अमरीकी साम्राज्यवाद के लिए शांति बेकार की चीज है। शांति बोगस है। खोखली है। शांति का जाप करना बेकार है। शांति वार्ताएं व्यर्थ हैं। कब्जा सच्चा शांति झूठी। इस्राइल-अमरीकी विदेशनीति सारी दुनिया को एक ही संदेश संप्रेषित कर रही है शांति बेकार है। अमरीकी विदेशनीति की सैन्य बर्बरता की जितनी बड़ी सच्चाई मध्यपूर्व में सामने आयी है वह अन्यत्र पहले देखने को नहीं मिलती।
इस्राइल लगातार अपने विस्तारवादी इरादों के साथ फिलीस्तीन पर हमले करता रहा है, उनकी जमीन पर कब्जा किए हुए है। यही नीति है जिसे अमरीका ने इराक में लागू किया। इस्राइल ने फिलीस्तीन पर हमले करते हुए किसी की नहीं मानी अमरीका ने भी इराक पर हमला करते समय किसी की नहीं मानी। इस्राइल को फिलीस्तीन का राजनीतिक समाधान स्वीकार नहीं है अमरीका को भी इराक का राजनीतिक समाधान स्वीकार नहीं है। इस्राइल के लिए समस्त समझौते और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रस्ताव बेमानी हैं यही स्थिति अमरीका की भी है। इस्राइली अधिकारी शांति के नाम पर कभी कभार मिलते हैं, हाथ मिलाते हैं, बयान देते हैं किंतु व्यवहार में एकदम उलटा करते हैं और भी ज्यादा बर्बर हमले और अत्याचार करते हैं। यही रास्ता अमरीका ने भी अपना लिया है।
मध्यपूर्व का नीतिगत पथप्रदर्शक पहले अमरीका था आज इस्राइल है। पहले अमरीका के रास्ते पर इस्राइल चलता था आज इस्राइल के रास्ते पर अमरीका चल रहा है। इस्राइल अकेला देश है जिसने सारी दुनिया में शांति को निरर्थक बना दिया है। हर बार मीडिया बताता है कि 'शांतिवार्ता शुरू हुई' और तुरंत ही एक-दो दिन के बाद रिपोर्ट करता है 'शांतिवार्ता में गतिरोध' आ गया, यदि कभी 'शांतिवार्ता' सफल हो जाती है तो समझौता कभी लागू नहीं होता ,इसके विपरीत लगातार यही देखा गया है इस्राइल ने हमले तेज कर दिए, अवैध पुनर्वास बस्तियों के निर्माण का काम तेज कर दिया। शांति समझौते को लागू करने के पहले ही इस्राइल किसी न किसी बहाने हिंसाचार को हवा देकर शांति समझौते से पीछे हट जाता है। किसी भी छोटी सी घटना को बहाना बनाकर शांति समझौते का उल्लंघन करने लगता है। प्रत्येकबार शांतिवार्ता में शामिल सभी पक्ष यही वायदा करते हैं कि 'फिलीस्तीन राष्ट्र का निर्माण' उनका लक्ष्य है और व्यवहार में इसका वे एकसिरे से पालन नहीं करते। फिलीस्तीन राष्ट्र उनके लिए सिर्फ वाचिक प्रतिज्ञा होकर रह गया है।
इस्राइल-अमरीका की बुनियादी समस्या यह है ये दोनों फिलीस्तीन के यथार्थ को जानबूझकर समझना नहीं चाहते, फिलीस्तीन के राजनीतिक समीकरणों को समझना नहीं चाहते। इस्राइल-अमरीका जानबूझकर फिलीस्तीन समस्या को बरकरार रखना चाहते हैं। जिससे मध्यपूर्व में अशांति बनी रहे,सैन्य हस्तक्षेप के बहाने बने रहें। सारी दुनिया में आर्थिक संकट बना रहे। फिलीस्तीन संकट सिर्फ फिलीस्तीनियों का संकट नहीं है। आज यह सारी दुनिया के लिए समस्या बन चुका है। फिलीस्तीन का प्रपंच सिर्फ फिलीस्तीनियों की आत्मनिर्भरता और अर्थव्यवस्था पर ही दुष्प्रभाव नहीं डाल रहा बल्कि इसके कारण सारी दुनिया की अर्थव्यवस्था जर्जर हो गयी है। इस क्रम में सिर्फ सैन्य-मीडिया उद्योग के बल्ले-बल्ले हुए हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अमरीकी वर्चस्व में इजाफा हुआ है। फिलीस्तीनियों की अपने वतन से बेदखली सारी मानवता को परेशान किए हुए है। दुख की बात यह है कि फिलीस्तीनियों के दुख और त्रासदी की ओर से हमने धीरे-धीरे आंखें बंद कर ली हैं। वहां पर जो युद्ध चल रहा है उसके प्रति संवेदनहीन हो गए हैं।
बुद्धिजीवियों और सचेतन नागरिकों के मन से फिलीस्तीन की त्रासदी का लोप इस बात का भी संकेत है कि हम कितने बेगाने,खुदगर्ज और गुलाम हो गए हैं कि हमें अपने सिवा कुछ और दिखाई ही नहीं देता। अपने हितों के अलावा कुछ भी सोचने के लिए तैयार ही नहीं हैं। यह एक तरह से स्वयं की सचतेन आत्मा का लोप है। जब सचेतन आत्मा का लोप हो जाता है तो मानवता के ऊपर संकट का पहाड़ टूट पड़ता है। वर्चस्वशाली ताकतें इसी अवस्था का इंतजार करती हैं और अपने हमले तेज कर देती हैं। सचेतनता और अन्य के प्रति सामाजिक प्रतिबध्दता नागरिक होने की पहली शर्त है।
लेकिन फिलीस्तीनियों की मुश्किल तो यही है उन्हें न तो अपना देश मिला और न उसकी नागरिकता ही मिली,आज वे जहां रह रहे हैं ,कहने को वहां पर फिलीस्तीन सरकार है, उसका राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री है,मंत्रीमंडल है। निचले स्तर तक स्वायत्त प्रशासन है,चुनी गयी सरकार है। किंतु इसके ऊपर इस्रायल-अमरीका का पहरा बैठा हुआ है। फिलीस्तीन की जमीन पर अभी भी फिलीस्तीनियों की नहीं इस्राइलियों की चलती है। इस्राइल ने अभी तक फिलीस्तीन की जमीन को खाली नहीं किया है। जिन इलाकों में फिलीस्तीन प्रशासन है वहां पर भी इस्रायल का ही व्यवहार में वर्चस्व है। कभी भी इन इलाकों में घुसकर इस्राइल हमले कर जाता है। सारे इलाके की नाकेबंदी की हुई है। फिलीस्तीन में वही आ जा सकता है जिसे इस्राइल अनुमति दे। आर्थिक -राजनीतिक तौर पर फिलीस्तीन प्रशासन के पास कोई अधिकार नहीं हैं।
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