कभी कामना कामना को लजाये॥
चलो तृप्ति के द्वार डोली सजाएं॥
मुझे आइना जो दिखाने लगे वो-
कई सूरतो में दिखी लालसायें॥
तटों को बहाने चली धार मानी
मिटी रेत के गांव की भावनाएँ॥
उडे आंधियो के सहारे -सहारे -
मिटाती रही जिंदगी वासनाएं॥
उसी राह को खोज ले पस्त ''राही''
जहाँ जीव की माफ़ होती खताएं॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल ''राही''
13.5.09
Loksangharsha: जहाँ जीव की माफ़ होती खताएं...
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