आपने मटर पनीर, कड़ाही पनीर, दम आलू, रोस्टेड चिकन, मटन बिरयानी, मुगलई चिकन, फिश फ्राई, आमलेट, पाव भाजी, चाऊमिन, मसाला डोसा खाया है। बिल्कुल खाया होगा, इसमें सोचने की क्या बात है। अगर आप परफेक्टली बेजीटेरियन हैं तो रोस्टेड चिकन, मटन बिरयान आदि-आदि नहीं खाये होंगे। हम जैसे भारतीय पेटुओं के लिए ये आइटम होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे, ठेल-ढकेल से लेकर घर तक एविलेबल हैं। पर आपने कभी शहर खाया है। अरे भाई शहद नहीं, शहर। क्या कहा नहीं। सवाल ही पैदा नहीं होता। आपकी प्लेट में रोजाना शहर का कोई न कोई टुकड़ा रहता है, आपने देखा नहीं होगा।
आइए एक प्लेट शहर खाने का तरीका बताते हैं। आप अधिकारी जी, क्लर्क जी, चपरासी जी, ठेकेदार जी, जनप्रतिनिधि जी, पुलिस जी हैं तो शहर खाने का पहला अधिकार आपका ही है। जन प्रतिनिधि जी के पास बहुत पैसा है। अधिकारी जी के पास बहुत पावर है और ठेकेदार जी के तो क्या कहने। मान लो सड़क बननी है है पांच मीटर चौड़ी तो अगर पौने पांच मीटर हो जाएगी तो आपको क्या फर्क पड़ेगा। सड़क में गिट्टी की मोटाई नौ इंच होनी है और यह तीन इंच रह जाए तो क्या फर्क पड़ेगा। अरे, नेताजी ने जीतने से पहले जो दारू पिलाई थी, टिकट पाने के लिए जो चंदा दिया, वोट खरीदने के लिए जो नोट दिये वो घर बेचकर तो लाएंगे नहीं। छह इंच गिट्टी में एक-डेढ़ इंच गिट्टी पर तो नेताजी का अधिकार है ही। अधिकारी जी पोस्टिंग के लिए जो जेब गरम करके आये वह शहर की गिट्टी, मिट्टी से ही कमा कर जाएंगे। बेचारे हर महीने चंदा भी तनख्वाह से कहां तक दें। जब चार कमायेंगे तो दो जेब में भी रखेंगे। भई इतना तो नैतिक अधिकार है। ठेकेदार बेचारा छुटभैये नेताओं की सुने, जनप्रतिनिधिजी की सुनें, अधिकारियों की सुने और अपने बच्चों का गला घोंट दे क्या। अरे, जब दुनिया को बांटेगा तो अपनों को डांटेगा क्या। क्लर्क जी से बड़ी पोस्ट दुनिया में कोई नहीं होती। ये तो गाड़ी का इंजन हैं। जब तक स्टार्ट नहीं होगा काम नहीं चलेगा। रही बात चपरासी जी की तो क्या बिना पहियों के गाड़ी चला लोगे।
अकेले सड़क क्या, विश्व बैंक से चंदा लाओ पहले बंदरबांट करो फिर थोड़ी लीपापोती कर दो। सरकारी जमीनों पर इमारतें खड़ी करवा दो। गंगा-यमुना की सफाई के नाम पर करोड़ों डकार लो। फैक्ट्रियों में मजदूर की मौत का सौदा कर लो। सेल्स टैक्स, इंकम टैक्स, वाटर टैक्स, हाउस टैक्स बचाओ। सड़क पर अतिक्रमण करो और से अनपी जायदात समझो। बिजली की चोरी करो और इंजीनियर साब को समझ लो। स्कूल की दुकान खोलो और विधायक, सांसद निधि का पैसा उसमें लगवाओ। नेताजी को खुश करो और अपनी जेब गरम करो। ट्रस्ट के नाम पर शिक्षा बेचो और धर्मार्थ के नाम पर स्वास्थ्य। ट्रस्ट बनाओ, धर्मार्थ का बोर्ड लगाओ और धड़ल्ले से मरीजों की जेब काटो। अपनी जेब से लगा रहे होते तो कमेटियों के झगड़े क्यों होते।
पुलिसजी की पोजीशन बहुत खराब है। एक पुरानी कहावत है, धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का। सिपाही जी दिनभर सड़क पर रास्ता दिखायें और कुछ कमायें नहीं। क्या धर्मशाला चलाने का ठेका इन्ही का है। भैये, ये तो गोबर हैं जहां गिरेंगे कुछ लेकर ही उठेंगे। आप पीड़ित हो या आरोपी, समझना तो पड़ेगा ही। आप सरकारी धन खाओ और समझ लो काम पूरा। आप घोटाला करो और सिपाहीजी, दरोगा जी को समझ लो। बाकी काम दरोगा जी का है, कुछ ऊपर देंगे और कुछ अपनी जेब में रखेंगे। आप खिलाते जाओ, वो खाते जाएँगे।
अब आयी शहर खाने की रेसिपी समझ में। अब देख लेना, शहर का कौन सा हिस्सा आपकी थाली में है। भाई पहले शहर खाओ और इतना खाओ कि प्रदेश और देश खाने की आदत पड़ जाए। आदमी पहले छोटा होता है फिर बड़ा काम करता है। देश खाओगे तो बड़े कहलाओगे।चुटकी
अपने एक नेताजी देश खा-खाकर बीमार पड़ गये। अस्पताल पहुंचे तो डाक्टर ने परहेज बता दिया। नेताजी को भूख लगी तो कुछ इस तरह गाने लगे।
मेरा खाना क्यों नहीं आया
सबकी थाली सज चुकी है
मेरा मन खबराया।
मेरा खाना क्यों नहीं आया।
थोड़ी देर में उनका खाना आ गया, थाली देखकर नेताजी चकरा गये, बोले-
आज हमारे दिल में अजब ये उलझन है
खाने बैठे खाना, सामने शलजम है।
नेताजी फिर बोल उठे-
हटादो, हटादो, हटादो ये शलजम की
मुझे नहीं चाहिये ये सूखी रोटी
हटादो, हटादो...।
खैर नेताजी स्वस्थ हो गये। घर पहुंचे तो चमचों ने पार्टी रखी। पार्टी में नेताजी ने झिककर खाया-पिया और लगे झूमने।
बड़े दिनों के बाद मिले हैं ये आलू
मटर-पनीर, मुर्ग मुसल्लम और दारू।
जब दारू अंदर जाएगी तो मुर्गा मजा देगा।
मुर्गा मजा देगा और आलू मजा देगा।
पंकुल
25.1.10
बेतुकीः आओ एक प्लेट शहर खायें
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment