(उपदेश सक्सेना)
बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर....यह कहावत खजूर के पेड़ को लेकर कही गयी थी, मगर अब इसे यूकेलिप्टस के लिए भी कहा जा सकता है. इस पेड़ ने विश्व के कई गरीब देशों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं मगर भारत में इसे बढ़ावा देने का प्रयास चल रहा है. यह पेड़ भू-जल को बर्बाद करने का सबसे बड़ा वाहक है, इसी अवगुण के चलते इसे पश्चिमी देशों में लगभग प्रतिबंधित कर दिया गया है.इस पेड़ को मानव स्वास्थ्य के लिए भी काफी खतरनाक बताया गया है. वैज्ञानिक शोधों में पता चला है कि कीटनाशक के रूप में इसका उपयोग करने पर यह मिटटी की उर्वरा शक्ति को बाँझ बना देता है. इन सब तथ्यों के बावजूद भारत में सरकारी और निजी क्षेत्र में इस पेड़ को काफी महत्व दिया जा रहा है. कारण बताया जा रहा है, कीचड-दलदल सुखाने का.
यूकेलिप्टस एक ऐसा पेड़ है, जिस पर कोई पक्षी भी अपना घोंसला नहीं बनाती. पुर्तगाल में १९६० में ३ लाख हैक्टेयर ज़मीन पर यूकेलिप्टस के पेड़ लगाए गए थे, कुछ ही वर्षों में वहां की ज़मीन का क्षरण शुरू हो गया, और वहां बाढ़ की विनाशलीला का क्रम शुरू हो गया. भारतीय ग्रंथों में इस वृक्ष को विष वृक्ष बताया गया है, इसकी जड़ें उखाड़ने को गौदान के बराबर माना गया है. आस्ट्रेलिया में माचिस की तीलियों के निर्माण और सस्ते कागज़ की लुगदी बनाने के लिए इस पेड़ को लगाने का विचार किया लेकिन वहां इसका व्यापक विरोध हुआ तो सरकार ने अपना इरादा बदल दिया था. भारत में इस पेड़ का इतिहास ज्ञात रूप में १८५० से मिलता है. उत्तरप्रदेश में इसे अंग्रेजों ने दलदल मिटाने के लिए लगाया था. बाद में १८८७ में कर्णाटक के तुमकुर में इसके बाग़ लगाये गए.इस पेड़ की औसत आयु चार सौ साल है.लगातार गिरते जा रहे भू-जल के बावजूद यूकेलिप्टस की बागवानी को बढ़ावा देना धरती के साथ अन्याय ही है. दूरगामी परिणामों को नज़रअंदाज कर लिए जाने वाले फैसले भविष्य की पीढ़ियों को नष्ट कर सकते हैं
19.3.10
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1 comment:
यूकेलिप्टस एक ऐसा पेड़ है, जिस पर कोई पक्षी भी अपना घोंसला नहीं बनाती.
सुन्दर प्रस्तुति
भारत के लोग ...? षायद उन्हें जानकारी नहीं होती। बेचारे अबोध। गाजरघास भी उनके हिस्से आ गया और युकिलिप्टस का सौन्दर्य भी उन्हेे लुभा रहा है!!
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