भड़ास4मीडिया डाट काम (WWW.BHADAS4MEDIA.COM) से फुर्सत निकालकर भड़ास पर आकर लिखना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है पर मेरा पहला प्यार तो ये ब्लाग भड़ास ही है। भड़ास4मीडिया उस सौतन की तरह है जो नई आई और छा गई लेकिन ओल्ड इज गोल्ड को कैसा भुला देंगे। तो चलिए, बहुत दिन बाद, दो बातें आप तक पहुंचाता हूं। भड़ास4मीडिया को लेकर मेरे पास रोजाना 50 से 60 मेल आती हैं। इसमें ज्यादातर मेलों में भड़ास4मीडिया जैसा पोर्टल लांच करने के लिए मुझे बधाई दी गई होती है। उसी में से एक मेल आपके सामने रख रहा हूं।
दूसरी मेल एक पत्रकार की दास्तान है। किस तरह उसे प्रताड़ित किया जाता रहा है। मतलब, पत्रकारिता में अब शरीफों का गुजारा नहीं। आपको या तो बदमाश बनना होगा या फिर बदमाशी में शामिल होना होगा।
दोनों पत्रों इस तरह हैं....(पत्र लेखकों के नाम बदल दिए गए हैं ताकि वे जहां काम कर रहे हैं वहां उन्हें कोई दिक्कत न हो)
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यशवंत जी,
भड़ास4मीडिया इतना लोकप्रिय हुआ है कि अंग्रेजीदां लड़कियां भी इस े निहारती रहती है। ऑफिस आने पर सबसे पहला काम होता है भड़ास4मीडिया खोलना। वजह साफ है कि इसकी विषय वस्तु इतनी सटीक और रिपोर्टिंग इतनी सख्त होती है कि बड़े-2 सूरमा कांप उठे हैं।मुझे लगती है इसकी रोजाना हिट्स 20-30 हजार तो जरुर होगी। इधर कुछ मीडियाकर्मी अपनी तारीफ भी सुनने को इच्छुक हो गए हैं या कईयों को लगता है कि उनके काम की तारीफ न होकर सिर्फ उनके सहकर्मी के काम की तारीफ हुई है। कुलमिलाकर कहने का मतलब ये कि इस साईट ने जितनी जल्दी मीडियाकर्मियों के बीच अपनी जगह बनाई है वो वाकई काबिले
तारीफ है। मुझे लगता है कि आनेवाले वक्त में इस साईट पर और भी अभिनव प्रयोग किये जाएंगे और इसको और भी प्रासंगिक बनाया जाएगा।
धन्यवाद सहित
विक्रांत
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yashwant sir
mai copy editor hu. pichle mahine etv chodkar delhi me ek news channel ko join kar liya hai.
sir etv me mere saath bahut bura saluk kiya gaya. mai apne anubhav ko aapke ssath batna chata hu ki kaise juniour ke saath seniour behave karte hai.
sir, hyderabad me sayad hi aaisa din hoga jis din hum nahi roye the. ek loby ke sikhar hum ho gaye kyonki hum shirf apne kam se matlab rakhte the, kisi ki siykayt karna ya sunna mujhe pasand nahi.
sir rojana meri sikayat ki jati thi. manager bhi meri baat nahi sunte the. meri 8 mahine tak night shift laga di gai.office aane ke bad bhi meri 20 dino ki salery absent dikha kar kat di gai.sir mere saath aaisa kiyo kiya gaya yah sawal aaj tak mere kano me gunj raha hai, hame jawab chahiya , kya aake pass hai jawab?
aabhi bhi mere siniours chahte hai ki kisi tarah meri job chli jaye.
aapka
anil
14.8.08
हैदराबाद में शायद ही ऐसा दिन होगा जिस दिन हम नहीं रोये हों
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5 comments:
दादा,शरीफ होने का मतलब बौड़म या झकलठ होना तो नहीं है कि बदमाशी करे बिना काम नहीं चलता है लेकिन व्यक्ति-देश-काल के अनुसार हर बात की परिभाषा बदल जाती है तो तदनुरूप ही कार्य करना उचित कहा गया है मुनिजनों के द्वारा...:)
दादा,
शरीफों और बदमाशों की परिभाषा बदल सी गयी है, यदि अपने दायित्व का इमानदारी से निर्वहन करना है तो इन के जमात में शामिल होना ही पड़ेगा या यों कहें की सफेदपोश शरीफ होने से अच्छा है की बदमासों की जमात में शामिल हो लिया जाए.
परिभाषा जो बदलनी है.
जय जय भड़ास
anil ye etv wale saale hai hi chor inko khud to kuch aata nahi hai aur jo kaam karte hai unme galti nikalte hai 2mne accha kiya jo us sansthan ko chor diya kyu ki waha par acche logo ki kadra nahi hai aur jaha ka management sari vyvastha ko dekhe us organisation ka kya hoga waha par news ki nahi pattechati ki jaroorat hai tabhi waha par tika ja sakta hai kyu ki jo waha par abhi tak kaam kar rahe hai wo apne kaam ke ba par nahi pattechati ke bal par hai 2mne sahi kiya jo us sansthan ko chor diya buck up ishwr kare tumhe aur achha mukam hasil ho.........
kya bhai aap log bhi ase channelon ki badtameeji bardasht karte rahte hain, jis din pahli baar aapke sath galat kiya gaya, usi din aapko ase HARAMKHOR CHANNEL ko chhod dena tha.
दादा मैं तो प्रोफेशनल मीडिया से नहीं जुडा क्योंकि उसी इ टी वी से मैं जुड़ना चाहता था किंतु वहां मनोज जी मेरे दोस्त पहले से थे और उन्होंने जो कुछ बताया वह मेरे अनिल भाई की दास्ताँ से कम नहीं आख़िर बोस टाइप लोग या सेनिओरिटी दिखने वाले लोग ये क्यों भूल जाते हैं की बद्दुआ भी कोई चीज होती है. जिसका दिमाग तंग करने वाले कीरे से भाडा हो उसको वही कीडा एकदिन काट खता है.
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