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31.3.10

बिन बोले बहुत कुछ कहते हैंऊंचे पहाड़ और छोटे

रास्तेपहाड़ों के बीच जब हम पहुंचते हैं तो 'जो कुछ हैं हम ही हैंÓ वाला अहं सर्पीले रास्तों वाली ढलान से फिसल कर कहां चला जाता है। हमें इसका अंदाज तक नहीं लग पाता। ऊंचे पहाड़ों के बीच सुरक्षित शिमला की खूबसूरती देखने के लिए देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को ये पहाड़ और इन पहाड़ों के बीच से होकर गुजरने वाले रास्ते कद, पद और मद की शून्यता का अहसास भी करा देते हैं।माल रोड पर दिन में कई चक्कर लगाने वालों को बहुत जल्द ही यह पता चल जाता है कि रास्तों का उतार-चढ़ाव सांस फुला देने वाला होता है कोई सैलानी कुली से ज्यादा मोल भाव नहीं करना चाहता। दुकानों से सामान खरीद कर जब मालदार लोग बाहर निकलते हैं तो खरीदे गए सामान पर लोगों की नजर पड़े ना पडं़े इन सैलानियों की नजर जरूर कुली को तलाश रही होती है कि सब कुछ उसके हवाले कर के खाली हाथ सफर करें। ये पहाड़ सैलानियों को जीवन दर्शन कराते हैं कि जितना ऊंचा उठने की सोचोगे उतना ज्यादा खाली हाथ होना पड़ेगा। बात जीवन की अंतिम यात्रा की करेंं तो गौरीशंकर से मिलन के लिए भी तो निर्भर होकर ही पहुंचा जा सकता है।जैसे अंतिम यात्रा पर जाते वक्त हम अपने साथ लाव-लश्कर नहीं ले जा पाते, उसी सत्य को ये पहाड़ भी बड़ी सहजता से समझाते हैं कि ज्यादा बोझ साथ रखोगे तो सांस फूल जाएगी, आसानी से सफर तय नहीं कर सकोगे। पहाड़ों की भाषा किसी को समझ न आए तो जिंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव की याद दिलाते, छोटी-छोटी सीढिय़ों को साथ लेकर चलने वाले संकरे रास्ते भी बताते चलते हैं कि इन पहाडों के सामने अपने पद और कद की अकड़ दिखाने की कोशिश भी मत करना, क्यों कि पहाड़ों केे आगे सिर्फ पहाड़ों की ही अकड़ चलती है। मुझे तो लगता है कि इन पहाड़ों को भी पता है कि उनकी यह अकड़ भी दर्शन काबिल तभी है जब अकड़बाज सैलानी यहां तक आ-जा सकें। इसीलिए इन पहाड़ों ने अपने से छोटे, तुच्छ समझे जाने वाले रास्तों को भी गले लगा रखा है। आसमान छूने को आतुर सी लगतीे चोंटियां और इनके बीच तंगहाल जिंदगी की तरह गुजर-बसर करते इन रास्तों की पहाड़ों से जुगलबंदी कृष्ण-सुदामा की मित्रता सी लगती है।सैलानी यह संदेश लेकर भी जाते ही होंगे कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में ऊंचा उठने वालों को सदैव याद रखना चाहिए कि जाने कितने छोटे-छोटे लोगों का सहयोग रहता है किसी एक को पहाड़ जैसी ऊंचाई तक पहुंचाने में। ये पहाड़ तो कुछ कहते नहीं लेकिन जो इन से मिलकर जाते हैं उन्हें तो ताउम्र याद रहता ही होगा कि झुककर चलने वाले ही ऊंचाई तक पहुंच पाते हैं और लंबे वक्त तक चोटी पर बने रहने के लिए अनुशासन, संयम और त्याग जरूरी होता है वरना तो एक जरा सी गलती पल भर में गहरी घाटियों के हवाले कर देती है। ऊपर आने का मौका तलाश रहे लोग तो वैसे भी घात लगाए बैठे रहते हैं कि शिखर पर शान से खड़े व्यक्ति से कोई चूक हो और उन्हें टांग खींचने का मौका मिल जाए।

5 comments:

sm said...

yes silence also speaks

SANJEEV RANA said...

bahut khoob likha rana ji
wo baat jo aksar sithil khade lambe ped ko dekhkar man me aati hain aapne bilkul sacchai ke saath bayan kar di hain.
blog jagat me aapka swagat hain.
isi tarah jaari rakhiyega

Unknown said...

bahut achha kirti rana bhai. bahut khoob. itni achhi tippani ke liye badhai.

SUNIL RANA said...

The Article Written By Mr. Kirti Rana Is the Truth Of life.Our Mountains Says "If Do You Want Peace, Satisfaction In Your Life,Learn t From Us".
"Kya Karoge Jod Ke Heere Moti,Aie Mere Dost Qafan main Jeb Nahin Hoti "
With Best Wishes
SUNIL RANA

SUNIL RANA said...

The Article Written By Mr. Kirti Rana Is the Truth Of life.Our Mountains Says "If Do You Want Peace, Satisfaction In Your Life,Learn t From Us".
"Kya Karoge Jod Ke Heere Moti,Mere Dost Qafan main Jeb Nahin Hoti "
With Best Wishes
SUNIL RANA