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24.1.10

साधक की काव्य यात्रा-२

ब्लाग-ब्लाग यात्रा बङी मजेदार रहती है. हर विषय के आलेख मिल जाते हैं. ट्टिपणी पढकर लेखक बात भी कर लेता है, प्रसन्नता दोहरी हो जाती है. प्रसन्नता भरा एक साक्षात्कार हैप्पी कर गया… उस पर बनी ट्टिपणी में आपको भी उस साक्षात्कार की झलक मिल ही सकती है.

हैप्पी हैं अविनाश सदा,अविनाश बन गये हैप्पी.
हैप्पी और अविनाश की जोङी, करे सभी को हैप्पी.
करे सभी को हैप्पी, चौदह क्या चौदह सौ!
नाम की बात नहीं, काम उत्तम सबकी सौं.
कह साधक ये कर सकते हैं, नाखुशियों का नाश.
‘अविनाश बनगये हैं हैप्पी, हैप्पी हैं सदा अविनाश.

हिन्दी युग्म का परिचय देता आलोक का गीत का गीत सुना. मजा आ गया. ब्लाग पर आजकल अच्छे गीत-कहानियाँ सुनने को मिल जाती है. काश मैं भी ऐसा कर पाता…. मेरे भी कई गीत मचल रहे हैं…. पढें-

सहज-सरल गंगा सा प्रवाहित, लगा आपका गीत.
आलोकित करता मानस को, बङा सुहाना गीत.
बङा सुहाना गीत, युग्म का परिचय देता.
हिन्दी के प्रति पाठक को जागृत कर देता.
यह साधक कृतज्ञ, पा गया अनायास ही यह पल.
गंगा सा पावन लगा आपका गीत सहज औ’ सरल.


लङकियाँ पतंग उङाती हैं- नुक्कङ पर, और अवसर यदि मक्कर-संक्रान्ति का हो, तो यह पतंगबाजी देखने कई जन इकट्ठा हो जायेंगे. ऐसा ही हुआ भी. उस भीङ में यह साधक भी है, देख लें यह ट्टीपणी-

लोहङी और पतंग का, उत्सवमय है मेल.
लङकी इसमें आ मिली, रोचक बन गया खेल.
बहुत ही रोचक खेल,काव्य बिम्बों से भरा है.
कल्पना काफ़ी गहरी है, और शिल्प खरा है.
यह साधक बन गया प्रशंसक इस कविता का.
उत्सवमय है मेल, लोहङी और पतंग का.

अभी समय की कमी, यह पढें, कुछ कहें, थोङी देर में फ़िर मिलते हैं---
साधक उम्मेदसिंह बैद sahiasha.wordpress.com

1 comment:

मनोज कुमार said...

अभी समय की कमी, यह पढें, कुछ कहें, थोङी देर में फ़िर मिलते हैं---
पढ़कर राहत मिली।