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27.3.10

उपन्यास 'प्रेम की भूतकथा'

उदयपुर। मुख्यधारा के साहित्य में ऐसी कृति नहीं है और अपने इसी विशिष्ट
ढंग के कारण यह सर्वथा नया उपन्यास है। रहस्य रोमांच की कथा का आधार लेकर
लिखे गए विभूति नारायण राय के सद्य प्रकाशित उपन्यास 'प्रेम की भूतकथा'
पर आयोजित एक गोष्ठी में प्रो. नवल किशोर ने कहा कि प्रेम कथा के आकर्षण
के अतिरिक्त उपन्यास में फ्रेंच क्रांति का संकेत साम्राज्यवाद-
उपनिवेशवाद के सार्थक विरोध की भूमिका बनाता है। जन संस्कृति मंच द्वारा
आयोजित इस गोष्ठी में प्रो. नवल किशोर ने कहा कि प्रेम कथा इस उपन्यास
में अपने काल संदर्भ में अनूठी बन जाती है और नायिका रिप्ले बीन की
असहायता-विवशता स्वयं में बड़ा संदेश है। उन्होंने उपन्यास में आए भूतों
के चरित्रों को मनुष्य चरित्र के अध्ययन में सहायक बताया। प्रो. नवल
किशोर ने तत्कालीन समय में मौजूद भेदभाव के चित्रण के लिए भी उपन्यास को
उल्लेखनीय माना जिसमें अंग्रेज कैदियों के साथ विशेष व्यवहार किया जाता
था।
इससे पहले शोधार्थी गजेन्द्र मीणा ने उपन्यास के कतिपय प्रमुख अंशों का
पाठ किया। चर्चा में समालोचक और कॉलेज शिक्षा क्षेत्रीय सहायक निदेशक डॉ.
माधव हाड़ा ने कहा कि यथार्थवाद हिन्दी लेखन पर हावी रहा है लेकिन गैर
यथार्थवादी शिल्प के कारण 'प्रेम की भूतकथा' महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है।
उन्होंने कहा कि उपन्यास इस दृष्टि से भी अध्ययन के योग्य है कि लेखक के
वैयक्तिक जीवन और अनुभवों का रचना में कैसा रूपान्तर हो सका है। तफ्तीश
की बारीकियों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि उपन्यास को विभूतिजी ने बेहद
रोचक बना दिया है। डॉ. हाड़ा ने कहा कि पंचतंत्र की भारतीय आख्यान परम्परा
यथार्थवाद के दबाव से लुप्त हो रही थी लेकिन 'प्रेम की भूतकथा' ने इसे
नयी वापसी दी है। राजस्थान विद्यापीठ के सह आचार्य डॉ. मलय पानेरी ने कहा
कि अंत तक रोचकता बनाए रखने के लिए उपन्यास पठनीयता की कसौटी पर खरा है।
प्रेम प्रसंग में नैतिकता के दबाव और उससे उपजे तनाव को डॉ. पानेरी ने
वैचारिक उद्वेलन का कारक बताया। आकाशवाणी के कार्यक्रम अधिकारी लक्ष्मण
व्यास ने वर्णन के आत्मीय अन्दाज का कारण उपन्यास की भाषा के खिलन्दड़ेपन
को बताते हुए कहा कि सैन्य जीवन के प्रभावी ब्यौरे उपन्यास का अनूठा पक्ष
है। सेना में पदक्रम की जटिलता और उससे उपजी विषमता को उपन्यास दर्शाता
है। उन्होंने कहा कि अनास्था रखने पर ही कोई भूत वाचक से बात करता है और
अंत में भूत का रोना पाठक को भी विचलित कर देता है। चर्चा में जसम के
राज्य सचिव हिमांशु पण्ड्या ने कहा कि 'हरिया हरक्यूलिस की हैरानी' से
मनोहर श्याम जोशी ने स्पष्ट कर दिया था कि रहस्य खुलना व्यर्थ है क्योंकि
अब दुनिया में 'सस्पेंस' जैसा तत्त्व बचा ही नहीं है। उन्होंने कहा कि अब
सवाल बदल गए हैं और 'क्यों' 'कैसे' से ज्यादा बड़ा सवाल बन कर आ गया है।
'प्रेम की भूतकथा' इसी बात को पुनः स्थापित करता है।
   'बनास' के संपादक डॉ. पल्लव ने कहा कि विक्टोरियन नैतिकता पर सवाल
खड़े करना पुरानी बात होने पर भी नयी है क्योंकि आज भी हमारे समाज में
प्रेम को लेकर भयावह कुण्ठा का वातावरण है। उन्होंने रोचकता की दृष्टि से
इसे बेजोड़ कथा रचना की संज्ञा देते हुए कहा कि भाषा की बहुविध छवियाँ
उपन्यासकार का कद बढ़ाने वाली हैं।
   गोष्ठी पर गंभीर चर्चा में पुनः हस्तक्षेप करते हुए प्रो. नवल किशोर
ने कहा कि 1909 की घटना पर लिखे इस उपन्यास में 1857 की छवियाँ होती तो
यह और अधिक अर्थवान होता। वहीं डॉ. हाड़ा ने इसे जासूसी उपन्यास मानने से
सर्वथा इनकार करते हुए कहा कि भूत और रहस्य को कथा युक्ति ही मानना
चाहिए। लक्ष्मण व्यास ने इसके अंत को एंटीक्लाइमेक्स का अभिनव उदाहरण
बताया। चर्चा में शोध छात्र नन्दलाल जोशी, राजेश शर्मा और ललित श्रीमाली
ने भी भागीदारी की। अंत में जसम के राज्य सचिव हिमांशु पण्ड्या ने कहा कि
कृति चर्चा के ऐसे आयोजन नियमित किये जाएंगे। गणेश लाल मीणा ने आभार
व्यक्त किया।


गजेन्द्र मीणा
जन संस्कृति मंच
403, बी-3, वैशाली अपार्टमेंट्स,
हिरण मगरी, सेक्टर-4, उदयपुर-313002



द्वारा माणिक

1 comment:

Akhilesh pal blog said...

gajendar meena jee ne achha likha hai