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28.2.11

कमला....(राज शिवम)

कांती और शांति देती है,वही कमला है।ये महालक्ष्मी का रुप है,श्री विष्णु शक्ति है।ये शिव शाक्त की विशेष शक्ति है।जीव हमेशा अशांत रहता है,कारण कुछ कुछ हो,उस अशांति से साधक को विशेष धन,देकर,धर्म,कर्म में रुचि बढ़ाकर,विशेष पुण्य की ओर ले जाती है।धन के बिना कोई साधना कठिन है।ये जो ऐश्वर्य सुख देती है,वह सुकर्म के द्वारा प्राप्त होता है।
शारीरीक पुष्टता,तेज,ओज,चमक के साथ,परम शांति प्रदान करती है।चिंता करो,अशांत इसलिए थे कि,मोह,अहंकार,माया,पद,ईर्ष्या से तुम एकाकार होते रहे।अब सारे बंधन काट लिए हो,अब आराम से समाधि लेते रहो।लोगों में शांति प्रदान करो,दूसरों को मदद करो,जीव का सहायक बनो।यही तुम्हें परम शांत स्वरुप का बोध करायेगा।तुम शांत हो,अचल हो,यही स्वभाव,वही स्वरुप प्रकट करा कर दिव्य दर्शन की ओर ले जाती है।

आखिर वसुंधरा का तोड़ नहीं निकाल पाया भाजपा हाईकमान

अपने आपको सर्वाधिक अनुशासित बता कर च्पार्टी विद द डिफ्रेंसज् का नारा बुलंद करने वाली भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आखिरकार पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आगे नतमस्तक हो गया। हालत ये हो गई कि वे राजस्थान विधानसभा में विपक्ष का नेता दुबारा बनने को तैयार नहीं थीं और बड़े नेताओं को उन्हें राजी करने के लिए काफी अनुनय-विनय करना पड़ा। इसे राजस्थान भाजपा में व्यक्ति के पार्टी से ऊपर होने की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कैसी विलक्षण स्थिति है कि एक साल पहले जिस वसुंधरा को विपक्ष का नेता पद छोडऩे के लिए हाईकमान मजबूर कर रहा था, वही उनका तोड़ नहीं निकाल पाने के कारण अंतत: पुन: उन्हीं को यह आसन ग्रहण करने की विनती करने को मजबूर हो गया। प्रदेश भाजपा के इतिहास में वर्षों तक यह बात रेखांकित की जाती रहेगी कि हटाने और दुबारा बनाने, दोनों मामलों में पार्टी को झुकना पड़ा। पार्टी के कोण से इसे थूक कर चाटने वाली हालत की उपमा दी जाए तो गलत नहीं होगा। चाटना क्या, निगलना तक पड़ा।
वस्तुत: राजस्थान में वसु मैडम की पार्टी विधायकों पर इतनी गहरी पकड़ है कि हाईकमान को एक साल पहले विपक्ष का नेता पद छुड़वाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाना पड़ा। असल बात तो ये कि उन्होंने पद छोड़ा ही न छोडऩे के अंदाज में। इसका नतीजा ये रहा कि उनके इस्तीफे के बाद किसी और को नेता नहीं बनाया जा सका और जब बनाया गया तो भी उन्हीं को, जबकि वे तैयार नहीं थीं। आखिर तक वे यही कहती रहीं कि यदि बनाना ही था तो फिर हटाया ही क्यों।
पार्टी हाईकमान वसुंधरा को फिर से विपक्ष नेता बनाने को यूं ही तैयार नहीं हुआ है। उन्हें कई बार परखा गया है। पार्टी ने जब अरुण चतुर्वेदी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, तब भी वे दबाव में नहीं आईं और पार्टी का एक बड़ा धड़ा अनुशासन की परवाह किए बिना वसुंधरा खेमे में ही बना रहा। ये उनकी ताकत का ही प्रमाण है कि राज्यसभा चुनाव में दौरान वे पार्टी की राह से अलग चलने वाले राम जेठमलानी को न केवल पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी बनवा लाईं, अपितु अपनी कूटनीतिक चालों से उन्हें जितवा भी दिया। ये वही जेठमलानी हैं, जिन्होंने भाजपाइयों के आदर्श वीर सावरकर की तुलना पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना से की, जिन्ना को इंच-इंच धर्मनिरपेक्ष तक करार दिया, पार्टी की मनाही के बाद इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस लड़ा, संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी नहीं देने की वकालत की और पार्टी के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ ही चुनाव मैदान में उतर गए। जेठमलानी को जितवा कर लाने से ही साफ हो गया था कि प्रदेश में दिखाने भर को अरुण चतुर्वेदी के पास पार्टी की फं्रैचाइजी है, मगर असली मालिक श्रीमती वसुंधरा ही हैं। चतुर्वेदी ने भी चालें कम नहीं चलीं, मगर विधायकों पर वसुंधरा के तिलिस्म को भंग नहीं कर पाए। वसुंधरा के आभा मंडल के आकर्षण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी में पद चाहने वाले भी चतुर्वेदी से छुप-छुप कर ही मिलते रहे कि कहीं वसुंधरा को पता न लग जाए, क्यों कि आने वाले दिनों में वसुंधरा के फिर से मजबूत होने के पूरे आसार हैं। आम भाजपाइयों में भी वसुंधरा के प्रति स्वीकारोक्ति ज्यादा है। प्रदेश में जहां भी जाती हैं, कार्यकर्ता और भाजपा मानसिकता के लोग उनके स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछा देते हैं।
हालांकि हाईकमान को वसुंधरा की ताकत का अंदाजा था, मगर संघ लॉबी के दबाव की वजह से वह सी एंड वाच की नीति बनाए हुए था। जब उसे यह पूरी तरह से समझ में आ गया कि वसुंधरा को दबाया जाना कत्तई संभव नहीं है और वीणा के तार ज्यादा खींचे तो वे टूट ही जाएंगे तो मजबूर हो कर उसे शरणागत होना पड़ा। जहां तक संघ का सवाल है, उसकी सोच ये रही कि वसुंधरा के पावरफुल रहते पार्टी का मौलिक चरित्र कायम रखना संभव नहीं है। संघ का ये भी मानना रहा कि वसुंधरा की कार्यशैली के कारण ही भाजपा की पार्टी विथ द डिफ्रंस की छवि समाप्त हुई। उन्होंने पार्टी की वर्षों से सेवा करने वालों को हाशिये पर खड़ा कर दिया, उन्हें खंडहर तक की संज्ञा देने लगीं, जिससे कर्मठ कार्यकर्ता का मनोबल टूट गया। यही वजह रही कि वह आखिरी क्षण तक इसी कोशिश में रहा कि वसुंधरा दुबारा विपक्ष का नेता न बनें, मगर आखिरकार झुक गया।
कुल मिला कर ताजा घटनाक्रम से तो यह पूरी तरह से स्थापित हो गया है के वे प्रदेश भाजपा में ऐसी क्षत्रप बन कर स्थापित हो चुकी हैं, जिसका पार्टी हाईकमान के पास कोई तोड़ नहीं है। उनकी टक्कर का एक भी ग्लेमरस नेता पार्टी में नहीं है, जो जननेता कहलाने योग्य हो। अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में केवल वे ही पार्टी की नैया पार कर सकती हैं।
-गिरधर तेजवानी

कहीं खुद की चाल भी न भूल जाएं बाबा रामदेव

एक कहावत है- कौआ चला हंस की चाल, खुद की चाल भी भूल गया। हालांकि यह पक्के तौर पर अभी से नहीं कहा जा सकता कि प्रख्यात योग गुरू बाबा रामदेव की भी वैसी ही हालत होगी, मगर इन दिनों वे जो चाल चल रहे हैं, उसमें अंदेशा इसी बात का ज्यादा है।
हालांकि हमारे लोकतांत्रिक देश में किसी भी विषय पर किसी को भी विचार रखने की आजादी है। इस लिहाज से बाबा रामदेव को भी पूरा अधिकार है। विशेष रूप से देशहित में काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना और उसके प्रति जनता में जागृति भी स्वागत योग्य है। इसी वजह से कुछ लोग तो बाबा में जयप्रकाश नारायण तक के दर्शन करने लगे हैं। हमारे अन्य आध्यात्मिक व धार्मिक गुरू भी राजनीति में शुचिता पर बोलते रहे हैं। मगर बाबा रामदेव जितने आक्रामक हो उठे हैं और देश के उद्धार के लिए खुल कर राजनीति में आने का आतुर हैं, उसमें उनको कितनी सफलता हासिल होगी, ये तो वक्त ही बताएगा, मगर योग गुरू के रूप में उन्होंने जो अंतरराष्ट्रीय ख्याति व प्रतिष्ठा अर्जित की है, उस पर आंच आती साफ दिखाई दे रही है। गुरुतुल्य कोई शख्स राजनीति का मार्गदर्शन करे तब तक तो उचित ही प्रतीत होता है, किंतु अगर वह स्वयं ही राजनीति में आना चाहता है तो फिर कितनी भी कोशिश करे, काजल की कोठरी में काला दाग लगना अवश्यंभावी है।
यह सर्वविदित ही है कि जब वे केवल योग की बात करते हैं तो उसमें कोई विवाद नहीं करता, लेकिन भगवा वस्त्रों के प्रति आम आदमी की श्रद्धा का नाजायज फायदा उठाते हुए राजनीतिक टीका-टिप्पणी करेंगे तो उन्हें भी वैसी ही टिप्पणियों का सामना करना होगा। ऐसा नहीं हो सकता कि केवल वे ही हमला करते रहेंगे, अन्य भी उन पर हमला बोलेंगे। इसमें फिर उनके अनुयाइयों को बुरा नहीं लगना चाहिए। स्वाभाविक सी बात है कि उन्हें हमले का विशेषाधिकार कैसे दिया जा सकता है?
हालांकि काले धन के बारे में बोलते हुए वे व्यवस्था पर ही चोट करते हैं, लेकिन गाहे-बगाहे नेहरू-गांधी परिवार को ही निशाना बना बैठते हैं। शनै: शनै: उनकी भाषा भी कटु होती जा रही है, जिसमें दंभ साफ नजर आता है, इसका नतीजा ये है कि अब कांग्रेस भी उन पर निशाना साधने लगी है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो बाबा रामदेव के ट्रस्ट, आश्रम और देशभर में फैली उनकी संपत्तियों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। हालांकि यह सही है कि ये संपत्तियां बाबा रामदेव के नाम पर अथवा निजी नहीं हैं, मगर चंद वर्षों में ही उनकी सालाना आमदनी 400 करोड़ रुपए तक पहुंचने का तथ्य चौंकाने वाला ही है। बताया तो ये भी जा रहा है कि कुछ टीवी चैनलों में भी बाबा की भागीदारी है। बाबा के पास स्कॉटलैंड में दो मिलियन पौंड की कीमत का एक टापू भी बताया जाता है, हालांकि उनका कहना है वह किसी दानदाता दंपत्ति ने उन्हें भेंट किया है। भले ही बाबा ने खुद के नाम पर एक भी पैसा नहीं किया हो, मगर इतनी अपार धन संपदा ईमानदारों की आमदनी से तो आई हुई नहीं मानी जा सकती। निश्चित रूप से इसमें काले धन का योगदान है। इस लिहाज से पूंजीवाद का विरोध करने वाले बाबा खुद भी परोक्ष रूप से पूंजीपति हो गए हैं। और इसी पूंजी के दम पर वे चुनाव लड़वाएंगे।
ऐसा प्रतीत होता है कि योग और स्वास्थ्य की प्रभावी शिक्षा के कारण करोड़ों लोगों के उनके अनुयायी बनने से बाबा भ्रम में पड़ गए हैं।   उन्हें ऐसा लगने लगा है कि आगामी चुनाव में जब वे अपने प्रत्याशी मैदान उतारेंगे तो वे सभी अनुयायी उनके मतदाता बन जाएंगे। योग के मामले में भले ही लोग राजनीतिक विचारधारा का परित्याग कर सहज भाव से उनके इर्द-गिर्द जमा हो रहे हैं, लेकिन जैसे ही वे राजनीति का चोला धारण करेंगे, लोगों का रवैया भी बदल जाएगा। आगे चल कर हिंदूवादी विचारधारा वाली भाजपा को भी उनसे परहेज रखने की नौबत आ सकती है, क्योंकि उनके अनुयाइयों में अधिसंख्य हिंदूवादी विचारधारा के लोग हैं, जो बाबा के आह्वान पर उनके साथ होते हैं तो सीधे-सीधे भाजपा को नुकसान होगा। कदाचित इसी वजह से 30 जनवरी को देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध अभियान के तहत निकाली गई जनचेतना रैलियों को भाजपा या आरएसएस ने खुल कर समर्थन नहीं दिया। बाबा रामदेव के प्रति व्यक्तिगत श्रद्धा रखने वाले लोग भले ही रैलियों में शामिल हुए हों, मगर चुनाव के वक्त वे सभी बाबा की ओर से खड़े किए गए प्रत्याशियों को ही वोट देंगे, इसमें तनिक संदेह ही है। इसकी एक वजह ये है कि वे योग गुरू के रूप में भले ही बाबा रामदेव को पूजते हों, मगर राजनीतिक रूप से उनकी प्रतिबद्धता भाजपा के साथ रही है।
जहां तक देश के मौजूदा राजनीतिक हालात का सवाल है, उसमें शुचिता, ईमानदारी व पारदर्शिता की बातें लगती तो रुचिकर हैं, मगर उससे कोई बड़ा बदलाव आ जाएगा, इस बात की संभावना कम ही है। ऐसा नहीं कि वे ऐसा प्रयास करने वाले पहले संत है, उनसे पहले करपात्रीजी महाराज और जयगुरुदेव ने भी अलख जगाने की पूरी कोशिश की, मगर उनका क्या हश्र हुआ, यह किसी ने छिपा हुआ नहीं है।  इसी प्रकार राजनीति में आने से पहले स्वामी चिन्मयानंद, रामविलास वेदांती, योगी आदित्यनाथ, साध्वी ऋतंभरा और सतपाल महाराज के प्रति कितनी आस्था थी, मगर अब उनमें लोगों की कितनी श्रद्धा है, यह भी सब जानते हैं। कहीं ऐसा न हो कि बाबा रामदेव भी न तो पूरे राजनीतिज्ञ हो पाएं और न ही योग गुरू जैसे ऊंचे आसन की गरिमा कायम रख पाएं।
 -गिरधर तेजवानी, अजमेर

'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10' का परिणाम

प्रिय साथियों
नमस्कार !!!
हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं।

'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। इस बार हमने अध्यात्मिक जगत से जुडी दो शख्सियतों- रजनीश 'ओशो' और 'संत मोरारी बापू' की आवाजें सुनवाई थीं और प्रतियोगियों से उनका नाम पूछा था।

ये दोनों संत अपना विशेष स्थान रखते हैं। अगर युवा पीढ़ी को इनमें रूचि नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन जीवन दर्शन से रूबरू होना कुछ गलत नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने ये दो क्लिप सुनवाई और आज इन दोनों महान गुरुओं का परिचय और उनके कुछ विचार आप के सामने रखे हैं।



''सी.एम.ऑडियो क्विज-10' का पूरा परिणाम
और
दोनों प्रबुद्ध व्यक्तित्व के बारे में जानने के लिए क्लिक करें।

मांतगी.....(राज शिवम)

 मद का जो नाश करती हैं,वही मांतगी है।सारे अच्छाई को ये मद नाश करता हैं।पद ,हो या बल आप बहुत प्रसिद्ध है,धनी है या भक्त अगर इसमें अहम जाये तो यह मद ही हुआ। 
यह मद जीव को बांधता हैं,तो उस बंधन से मुक्त करती है यह मांतगी।कितने पुण्य प्रभाव के बाद हमे मानव का जीवन मिला हैं।इस अमूल्य जीवन को हमे ऐसा करना चाहिए की मद का नशा इसे छू पाये इस मद से बचाती है मांतगी।मांतगी की साधना करने इस मद के नाश के साथ हमारी वाणी मधुर हो जाती हैं।ये संगीत की देवी है,मोहक आवाज,सुर का लय इनकी कृपा से प्राप्त हो जाता हैं।बिगड़े स्वर ठीक हो जाता है,वही बन्द स्वर भी खुल जाता है,जिवन में प्रेम का उदय होता है।हमारे सारे मदों का नाश कर ये हमें आगे बढ़ा देती हैं।

भ्रष्टाचार : बाबा ,नेता या फिर कोई और , हम्माम के अंदर सब नगें हैं




“” आज कल भारत में चारों ओर   भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद की जा रही  है , नेता , बाबा  सभी भ्रष्टाचार की  आलोचना में जुटे हैं , पर एक ख़ास बात ये है क़ि , हर कोई  दूसरे की आलोचना या उंगली उठाने में लगा है , किसी को भी अपने घर में नाम मात्र की  भी  खराबी या कमी , या यूँ कहें क़ि भ्रष्टाचार ना तो नज़र आ रहा है , ना ही भ्रष्टाचार की  गंध  का आभास हो रहा है .”"

आश्चर्य की  बात तो  ये है क़ि  नेताओं को तो आम तौर पर ये मान कर चला जाता है क़ि  उनका काम बिना भ्रष्टाचार के  चलता ही नहीं  है , और इस जमात  से ईमानदारी कीं  उम्मीद करना आज के वक़्त में बेमानी हो चुका है . सब जानते हैं क़ि आज चुनाव में कितना पैसा खर्च  होता है और कितना कागजों  पर दिखाया  जाता है , आखिर कहाँ  से आता है ये पैसा , कौन देता है और किस लिए देता है ?

चूँकि फिलहाल यह टिप्पणी ,  दिल्ली में हुई बाबा रामदेव की सभा के बारे में की कर रहा हू , इस लिए ज्यादा विस्तार से बात करना विस्यानातर  हो जायेगा , मैं भारत के सभी  लोगों का ध्यान इस देस के बाबाओं और संतों ( सब नहीं  बल्कि उन तथाकथित  लोगों की  ओर ), दिला  रहा हू जो आज सेक्स , क़त्ल और विभिन्न गंभीर आरोपों   में या तो जेल के अंदर  हैं या फिर जमानत पर हैं , कुछ तो जेल के अंदर  ही , मर गयें हैं .

जब तक ये तथाकथित बाबा पकडे  नहीं  गए , इन सभी को भगवान् की  तरह पूजा जाता रहा , और जब पकडे गए  तो वही भक्त जो उनकी पूजा करते नही अघाते थे , उन पर थूकने लगे .

यही हाल उन नेतोँ का भी हुआ , जो जेलों में बंद  किये  गए  और ज़मानत में है ., मगर नेताओं  और बाबाओं के एक बड़ा फर्क  यह है  की , किसी बाबा  के खिलाफ  आवाज़ उठाना या उसके बुरे कर्मों  का पर्दाफास  करना भगवान् ( तथाकथित ) का अपमान या हिन्दू धर्म का निरादर  घोषित  कर , पर्दाफास  करने वालों  कर  जीना दूभर  कर दिया जाता है . इस देस में कितने ही मामले  ऐसे हैं  जहाँ  , मठों  , मंदिरों में अधिकार करने के लिए एक ने दूसरे की  हत्या करवा दी .
बाबा   लोगों  या  धर्म  के नाम पर कुछ ( किसी  तरह का व्यापार )   करने वालों वालों  से ये उम्मीद की जाती है क़ि वो आम लोगों का भला करने के लिए काम करेंगे , ना क़ि धर्म के नाम पर भरी भरकम फीस वसूल करेंगे , जैसा की  आज कल किया जा रहा है . अच्छा है क़ि भ्रष्टाचार को मिटाया जाए , क्यूंकि भ्रष्टाचार देस को खोखला  करता जा रहा है , पर इसके लिए बहुत ज़रुरी  है क़ि ये काम सभी लोग पहले अपने अपने घरों  से शुरू करें , अब चाहें वो नेता हो या बाबा.

“”" मीठा मीठा गप्प  और कड़वा कड़वा थू  , करने से किसी देस में क्रांति नहीं होती , सिर्फ अराजकता होती है . शायद इन तथा  कथित  बाबाओं का उद्देश्य  भी है . “ताकि  आम जनता का  ध्यान इधर उधर उलझा कर अपना हित साधन जारी  रख सकें .”"”

” क्या किसी बाबा  ने देश की जनता को ये बताने 
 की  तनिक भी कोशिश की  है क़ि आज    अकूत पैसे के मालिक कैसे बन गए क़ि विदेशों में एक नहीं दर्जनों  आश्रम बनवाने  के लिए  जमीनें खरीदने  के लिए अकूत धन  कंहा से आ गया .. ये पैसा किस देस का हैं और इस  पैसे का असली मालिक   कौन है ?
** देस हित में सब  से पहल काम तो ये होना चाहिए  क़ि सारे भारत में ट्रस्टों के नाम  पर  धरम , जनसेवा , जनकल्याण का सब्जबाग  दिखा कर देश की भोली भली जनता को अंधेरे में रख कर , हजारो अरबों का गोलमाल करने वाले उन सभी लोगो  पर सरकार / कानून   को कहर बन कर टूट पड़ना  होगा चाहे , वो कोई बाबा हो , नेता हो या फिर पूंजीपति , तभी देस का कुछ भाल होने की उम्मीद  क़ि जा सकती है , वरना  हम्माम के अंदर  सभी नगें  हैं . ***

मेरी तड़त का मतलब!

मेरी तड़त का मतलब!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

मेरा शरीर मेरा है|
जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ!
हो कौन तुम-
मुझ पर लगाम लगाने वाले?
जब तुम नहीं हो मेरे
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?

पहले तुम तो होकर दिखाओ
समर्पित और वफादार,
मैं भी पतिव्रता, समर्पित
और प्राणप्रिय-
बनकर दिखाऊंगी|
अन्यथा-
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?

तुम्हारी ‘निरंकुश’ कामातुरता-
ही तो मुझे चंचल बनाती है|
मेरे काम को जगाती है, और
मुझे भी बराबरी का अहसास
दिलाने को तड़पाती है|
यदि समझ नहीं सकते-
मेरी तड़त का मतलब!
मुझसे अपनी होने की-
आशा करते क्यों हो?

अंदाज़े बयां बब्बर के

राष्ट्रकवि दिनकर ने कभी कहा था , "निरा श्वास का खेल कहो , यदि आग नहीं हो गाने में "।

एक बार कुछ उर्दू के जानकार मित्रों ने कहा कि अपना एक तक्खल्लुस रख लें । मैंने कहा कि रहा "बब्बर"।
लोगों ने कहा कि इस तक्खल्लुस के साथ गजलें कैसे लिखेंगे । मैंने कहा कि देखें ।

सामने आये आज फिर से सिकंदर कोई ,
देखना चाहता मैं एक नया मंजर कोई ।
नापाक होती जा रही इस मुल्क की बस्ती ,
फिर से लिख डाले सियासत का मुक्कद्दर कोई ।
ये जानवर सुनते नहीं आवाज कलम की ,
जाहिद उठाओ हाथ में खंजर कोई।
मौका दो तवारीख को लिखने की शहादत ,
तूफ़ान से टकरा दो समंदर कोई ।
बकरे की तरह आदमी हो रहा रोज क़त्ल
इन्सान में पैदा करो बब्बर कोई ।

याचना नहीं अब रण होगा-ब्रज की दुनिया

 

anna
मित्रों,भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारी लडाई अब निर्णायक मोड़ पर आ गयी है.३० जनवरी को रामलीला मैदान से जो शंखनाद किया गया था आज उसने उसी ऐतिहासिक मैदान पर विराट रूप ग्रहण कर लिया है.बाबा रामदेव व अन्ना हजारे के नेतृत्व में लाखों भारतवासियों ने इस ऐतिहासिक मैदान से भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अहिंसक जनयुद्ध छेड़ने का ऐलान कर दिया है.
मित्रों,रामायण में एक प्रसंग है कि राम सागर से मार्ग प्रदान करने की विनती करते हैं.लगातार तीन दिनों के अनुनय-विनय के बाद जब धीरोदात्त राम को कोई परिणाम निकलता नहीं दिखता तब वे ब्रह्मास्त्र का संधान करते हैं और तब समुद्र त्राहि-त्राहि करता हुआ राम के श्रीचरणों में आ गिरता है.
हमने भी पिछले ६४ सालों में बहुत अनुनय-विनय किया.विश्वास किया नेताओं के भाषणों पर कि भ्रष्टाचार को समूल नष्ट किया जाएगा.लेकिन आश्वासन आश्वासन बने रहे,घोषणाएं घोषणाएं बनी रहीं.हम ठगाते रहे और नेता-अफसर मालामाल होते रहे.एक विदेशी बैंकों में धन जमा करता रहा तो दूसरा देसी बैंकों के लौकरों में सोने की ईटें.अब याचना करते-करते हमारे हाथ थक गए हैं और वोटिंग मशीन का बटन दबाते-दबाते ऊंगलियाँ ऐंठने लगी हैं.
मित्रों,अब हम व्यवस्थापक नहीं बदलेंगे.हमें नहीं चाहिए एक के बाद एक भ्रष्टाचार के आगे मजबूर हो जानेवाले या इस महाभोज में शामिल हो जानेवाले प्रधानमंत्री.एक राजा और दो-चार कलमाड़ी को कुछ दिनों के लिए जेल भेज देने से भ्रष्टाचार नहीं मिटनेवाला,क्योंकि हमारा कानून और तंत्र सत्ता का मुखापेक्षी है.हमें भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसे कानून बनाने होंगे व ऐसा तंत्र (सिस्टम) स्थापित करना होगा जिसमें भ्रष्टाचारियों के खिलाफ स्वचालित तरीके से कार्रवाई हो.जनता को धोखा देने के ख्याल से केंद्र सरकार ने भी एक लोकपाल बिल बनाया है.इसके अंतर्गत एक बार फिर से सतर्कता आयोग की तरह ही लोकपाल को भी सिर्फ सिफारिशी अधिकार दिया गया है.अगर यही करना है तो फिर सी.वी.सी. से अलग किसी लोकपाल नामक संस्था बनाने की जरुरत ही क्या है?साथ ही सांसदों और मंत्रियों पर मुकदमा चलने के लिए भी इसमें लोकसभा अध्यक्ष और प्रधानमंत्री से अनुमति लेने का प्रावधान किया गया है.लेकिन जब गुनाहगार खुद प्रधानमंत्री या लोकसभा अध्यक्ष हो तब?तब यह सरकार प्रायोजित लोकपाल कुछ भी नहीं कर पाएगा सिवाय मुंह ताकते रहने के.
इसलिए देश की कुछ जानी-मानी  देशभक्त हस्तियों ने अलग से जन लोकपाल विधेयक तैयार किया है जिसमें व्यवस्था की गयी हैं कि ९ सदस्यीय लोकपाल संस्था के सदस्य जनता द्वारा सीधे चुने जाएँ और सीधे तौर पर जनता के प्रति ही जवाबदेह भी हों.देश जनता का है,संविधान और संसद जनता का है और जनता के लिए है.इसलिए इसमें कोई अनहोनी नहीं है यदि जनता ही सीधे लोकपालों का चुनाव करे.इस लोकपाल को दंडात्मक अधिकार होगा.वह भ्रष्टाचारियों पर मुकदमा चलाएगा.उनकी संपत्ति जब्त करेगा और सजा भी दिलवाएगा.उसके दायरे में सभी लोग होंगे,पूरा भारत होगा;भंगी से लेकर राष्ट्रपति तक हर कोई होगा.
लेकिन हमारी सरकार इस बिल को स्वीकार करने को तैयार नहीं है.वह देश को लाचार लोकपाल देकर काम निकाल लेना चाहती है.लेकिन जनता को अब किसी भी तरह का झुनझुना नहीं चाहिए.जनता अब किसी भी तरह के और किसी भी तरह से भुलावे में नहीं आनेवाली.उसे तो जो चाहिए सो चाहिए ही और चाहिए तो बस जन लोकपाल.
आज ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जनता-जनार्दन ने अपने विराट रूप का प्रदर्शन किया है,५ अप्रैल से युद्ध शुरू होगा और इस महाभारत में जनता अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण बनेंगे प्रखर गांधीवादी अन्ना हजारे.आगे-आगे अन्ना होंगे,उनके पीछे होंगे बाबा रामदेव,किरण बेदी,स्वामी अग्निवेश,अरविन्द केजरीवाल आदि और उनके पीछे होगा पूरा भारत;राम,मोहम्मद,ईसा और गोविन्द के सभी अनुयायी.इस भ्रष्ट सरकार में शामिल लोगों ने अगर आज की रैली का दूरदर्शन पर दूरदर्शन किया होगा तो वे अवश्य भारत के आकाश में हो रही सितारों की गुफ्तगू और उनके इशारों को समझ गए होंगे.
देश के नीति-निर्माता समझ गए होंगे कि देश की जनता क्या चाहती है.अब यह उन पर निर्भर है कि वे सहूलियत से जन लोकपाल की जनाकांक्षा को स्वीकार कर लेते हैं या ढीठ धृतराष्ट्र व दुर्योधन की तरह रणभूमि को आमंत्रण देते हैं.अगर इस बार रण सजाया गया तो सरकार की हार पूर्वनिश्चित है क्योंकि विराट जनता के आगे न तो कोई तोप काम करती है और न ही बदूकें.मिस्र,ट्यूनीशिया और लीबिया के हालात इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं.स्वतंत्रता का यह दूसरा संग्राम बड़ा भीषण होगा और दूरगामी प्रभावों वाला होगा.याचना का समय अब बीत चुका है.रामरुपी जनता ने सत्याग्रह ब्रह्मास्त्र का संधान कर लिया है.याचना नहीं अब रण होगा,संघर्ष बड़ा भीषण होगा.जय चंद्रशेखर आजाद,जब भारत.

अज़ब-गज़ब

शान्ति के लिए पत्थरबाज़ी...


बात जरूर अटपटी लगेगी, शान्ति के लिए पत्थर बाजी। लोग क्या नहीं करते हैं समाज में सौहार्द और शान्ति के लिए। जी हां! चंदौली के दो गाँव महुआरी और विशुपुर के लोग शान्ति की खातिर हर वर्ष नाग पंचमी के अवसर पर शान्ति की खातिर एक दुसरे पर पत्थर, कीचड़ फेकते हैं। पेश है इसी पर आधारित 26 नवम्बर 2010 के साप्ताहिक पत्रिका इंडिया न्यूज़ में छपी, एम अफसर खान सागर की ये रिपोर्ट.....

Shहीद चन्द्रsheखर आजाद के बलिदान दिवस पर हिन्दू मंच की विshaल रैली

नजफगढ़, रविवार 27 फरवरी 2011.
दुsमन की गोलियों का हम सामना करेंगे    आजाद ही रहे हैं आजाद ही रहेंगे
वह आजाद था.... उसने भारतमाता को अंग्रेजों से आजाद कराने का सपना देखा था।  अस्सी वर्S पहले 27 फरवरी 1931 के दिन चन्द्रsheखर आजाद अपने एक पुराने मित्र से मिलने जा रहे थे तभी अंग्रेजों की पुलिस पार्टी ने उन्हे घेर लिया। आजाद ने डटकर उनका मुकाबला किया और अन्त में जब उनके रिवाल्वर में अंतिम एक गोली बची थी वह चारों ओर से घिर चुके थे, आजाद ने प्रण लिया कि मैं किसी भी कीमत पर जिन्दा अग्रेंजो के हाथ नही आउंगा और उसी अंतिम गोली से स्वयं को समाप्त कर भारतमाता की आजादी के लिए Shहीद हो गये ...........।      उनके इस बलिदानी क्षणों को याद करते हुए हिन्दू मंच जिला नाहरगढ़ (नजफगढ़) के कार्यकर्ताओं ने एक विSHAL पद यात्रा के जरिए आमजनों में प्रायः लुप्त होती जा रही राsट्रभावना, राsट्रभक्ति, राsट्र संवेदना को जगाने का प्रयास किया। लगभग 6 से 7 सौ स्थानीय युवा हिन्दू मंच के झण्डे लिए जीप पर भव्य रूप से सजायी गई भारतमाता, Shहीद चन्द्रsheखर आजाद और महर्SHI दयानन्द की सवारी के आगे-पीछे देesh पर मर मिटने वाले Shहीदों की जय-जयकार करते हुए चल रहे थे। पद यात्रा बुध बाजार से आरम्भ होकर दिल्ली गेट, छावला बस अड्डा, ढांसा बस अड्डा, बहादुरगढ़ बस अड्डा, नांगलोई बस अड्डे से वापस दिल्ली गेट होते हुए हनुमान मन्दिर पर समाप्त हुई। जहां हिन्दू मंच दिल्ली प्रान्त के अध्यक्ष श्री जय भगवान जी ने Shहीदों की जीवनी पर प्रकाSH डालते हुए लोगों से आह्ावान करते हुए कहा हम सभी को देesh के बारे में सोचना चाहिए। पहले हमारा देesh है, हमारी मातृभूमि है। हमें हमारे देesh के Shहीदों से सीख लेनी चाहिए। किस प्रकार उनमें देeshभक्ति का जज्बा कूट-कूटकर भरा होता था। उसी जज्बे ने हमें आजादी दिलायी। आज गायब होते
जा रहे देeshभक्ति के जज्बे के कारण ही देesh में लूट पड़ गई है। नेता मन्त्री से लेकर सन्त्री तक सभी लूट में Sामिल हैं। उन्होने दुनियां के छोटे से देesh इजरायल के बारे में बताया कि वहां बड़ों से बच्चें तक सभी सैनिक है। वह किस प्रकार चारों तरफ से मुस्लिम देesh से घिरे होने के बावजूद अपनी रक्षा करते हुए उन पर भारी पड़ते हैं। उसके बाद प्रान्त मन्त्री सुsheल तौमर, पSिचमी विभाग के अध्यक्ष मुनshi लाल गुप्ता, विभागमन्त्री सुमेर सिंह ने भी युवाओं को सम्बोधित कर देesh पर Shहीद होने वाले Shहीदों से देeshभक्ति की प्ररेणा लेने का संदेSH दिया। अंत में विभाग अध्यक्ष मुनshi लाल गुप्ता ने हिन्दू मंच नाहरगढ़ जिला के अध्यक्ष राकेSH   जिला मन्त्री दीपक भारद्वाज, सह जिला मंत्री SHक्ति डबास, उपाध्यक्ष मयंक पाराSHर, कोSHAध्यक्ष डालचन्द अग्रवाल, जिला प्रभारी अजय रावता, सलाहकार दिगविजय, नगर प्रभारी सुरेन्द्र वत्स, प्रवक्ता राजपाल संगोई व सभी युवा कार्यकर्ताओं को धन्यवाद करते हुए भारतमाता की जय, SHहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले के उद्घGHOS के साथ पद यात्रा की समाप्ती की घोSणा की।   

27.2.11

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका फरवरी-2011 अंक(Updated)








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    कवितायन 








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