रंग लायी मेहनत
लोग कहते हैं ब्लॉग लिखने से आपको क्या मिलता है. पर मैंने जो पाया वो शायद उस पर आपको यकीन भी न हो. मैंने ५ जनवरी को १ ब्लॉग लिखी थी जिसका शीर्षक था हिमांशु की चाल जिसे आप लोगों ने पढ़ा भी होगा इसे मैंने आज दंतेवाडा जाकर कई लोगों को भी दिखाया इत्तेफाक यह था की आज दंतेवाडा में हिमांशु के समर्थन में समाज सेविका मेधा पाटकर पहुंची हुई थी. पर दंतेवाडा के जागरूक जनता उनका स्वागत सादे अण्डों से किया, लोगों का कहना हैं की हिमांशु जैसे स्वयं सेवी दंतेवाडा के आदिवासियों के नहीं बल्कि नक्सली समर्थक हैं. शायद ऐसा ही मैंने अपने ब्लॉग में लिखा है. इतना कुछ होने के बाद तो अब ऐसा लग रहा है की बस्तर के भोले भले लोग अब पत्रकारिता के सहयोग से समझदारी से काम ले रहे हैं. ख़बरदार हो जाओ हिमांशु और नक्सली समर्थकों बस्तर जाग गया है, अंडे खाना सबको अच्छा लगता है, पर अंडे खाने के २ तरीके भी होते हैं, आप फेंके हुए अंडे खाना चाहोगे की अछे पके हुए. हिमांशु अब भी सुधर जाओ, मौका है, हम बस्तरिया बड़े दिल वाले हैं, १७ साल से तुमने जो लूट मचाई है, हम उसे भुला देंगे बस आगे लूटने की कोशिश भी मत करना. और सरकार का काम सरकार पर छोड़ दो अपने बीवी बच्चों पर ध्यान दो आम आदमी की तरह जियो, ऐसा करके दंतेवाडा के नमक का हक अदा करो, मतलब बस्तर के विकास में बाधक मत बनो.
2 comments:
yahi to baat hai.narayan narayan
हिमांशु- मेधा जिक्र में, सही-गलत है कौन?
कलम आपकी भ्रमित है, सुनना बन्धु विशाल.
सुनना बन्धु विशाल, बहुत मुश्किल होता है.
समस्या को कह देने से क्या हल होता है?
कह साधक कवि सत्य खोजना सही स्वयं में.
सही-गलत है कौन हिमांशु- मेधा जिक्र में !
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