मनुष्य का मनुष्य होना उसका नैतिक दायित्व है ! मनुष्य का मनुष्य रहना उसका सार्वभोमिक अधिकार है !मनुष्यता ही मनुष्य की जाति और ये ही उसका धर्म है !समाज अगर मनुष्यता का विभाजन उंच-नीच ,छूत-अछूत ,सवर्ण-दलित के आधार पर करता है तो यह प्रकृति के संविधान का उल्लंघन है !नेताओं का जातिगत आरक्षण का समर्थन केवल वोट बैंक की राजनीती है ,दलितों के उत्थान से उनका कुछ लेना देना नहीं !
अम्बेडकर बनने के लिए आरक्षण नहीं प्रतिभा की आवश्यकता होती है ! आरक्षण विकलांग मानसिकता का परिचायक है ! प्रतियोगितायों से बाहर रहने का नाम है आरक्षण ,और जो जाति प्रतियोगिताएं में प्रतिभागी नहीं होगी ,शनै-शनै उसकी प्रतिभा भी धूमिल हो जाएगी !आरक्षण भीख है और भीख में मिली कुर्सियों से आत्म-सम्मान नहीं मिलाता !आरक्षित व्यक्ति सदैव हीन भावना से ग्रसित होता है !
मैंने एक कहानी सुनी थी ,....एक चूहा किसी ऋषि के आश्रम के पास रहता था ,एक दिन वह ऋषि के समक्ष प्रस्तुत हुआ और ऋषि से अनुनय करने लगा -"हे महामहिम !में बहुत परेशान हूँ ,सदैव बिल्ली का डर लगा रहता है ,आपकी शरण में आया हूँ ,क्या आप मुझे बिल्ली होने का वरदान दे सकते हैं ?" अवश्य ! ऋषी ने कहा -" लेकिन क्या बिल्ली होने पर तुम संतुष्ट हो जायोगे ? " हाँ , चूहा बोला -"जब बिल्ली ही बन गया तो डर कैसा ? और ऋषी ने उसे बिल्ली होने का वरदान दे दिया ! लेकिन कुछ दिनों बाद वह चूहा बिल्ली बना फिर से ऋषी के पास आया और बोला -" हे ब्रह्म-ऋषी मेरा कुत्तों ने जीना दूभर कर दिया है , मुझे क्रपया करके कुत्ता बना दीजिये ,रोज की भाग-दौड़ से तो छुटकारा मिलेगा !"ऋषी मुस्कराए -"क्या कुत्ता बनने से संतुष्टि हो जायेगी ? हाँ गुरुवर, और ऋषी ने उसे कुत्ता होने का वरदान दे दिया ! कुछ दिनों के अंतराल के बाद कुत्ता बना चूहा पुनः ऋषी के समक्ष हाँफता हुआ उपस्थित हुआ तो ऋषी ने विस्मय से पूछा -" अब क्या परेशानी है ?"कुत्ता बना चूहा गिडगिडाते हुए बोला - " महामहिम ,शेर के डर से दिन रात बैचैन रहता हूँ ,मेरी विनती है कि आप मुझे शेर होने का वरदान दे ,फिर कोई डर नहीं रहेगा !"ऋषी
मुस्कराए -एवमस्तु और शेर बना चूहा धन्यवाद करके चला गया !........एक दिन ऋषी ध्यान में बैठे थे कि अचानक शेर की आवाज़ से उनका ध्यान टूटा ! वही शेर बना चूहा उनके सामने गिडगिडा रहा था -" हे मुनि , शिकारियों की गोली के डर से भूखा भटक रहा हूँ ,शिकार भी नहीं कर पाता क्योंकि शेर के वेष में मेरे अन्दर एक चूहे की मनो-व्रती हमेशा रहती है ! सच तो ये है कि शेर होते हुए भी भूल नहीं पा रहा कि मैं चूहा था ! मेरी आपसे अंतिम विनती है कि आप मुझे पुनः चूहा बना दें ! एक पूर्ण चूहा तो कहलाऊंगा !कुछ मौलिकता तो होगी !"
उधार के वरदानों से जीवन में पूर्णता नहीं आती ! जाति के आधार पर दिया गया आरक्षण भी ऐसा ही वरदान है ,जो अंततः अभिशाप बन जाता है , और विडम्बना देखिये कि आरक्षित व्यक्ति अभिशप्त होते हुए भी खुश है ! यह अज्ञानता है !आत्म-प्रवंचना है !दलितों को आरक्षण देना उन्हें रुग्ण बनाना है ! यह प्रकृति के संविधान का हनन है !गहरे अर्थों में आरक्षण का लाभ दलितों को कम और नेतायों को अधिक होता है !कुर्सी दोड़ की प्रतियोगिता में प्रतिभागी बन कर जो कुर्सी मिलेगी ,उस पर बैठकर बुद्ध कहलाओगे ! आरक्षण की उधार कुर्सियों पर बैठे तो बुद्धू ही कहलाओगे ! गंतव्य सार्थक तभी है ,जब तुम स्वयंम चले हो ,अन्यथा माउन्ट एवेरेस्ट पर तो हेलीकॉप्टर से भी जाया जा सकता है !
4 comments:
आज इस आरक्षण शब्द से धार्मिक , सम्प्रदायिक एवम जातिवाद की बू आने लगी है , मेरा मानना है की आज की तारीख में आरक्षण का जो स्वरूप तैयार किया गया है उससे समाज में सुख, समृधि एवम खुशहाली नहीं वरन सम्प्रदायिकता एवम जातिवाद को ही बढावा मिल रहा है ......
arthak post hetu abhaar.
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Apaka yah lekh ghor jatiwadi hai. isi risi muni ke nam par bholebhale Bhartiyo ko pahale Aryo ne gulam banay aaur ab tak raj kar rahe hai. yah khusi ki bat hai hai ki ab uani warchasv tuta hai.
Kay yah sahi nahi hai ki desh ke bahut se logo ko sadiyo se soshan kiya jata raha hai? Kya samast bhartiyo ke uththan ke bina bharat ka visask sambhav hai?
Duniya ke har desh me jatiya-nasliye ganana hoti hai.
zanil7 statesmanil
भैय्या कभी जानिल तो कभी स्टेट्समानिल जी
अगर आप हिन्दू हो तो कोई ना कोई गोत्र तो होगा ही, और अगर आप विधर्मी हो, फिर तो कोई बात ही नहीँ है। खैर, क्या आपने अम्बेडकर जी को पढ़ा है? क्षमा कीजिएगा, अम्बडेकरवादियोँ की बात मैँ नहीँ कर रहा हूँ। एक काम कीजिए भारत से हिन्दुओँ को ही मिटा दीजिए। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।आगे आप खुद समझदार हो। वैसे आरक्षण ने आपको क्या दिया है? कहने की आवश्यकता नहीँ है।
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