बदल-बदल कर लोग घर से निकलने लगे है
24.7.08
मेरी कलम से
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अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
आस्तीनों में साँप पलने लगे है
कपडों की तरह लोग ख़ुद को बदलने लगे है
ज़रा ! संभलकर चलना दोस्त, चेहरे
बदल-बदल कर लोग घर से निकलने लगे है
1 comment:
भाई,आपकी बात में अपनी तुकबंदी पेल रहा हूं...
गरमी बहुत है... लाइट नहीं है...
लोग हाथ से पंखा झलने लगे हैं :)
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