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29.11.10

aisa prachar to sahi bat nahi.

आजकल अधिकांश आलेखों में मैं एक बात बहुत ज्यादा देख रही हूँ कि राजनेताओं में जितनी आलोचना गाँधी परिवार ,सोनिया जी , राहुल जी की की जाती है इतनी अन्य किसी की नहीं .वे अगर रेल का सफ़र करें तो बुराई.वे अगर भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ कहें तो बुराई,वे अगर जनता से मिलें तो बुराई यहाँ तक कि बुराई की हद तो ये है कि एक समझदार अनुभवी लेखक जब अपने लेख में गाँधी परिवार के चरित्र पर ऊँगली उठाने पर आये तो उन्हें जब सोनिया जी के चरित्र पर कोई कलंक नहीं दिखा तो उन्होंने उन्हें बोफ़ोर्स मुद्दे से जोड़कर बदनाम करने की कोशिश की.इस तरह के जितने भी लेख आज इन ब्लोग्स पर लिखे जा रहे हैं इनके पीछे मात्र एक ही उद्देश्य दिखता है कि हमारा ब्लॉग या आलेख जल्द चर्चा पा जाये.इस तरह से ये आलेख जनता के हित में नहीं दीखते और ना ही ये स्वस्थ आलोचना कही जा सकती है.सोनिया जी ने आज जो कुछ भी हासिल किया है उसमे गाँधी परिवार की जनता में लोकप्रियता का तो महत्वपूर्ण स्थान है ही साथ ही उनकी मेहनत और जनता में उनकी भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान भी खास स्थान रखता है.इंदिरा  जी की दो पुत्र वधूं में सोनिया जी ने विदेशी होते हुए भी भारतीयता को अपनाया और उसके बाद भी वे यहाँ की चंद रूढ़िवादी सोच वालों की आलोचना का शिकार बनती रही हैं.जबकि वे देखा जाये तो दो दो बार भारत के प्रधान-मंत्री पद पर विराजमान हो सकती थी;-पहली बार तब जब राजीव जी की मृत्यु हुई और दूसरी बार तो उन्होंने सबके  सामने ही इस पद को त्याग दिया.इस भारतवर्ष में जहाँ एक नगरपालिका सदस्य भी अपने पद को छोड़ना नहीं चाहता ऐसे में इतने उच्च पद को इतनी शालीनता से अस्वीकार करने पर भोली जनता ने तो उन्हें सर पर चढ़ाया वहीँ बुद्धि के ठेकेदारों को इसमें  उनकी चाल ही नज़र आयी.आये दिन मनमोहन जी के नेतृत्व वाली सरकार में उनकी भूमिका को लेकर आलोचना की जाती है जबकि जिस गढ़बंधन की वे अध्यक्ष हैं क्या उस हैसियत  से वे ये भी नहीं जान सकती की सरकार का सम्बंधित मामले में क्या रूख है?
    इसी तरह राहुल जी को लेकर  रोज़ नए बबाल खड़े किये जाते हैं.जबकि वे आज जिस तरह से राजनीति की बारीकियों को सीख रहे हैं उसकी केवल प्रशंसा की जा सकती है.मीडिया द्वारा उनके प्रधानमंत्री बनने को लेकर रोज़ कयास लगाये जाते हैं और वे कयास रोज़ ख़त्म हो जाते हैं ये वे ही मीडिया वाले हैं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में "पाटिल" नाम सुनकर  शिवराज पाटिल की राष्ट्रपति बनने की सम्भावना व्यक्त कर दी थी जबकि वे "पाटिल "तो माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल थी  .
आज समझदार लेखकों को अपने लेख जो राजनीतिज्ञों से सम्बंधित हों में उनकी कार्यप्रणाली की त्रुटियों पर केन्द्रित करने चाहिए.आलोचना स्वस्थ होनी चाहिए.यदि कोई राजनेता अच्छा कार्य करता है तो तारीफ तो होनी ही चाहिए.सोनिया जी ने महिला आरक्षण के लिए जो जी तोड़ कोशिशें  की  हैं और राहुल जी ने जो महाराष्ट्र में राज ठाकरे की क्षेत्रवादी  राजनीति को जो करारा जवाब दिया है इसकी तारीफ तो होनी ही चाहिए.

2 comments:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आदरणीया, क्या आप जानती है कि उनकी सादगी के पीछे राष्ट्र का कितना पैसा लग रहा है??? रेल यात्रा या किसी दलित के घर जाने पर..
दो बार प्रधान मंत्री बन सकने के मुद्दे पर इतना ही कहना है कि इस देश को एक अच्छे, सच्चे और सक्षम राष्ट्रपति से हाथ धोना पडा है और एक कठपुतली को ला कर बिठा दिया गया है... आप ने समाचार पत्रों में भी देखा होगा जब यह नाम राष्ट्रपति के लिए उछला तो उसे एक क्रूर मज़ाक करार दिया गया था। आपने एक लम्बी बहस का मुद्दा उठाया है, सो आभार॥

Shikha Kaushik said...

bahut hi sakaratmak rajneeti ki or prerit karta aalekh ! badhi