हिमांशु की चाल
दंतेवाडा, छत्तीसगढ़ का एक छोटा सा जिला पर नक्सलवाद गतिविधि में अव्वल नंबर. पर क्या वाकई दंतेवाडा के लोग सिर्फ नक्सलियों से ही परेशान हैं, मुझे तो नहीं लगता, और सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि उन सभी लोगों को ऐसा लगता है जो दंतेवाडा के आदिवासियों को धोखे से बचाना चाहते हैं. दंतेवाडा एक ऐसा जिला है जो प्राकृतिक संपदाओं से संपन्न है. अब गौर कीजिये यहाँ पर आदिवासियों के विकास कार्यों के नाम पर हो रहे घपले पर. दंतेवाडा के आदिवासियों को लूट रहे हैं हिमांशु कुमार जो की अपने आप को गांधियन बताते हैं. और साथ ही आदिवासियों का मसीहा. हिमांशु ने अपने बयानों में, भाषणों में कई बार कहा है की सरकार हिमांशु पर अलग अलग तरह से दबाव बने रही रही, पुलिस मुझे परेशां कर रही है. यह बात मेरे मन में खटक गयी की आखिर पुलिस और सरकार के पास क्या अब कोई काम बाकि नहीं रहा है की ऐसे गैर सरकारी कार्यकर्ताओं पर अपना ध्यान दे रही है. इस बात को लेकर मैंने अपनी तहकीकात शुरू की. मैं भी दंतेवाडा का रहने वाला हूँ, वहां के आदिवासियों का दर्द मुझसे भी देखा नहीं जाता. इसलिए भी मैंने सोचा की सरकार या फिर हिमांशु दोनों में से किसी एक के गलत कदम पर रोक तो लगानी होगी, पर रोक तो मैं नहीं लगा सकता बस कुछ बिन्दुओं पर सबका ध्यान आकर्षित कर सकता हूँ.
हिमांशु १७ साल से दंतेवाडा में हैं, और यहाँ पर आकर उन्होंने गैर सरकारी संगठनो के सहारे अपना कार्य शुरू किया जैसे आदिवासियों क हित में कार्य करना, कुछ महीनो पहले हिमांशु के करीब २०० से ज्यादा गैर सरकारी कार्यकर्ता थे, जो अब घटकर ५० के आस पास हो चुके हैं. वो इसलिए क्यूंकि हिमांशु के कार्यों पर अब सर्कार और पुलिस दोनों ध्यान दे रही है.
१.कुछ ऐसा हुआ हिमांशु के कई कार्यकर्ता या फिर उनके द्वारा बनाये गए कुछ बलि के बकरे उन आदिवासी महिलाओं से शादी करते थे जिनके पास काफी ज़मीन होती थी और आदिवासी महिलाओं की ज़मीन सिर्फ उनके पति या बच्चे ले सकते हैं, या फिर महिला के मृत्यु के बाद उनके पति.
२.उन ज़मीनों में कई तरह के पेड़ पौधे भी उगते हैं जैसे इमली, महुआ, छीन, जिनके फलों से शराब बने जाती है, और शराब मतलब पैसा.
http://www.youtube.com/watch?v=_FB2EoqwnQ4
इससे तो आप लोगों को समझ आ रहा होगा की आखिर हिमांशु १७ सालों से दंतेवाडा में क्या कर रहे हैं. जी हाँ आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा.
हिमांशु के पैर अब बस्तर की ओर बढ़ रहे हैं. सरकार और पुलिस ने जब इस पर लगाम लगाने के लिए उपाए निकाले की आदिवासियों के ज़मीन पर कुछ अछे काम किये जायें जैसे टाटा स्टील को प्लांट शुरू करने के लिए आमंत्रित करना. जैसे NMDC (बैलाडीला) अपना कार्य कर रहा है वैसे ही टाटा स्टील के द्वारा भी बस्तर का विकास हो. पर भला हिमांशु ओर उनके समर्थकों को यह कैसे मंज़ूर होगा, आखिर उनकी १७ साल की महनत जो पानी में मिल जाएगी. हिमांशु बार बार यही कहते हैं की सरकार आदिवासियों से उनकी ज़मीन हड़प रही है, पर हिमांशु जी यह भी तो ज़रा सोचिये की सरकार आदिवासियों से ज़मीन क्यूँ मांग रही है आखिर जब उनसे ज़मीन ली जाएगी तो उसके बदले उन्हें नौकरी के साथ साथ, उनके बच्चों के लिए स्कूल, अस्पताल ओर अन्य सुविधाएं भी तो देंगी, साडी दुनिया के पास ऐसे कई उद्योगों के उदाहरण हैं, जैसे दंतेवाडा में ही NMDC करती आ रही है, क्या वहां के आदिवासी NMDC के कारन अछि ज़िन्दगी नहीं बिता रहे हैं, अगर बैलाडीला का कोई बच्चा इंजिनियर या डॉक्टर बन रहा है तो सिर्फ NMDC के कारन वरना करते रहते वहां आदिवासी सिर्फ खेती ओर बीमार पड़ने पर यह भी पता नहीं होता की डॉक्टर किसे कहते हैं. और इसके हिमांशु बाहर के गैर सरकारी संगठन और कई पत्रकारों का भी साथ ले रहा है साथ ही भोले भाले आदिवासियों को भी भड़का रहे हैं. आदिवासियों को हिमांशु ने भड़काया है इसके कारण सरकार और पुलिस भी हिमांशु का कुछ कर नहीं पा रही है, क्यूंकि सरकार VINAYAK SEN की कहानी फिर नहीं दोहराना चाहती .पुलिस और सरकार अब हिमांशु पर कुछ पाबन्दी लगाकर उसे रोकने की कोशिश कर रही है. पर हिमांशु यहाँ भी रुकने वाले कहाँ है. सहारा ले रहे हैं फर्जी मुठभेड़ का आये दिन आरोप लगा रहे हैं की पुलिस वालों ने ग्रामीण की हत्या की पर हिमांशु इस बात की सफाई दे सकते हैं की क्या यह नहीं हो सकता की आदिवासी महिलाओं की ज़मीन हथियाने के लिए आपने ही ऐसे नरसंहार करवाए हैं? नाक्साली आतंक तो अभी शुरू हुआ बाधा है, बस्तर तो अभी छावनी बना है आप १७ सालों से क्या कर रहे हैं, पुलिस का दमन तो हमेशा मटमैला रहता है वोह और क्यों फसना चाहेगी? फर्जी मुठभेड़ की गुत्थी आपको बिंदु १ से समझ आ जाएगी.
http://www.youtube.com/watch?v=5I0toccL2Jk
कुछ दिनों पहले हिमांशु ने रायपुर में १ प्रेस वार्ता की जिसके अंतिम में मैंने हिमांशु से १ सवाल किया की "नक्सालियों के विरोधी और मुखबीरों को नक्सली छोड़ते नहीं आप अब तक जिंदा कैसे हैं" मुझे जवाब मिला "वो मुझे मरना नहीं चाहते" इसका मतलब हम क्या समझें? प्रेस वार्ता में उन्होंने कई बार यह भी कहा की मेरी नक्सलियों से बात भी होती, यह बात तो साफ़ है की हिमांशु को जन सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिया जा सकता है, पर VINAYAK SEN का इतिहास पुलिस भी नहीं भूली है, रायपुर में रोज़ कम कम से ३००-४०० बहरइ राज्य के गैर सरकारी कार्यकर्ताओं द्वारा आन्दोलन की VINAYAK सेन को रिहा करो, पर हिमांशु जैसे कार्यकर्ता उस समय कोई आन्दोलन क्यूँ नहीं करते जब विनोद कुमार चौबे जैसे पुलिस अफसर और जांबाज़ सिपाही को मौत के घाट उतार दिया जाता है.
http://www.youtube.com/watch?v=7zQ36mtdvkk
विपक्ष और आम जनता सरकार से नक्सली समस्या ख़त्म करने के लिए एक्शन में आने की मांग करती है, जब सरकार ऑपरेशन ग्रीन हंट जैसे एक्शन में आई है तो हिमांशु जैसे लोगों को अपने स्वार्थ्य को बचने का बहाना मिल गया है.
मैं बताना चाहता हूँ की हिमांशु जैसे चाँद लोगों के कारण आज दंतेवाडा जैसे कई पिछड़े इलाके विकास से काफी दूर हैं. आगे आप समझदार हैं.
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