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20.7.08

वे दो रास्ते

घर से दफ्तर आने के दो रास्ते हैं. एक रास्ते का प्रयोग रोज करता हूं. दूसरे रास्ते का प्रयोग केवल रविवार को. जिस बस से रोज कार्यालय आता हूं, वह रविवार को बंद रहती है. दूसरी बस दूसरे रास्ते से आती है. आइये पहले पहले रास्ते की बात करें. पहले रास्ते पर एक फ्लाईओवर पड़ता है. फ्लाईओवर के नीचे से बस आती है. फ्लाईओवर के नीचे दूसरी ओर अन्य बड़े शहरों (लोग कहते हैं, पर कलकत्ता बड़ा शहर बन रहा है, अभी नहीं है) की तरह कुछ लोग रहते हैं. प्लास्टिक की चादरें तान कर बड़े बिंदास अंदाज में सोते दिखते हैं उन घरों के अधिकतर पुरुष. शायद निगम के पानी आपूर्ति के समय की बदौलत जिस समय मेरी बस वहां से गुजरती है, उसी समय वहां लगे नल पर बड़ी संख्या में उन प्लास्टिक के घरों में रहनेवाली कुछ महिलाएं और लड़कियां नहा रही होती हैं. हालांकि वे काफी कोशिश करती हैं कि शरीर का अधिकांश हिस्सा ढका रहे, पर ... पहले मेरी दिलचस्पी उन महिलाओं और लड़कियों में हुआ करती थी. आजकल बस के यात्रियों पर नजर रहती है. देखता हूं कि जैसे कभी मैं उन महिलाओं को घूर-घूर कर ताका करता था, वैसे ही बस के अधिकतर पुरुष यात्री ताकते हैं. बस में सवार महिला यात्री एक बार उधर नजर डालती हैं और फिर नाक-भौं सिकोड़ कर कहीं और देखने लगती हैं.
आइये अब बात करें दूसरे रास्ते की. जो लोग दिल्ली के रोज गार्डेन के बारे में जानते हैं, उन्हें कलकत्ता के विक्टोरिया मेमोरियल की बाबत बताने की जरूरत नहीं. कभी महारानी विक्टोरिया के स्वागत के लिए बनायी गयी इस इमारत का पार्क अब प्रेमी जोड़ों के मिलन का या यूं कहें थोड़ी-बहुत शारीरिक गरमी (रोज गार्डेन की स्थिति और दयनीय है, विशेषकर शाम को) दूर करने का अड्डा बन गया है. हां, तो रविवार को मेरी बस उसी विक्टोरिया पार्क के किनारे से गुजरती है. आज देखता हूं कि एकदम सड़क के किनारे पार्क में लगे एक वृक्ष और बाउंड्री के बीच एक जोड़ा खड़ा है. लड़का सड़क की ओर देख कर हिचक रहा था और लड़की उससे सटी जा रही थी..........और बहुत कुछ. बस........

4 comments:

अमित द्विवेदी said...

vishal ye bhee jeevan ka ek hissa hai. jin aurton ki aap baat kar rahe ho ab unhe bhee ghoortee aankhon ka dar nahee rah gaya hai. kyunki is shahar me rahna hai to ye sab to karna hee pagegaa. par hamaaree sarkaren is par kitna gambheer hain ye chintaa ka vishay hai.

आलोक सिंह रघुंवंशी said...

भाई इनको समझाना भैंस के आगे बीन समझाने जैसा है। ऊपर से मल्लिका,बिपाशा जैसी हिरोइनों ने तो ज्यादा ही ओपेन कर दिया है।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाईसाहब,ये तो आपने अत्यंत गम्भीर अतंर्राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा उठा दिया है देखिये लोग सीसियसिया गये हैं.... अब पता नही क्या गजब होने वाला है:)

Anonymous said...

विशाल भाई,

ये ऐसा मुद्दा है कि लोगों के दोहरे चरित्र उजागर हो जाते हैं। कहने को आपने सही कहा या गलत इसका निरधारण मैं नही करूंगा मगर तमाम कहने ओर कहलवाने वाले लोग खुद इस पथ का आनंद लेते हैं और लोगों के सामने अपना पिछवाडा रख कर बताने वाले की हम इसका विरोद करते हैं ये हमरी संसकृति का अपमान है।
जागरुकता का विरोध ये तो आदि काल से चली आ रही है ओर होती रहेगे।

जय जय भडास