आलोक तोमर
रमेश पोखरियाल निशंक जब दिल्ली आते हैं, तो खामोशी से मेल मुलाकात करके निकल जाते हैं। न कोई खबर बनती है, न पत्रकारों का काफिला उनके आस-पास जमा होता है। निशंक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं और यह बताना जरूरी है कि भाजपा शासित प्रदेशों में वे शायद सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री हैं। पौडी गढवाल जिले के पिनानी गांव से निकलकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने तक का उनका सफर काफी चौंकाने वाला है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि मुख्यमंत्री की शपथ लेने तक निशंक राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार भी थे और उनके अखबार को उनके तमाम राजनीतिक संपर्कों के बावजूद कोई खास विज्ञापन आज तक नहीं मिले हैं।
33 साल की उम्र में वे पहली बार उत्तरप्रदेश विधानसभा के लिए कर्ण प्रयाग से चुने गए। 2002 में उन्होंने चुनाव क्षेत्र बदला और हार गए, पर जिद्दी इतने कि अगला चुनाव भी 2007 में उसी क्षेत्र से लडा और जीते। निशंक कवि भी हैं और इस नाते वे कवि प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी के सच्चे राजनीतिक वंशज कहे जा सकते हैं। राजनीति निशंक के लिए जीवन-मरण का प्रश्न नहीं है, पर उत्तराखंड की राजनीति में जब एक बेदाग छवि व कुटिलता से दूर रहने वाले नेता की जरूरत थी, तो निशंक को चुना गया। वरना, वे तो प्रतियोगिता में भी नहीं थे। अब बात 1989 की। तब निशंक संघ से जुडे थे। हिंदी के प्रसिद्ध कवि बाबा नागर्जुन उत्तराखंड में कटिमा घूमने गए थे। कटिमा हिंदी कालेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष वाचस्पती के घर बाबा ठहरे थे और कविताएं सुनाते रहते थे। बाबा नागार्जुन के शब्दों में-रमेश निशंक नामक एक लडका अकसर अपनी कविताएं सुनाने आया करता था। बाबा ने इस बालक को कविता-शिल्प के कई ज्ञान दिए। बाबा ही कहते थे कि यह लडका बहस बहुत करता था, पर सारी बहस साहित्यिक होती थी, राजनीति उसे नहीं आती। दुर्भाग्य से इस कवि शिष्य को मुख्यमंत्री बना देखने से पहले बाबा संसार से चले गए, पर निशंक कविताएं लिखते रहे और राजनीति भी करते रहे। कम लोग ही जानते हैं कि निशंक के कई कविता-कहानी संग्रह और उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और कई और प्रकाशित होने वाले हैं। उनकी एक कविता के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने, दूसरी के लिए डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने और तीसरी के लिए एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रपति भवन में उन्हें सम्मानित किया। ये देशभक्ति की कविताएं थीं।
कोलंबो विश्वविद्यालय उन्हें डॉक्टरेट दे चुका है। कई यूरोपीय विश्वविद्यालय सम्मानित कर चुके हैं और कई विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर पीएचडी हो चुकी है या हो रही है। देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में उनकी रचनाएं शामिल की गई हैं। रमेश पोखरियाल निशंक दरअसल साहित्यकार हैं और शायद यही वजह है कि राजनीति में उन्हें चालबाजियों की दुनिया के बावजूद बहुत हद तक निरापद माना जाता है। नए राज्य बनते हैं, तो संपत्तियों-परिसंपत्तियों के बंटवारे का झमेला होता ही है। उत्तराखंड भी अपवाद नहीं था। यहां तो कर्मचारियों का बंटवारा भी नहीं हो पाया था। निशंक मायावती से बात करने लखनऊ चले गए और सफलता यह मिली कि उत्तरप्रदेश से चार हजार पुलिसकर्मियों के पद उत्तराखंड को दे दिए गए। यानी, भारत में एक सपने देखने वाला कवि मुख्यमंत्री मौजूद है, जो विकास को कविता से जोड रहा है।
7.1.10
विकास को काव्य से जोडता एक मुख्यमंत्री
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4 comments:
Bahut Sahi Kaha Sir
Your Writup Fan
Dharmendra Tomar, Gwalior
hamare yahan aisa hee state minister gurmit singh kunar karte hain.narayan narayan
शंका नहीं कवित्व में, निशंक पाया नाम.
राज्यनीति के भाल पर,टीका ललित-ललाम.
टीका ललित-ललाम, यही आशा है इनसे.
काजल की कोठरी है, बचना कालेपन से.
कह साधक कवि प्रश्न उठे सीता-सतीत्व में.
निशंक तेरा नाम, संका नहीं कवित्व में.
joshi ji chamchgiri ki prakshtha par hain aap....narayan narayan
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