पूरा हैद्राबाद जब तेलंगाना से आन्दोलित है,
और आन्दोलन की कमान राजनेताओं से छिटक कर
जब छात्रों के हाथ में आ चुकी है,
दसियों छात्र शहीद…
पुलिस-प्रशासन परेशान….
परीक्षायें बार-बार स्थगित…
एक सेमिस्टर भी रद्द….
आये दिन बन्द से जन-जीवन अस्त-व्यस्त….
उस नगर में
आइ.आइ.आइ.टी. जैसा संस्थान भी है,
जहाँ से उपद्रवी आन्दोलन कारियों को
खाली हाथ लौटना पङा!
यह एक आशा की किरण दिखती है!
आशा बनती है
कि निराश-हताश तन्त्र को ….
बुढाते-चुकते नेताओं को…
थकी परेशान जनता को….
फ़िर से जीवन की राह
दिखा सकेगा यह संस्थान!
गीता- चर्चा हो या जीवन-विद्या-अध्ययन सत्र,
योग-कक्षा हो या जीवन्त-उमंगित खेल के मैदान
प्रत्येक जन शोधरत-संकल्पित….
प्रत्येक जन सुन्यस्त और सुव्यस्त….
परस्पर विश्वास और
जीवन को मिलता एक निश्चित प्रयोजन
आशा जगाता है.
आशा बनती है
कि आजका राक्षसी सूचना-संचार-तन्त्र
मानवता के हित में न्यस्त होगा
कि इससे निकले छात्र पैकेज पर नहीं बिकेंगे
कि पैसा अपनी औकात वाली जगह पायेगा
कि रोबोट में और कुशलता भरने की बजाय…
प्रकृति-निर्मित सर्वोत्तम मशीन- मानव में ही
मानवता लाने में तन्त्र सहयोगी बनेगा.
आशा बनती है
कि मानव स्वयं अपनी कब्र खोदने से बाज आयेगा
कोपेन हेगन की तरह फ़िर फ़ेल नहीं होगा
और धरती का तापमान
और एक डिग्री नहीं बढ पायेगा….
बच जायेगा
इस सौर-मंडल का यह एकमात्र
जीवन्त-जागृत-ग्रह.- साधक उम्मेदसिंह बैद
22.1.10
एक शिक्षा-संस्थान ऐसा भी!
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