कई बरस पहले स्कोत्लैंडयार्ड पुलिस के जासूसी किस्सों को लेकर एक किताब पढ़ी थी। उसमें एक पते की बात लिखी थी कि अगर कोई नौसिखिया बदमाश होगा तो सबसे पहले पत्थर का सिक्का बनाएगा और इंग्लैंड के कोने-कोने में फैली अखबार वेंडिंग मशीन से अख़बार खरीदेगा। लेकिन अब तो हद हो गयी है देश के सबसे बड़े प्रदेश की राजधानी जयपुर में कुछ इलाकों में डुप्लीकेट अखबार भी बंटने लगे हैं। मामला भी देश में हिन्दी के सबसे बड़े अखबार का है।
किस्सा यूँ है कि जयपुर शहर में आजकल इलाकाई पत्रकारिता की धूम मची हुई है। हर इलाके में अलग ढंग का अखबार बंटता है। इस चक्कर में कई दफा किसी एक इलाके को किसी ख़ास ख़बर या स्तम्भ से वंचित होना पड़ता है। खाकसार भी छोटा-मोटा कलमकार है और लाहौर (पाकिस्तान) से प्रकाशित होने वाली एक साप्ताहिक पत्रिका में सामजिक-सांस्कृतिक मुद्दों पर स्तम्भ लिखता है। कई बार भारत-पाक दोस्ती और साझा इतिहास के हवाले से किताबों या घटनाओं का भी वर्णन होता है। इसी क्रम में इस हफ्ते भास्कर के मशहूर स्तंभकार जयप्रकाश चौकसे की किताब 'ताजमहल-बेकरारी का बयान' और इस्माईल चुनारा के नाटक 'यादों के बुझे हुए सवेरे' का ज़िक्र किया गया था। जयप्रकाश चौकसे जी को फ़ोन कर यह सूचना दी गयी तो बातों-बातों में उन्होंने पोछा कि आज यानी आठ जुलाई का स्तम्भ देखा क्या? बन्दे ने जवाब में कहा कि आज तो आपका स्तम्भ छपा ही नहीं। ज़ाहिर है इस से स्तंभकार को बुरा ही लगा होगा। उन्होंने कोई घंटे भर बाद फ़ोन करके कहा कि राजस्थान के सम्पादक जी ने कहा है कि आपका स्तम्भ तमाम संस्करणों में प्रकाशित हुआ है। मैंने दुबारा अखबार देखा तो घर से दस किलोमीटर दूर एक दफ्तर में मिले सिटी भास्कर में भी 'परदे के पीछे' स्तम्भ नदारद था।
खैर यह तो एक दिन कि बात हुई। अगले दिन भी येही आलम रहा, यानी जयप्रकाश चौकसे जी का कालम नहीं छपा तो नहीं ही छपा। हद तो तब हुई जब लगातार तीसरे दिन भी सम्पादकों ने स्तम्भ नहीं छापा। आज जब सुबह चौकसे जी से बात हुई तो वोह बोले कि यार अपने अखबार विक्रेता से ही कहो कि इस कालम के बिना भास्कर नही दिया करे।
इस पूरे मामले में एक बात सामने आई कि स्तंभकार कों सम्पादक कह रहे हैं कि स्तम्भ रोज़ छप रहा है और पाठक कों पढ़ने कों नही मिल रहा। बकौल चौकसे जी एक सम्पादक जी ने तो उन्हें शहर के ६ के ६ संस्करण डाक से भेजने की बात कही।
इसी लिए यह ख़याल पैदा हुआ कि हो न हो जयपुर शहर में जाली अखबार छप रहे हैं, तभी तो पाठको कों अपने पसंदीदा लेखक का लिखा पढ़ने से वंचित किया जा रहा है। अब यह खोजी पत्रकारिता के लिए बड़ा चुनौतीपूर्ण काम है कि जाली अखबार छपने वालों का पर्दाफाश किया जाए, ताकि पत्रकारिता की साख बची रहे, सम्पादक जी की बात झूठी ना हो और पाठकों के साथ भी न्याय हो।
10.7.08
और अब जयपुर में डुप्लीकेट अखबार भी बांटने लगे ...
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6 comments:
भाई अगर किसी में दम हो तो इस घाटे के सौदे में हाथ डाल कर तो देखो कि कोई इतना बड़ा चूतियापा किस आधार पर कर रहा है....
भाई,
रुपेश भाई ने सही कहा है कोई भी इतना बड़ा चुतियापा नहीं कर सकता है, मुझे तो लगता है की आपके वाले अखबार से चौकसे जी वाली खबर गिर पड़ती होगी ;-) वैसी कमाल तो दोनों तरफ का है लेखक का भी और सम्पादक का भी, और अखबारी दुनिया में ये चलता रहता है.....
जय जय भड़ास
ye baat kuch hajam nahi hoti, koi kisi ek column ke liye poora akhbar kyo chapega bhai, wo bhi bhaskar wali quality me
is baat me koi dum nahi he..
prem jee kee baat ka gawaah hun jaipur ke jis ilaake men rahtaa hun...wahaan chaukse jee ka column chhapaa us din chhapaa thaa...aisaa mumkin hai alag ilaakon men alag edition gayaa ho ,akhree moment tak chhapte -2 page alter hote hain par ye sampadak aisaa kyon kar rahe hain samajh naheen aayaa...visheshkar apne akhbaar ke ek lokpriy column ke liye...khudaa khair kare.....
prem jee kee baat ka gawaah hun jaipur ke jis ilaake men rahtaa hun...wahaan chaukse jee ka column chhapaa us din chhapaa thaa...aisaa mumkin hai alag ilaakon men alag edition gayaa ho ,akhree moment tak chhapte -2 page alter hote hain par ye sampadak aisaa kyon kar rahe hain samajh naheen aayaa...visheshkar apne akhbaar ke ek lokpriy column ke liye...khudaa khair kare.....
भाई साहब ऎसा है कि सिटी भास्कर में छपता है चौकसे साहब का परदे के पीछे।।।।।। अब सिटी भास्कर प्रदेश के संपादक जी कुछ खास लॊग मिलकर छापते है।।। तॊ चौकसे जी ज्यादा महत्वपूर्ण हुए कि संपादक जी के चेले।।।। अब अगर कालम नहीं छपा तॊ नहीं छपा।।।। इसमें इतनी हाय तौबा करने की क्शा जरूरत है।।।
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