28.2.11
कमला....(राज शिवम)
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आखिर वसुंधरा का तोड़ नहीं निकाल पाया भाजपा हाईकमान
वस्तुत: राजस्थान में वसु मैडम की पार्टी विधायकों पर इतनी गहरी पकड़ है कि हाईकमान को एक साल पहले विपक्ष का नेता पद छुड़वाने के लिए एडी चोटी का जोर लगाना पड़ा। असल बात तो ये कि उन्होंने पद छोड़ा ही न छोडऩे के अंदाज में। इसका नतीजा ये रहा कि उनके इस्तीफे के बाद किसी और को नेता नहीं बनाया जा सका और जब बनाया गया तो भी उन्हीं को, जबकि वे तैयार नहीं थीं। आखिर तक वे यही कहती रहीं कि यदि बनाना ही था तो फिर हटाया ही क्यों।
पार्टी हाईकमान वसुंधरा को फिर से विपक्ष नेता बनाने को यूं ही तैयार नहीं हुआ है। उन्हें कई बार परखा गया है। पार्टी ने जब अरुण चतुर्वेदी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, तब भी वे दबाव में नहीं आईं और पार्टी का एक बड़ा धड़ा अनुशासन की परवाह किए बिना वसुंधरा खेमे में ही बना रहा। ये उनकी ताकत का ही प्रमाण है कि राज्यसभा चुनाव में दौरान वे पार्टी की राह से अलग चलने वाले राम जेठमलानी को न केवल पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी बनवा लाईं, अपितु अपनी कूटनीतिक चालों से उन्हें जितवा भी दिया। ये वही जेठमलानी हैं, जिन्होंने भाजपाइयों के आदर्श वीर सावरकर की तुलना पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना से की, जिन्ना को इंच-इंच धर्मनिरपेक्ष तक करार दिया, पार्टी की मनाही के बाद इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस लड़ा, संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी नहीं देने की वकालत की और पार्टी के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ ही चुनाव मैदान में उतर गए। जेठमलानी को जितवा कर लाने से ही साफ हो गया था कि प्रदेश में दिखाने भर को अरुण चतुर्वेदी के पास पार्टी की फं्रैचाइजी है, मगर असली मालिक श्रीमती वसुंधरा ही हैं। चतुर्वेदी ने भी चालें कम नहीं चलीं, मगर विधायकों पर वसुंधरा के तिलिस्म को भंग नहीं कर पाए। वसुंधरा के आभा मंडल के आकर्षण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी में पद चाहने वाले भी चतुर्वेदी से छुप-छुप कर ही मिलते रहे कि कहीं वसुंधरा को पता न लग जाए, क्यों कि आने वाले दिनों में वसुंधरा के फिर से मजबूत होने के पूरे आसार हैं। आम भाजपाइयों में भी वसुंधरा के प्रति स्वीकारोक्ति ज्यादा है। प्रदेश में जहां भी जाती हैं, कार्यकर्ता और भाजपा मानसिकता के लोग उनके स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछा देते हैं।
हालांकि हाईकमान को वसुंधरा की ताकत का अंदाजा था, मगर संघ लॉबी के दबाव की वजह से वह सी एंड वाच की नीति बनाए हुए था। जब उसे यह पूरी तरह से समझ में आ गया कि वसुंधरा को दबाया जाना कत्तई संभव नहीं है और वीणा के तार ज्यादा खींचे तो वे टूट ही जाएंगे तो मजबूर हो कर उसे शरणागत होना पड़ा। जहां तक संघ का सवाल है, उसकी सोच ये रही कि वसुंधरा के पावरफुल रहते पार्टी का मौलिक चरित्र कायम रखना संभव नहीं है। संघ का ये भी मानना रहा कि वसुंधरा की कार्यशैली के कारण ही भाजपा की पार्टी विथ द डिफ्रंस की छवि समाप्त हुई। उन्होंने पार्टी की वर्षों से सेवा करने वालों को हाशिये पर खड़ा कर दिया, उन्हें खंडहर तक की संज्ञा देने लगीं, जिससे कर्मठ कार्यकर्ता का मनोबल टूट गया। यही वजह रही कि वह आखिरी क्षण तक इसी कोशिश में रहा कि वसुंधरा दुबारा विपक्ष का नेता न बनें, मगर आखिरकार झुक गया।
कुल मिला कर ताजा घटनाक्रम से तो यह पूरी तरह से स्थापित हो गया है के वे प्रदेश भाजपा में ऐसी क्षत्रप बन कर स्थापित हो चुकी हैं, जिसका पार्टी हाईकमान के पास कोई तोड़ नहीं है। उनकी टक्कर का एक भी ग्लेमरस नेता पार्टी में नहीं है, जो जननेता कहलाने योग्य हो। अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में केवल वे ही पार्टी की नैया पार कर सकती हैं।
-गिरधर तेजवानी
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कहीं खुद की चाल भी न भूल जाएं बाबा रामदेव
हालांकि हमारे लोकतांत्रिक देश में किसी भी विषय पर किसी को भी विचार रखने की आजादी है। इस लिहाज से बाबा रामदेव को भी पूरा अधिकार है। विशेष रूप से देशहित में काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना और उसके प्रति जनता में जागृति भी स्वागत योग्य है। इसी वजह से कुछ लोग तो बाबा में जयप्रकाश नारायण तक के दर्शन करने लगे हैं। हमारे अन्य आध्यात्मिक व धार्मिक गुरू भी राजनीति में शुचिता पर बोलते रहे हैं। मगर बाबा रामदेव जितने आक्रामक हो उठे हैं और देश के उद्धार के लिए खुल कर राजनीति में आने का आतुर हैं, उसमें उनको कितनी सफलता हासिल होगी, ये तो वक्त ही बताएगा, मगर योग गुरू के रूप में उन्होंने जो अंतरराष्ट्रीय ख्याति व प्रतिष्ठा अर्जित की है, उस पर आंच आती साफ दिखाई दे रही है। गुरुतुल्य कोई शख्स राजनीति का मार्गदर्शन करे तब तक तो उचित ही प्रतीत होता है, किंतु अगर वह स्वयं ही राजनीति में आना चाहता है तो फिर कितनी भी कोशिश करे, काजल की कोठरी में काला दाग लगना अवश्यंभावी है।
यह सर्वविदित ही है कि जब वे केवल योग की बात करते हैं तो उसमें कोई विवाद नहीं करता, लेकिन भगवा वस्त्रों के प्रति आम आदमी की श्रद्धा का नाजायज फायदा उठाते हुए राजनीतिक टीका-टिप्पणी करेंगे तो उन्हें भी वैसी ही टिप्पणियों का सामना करना होगा। ऐसा नहीं हो सकता कि केवल वे ही हमला करते रहेंगे, अन्य भी उन पर हमला बोलेंगे। इसमें फिर उनके अनुयाइयों को बुरा नहीं लगना चाहिए। स्वाभाविक सी बात है कि उन्हें हमले का विशेषाधिकार कैसे दिया जा सकता है?
हालांकि काले धन के बारे में बोलते हुए वे व्यवस्था पर ही चोट करते हैं, लेकिन गाहे-बगाहे नेहरू-गांधी परिवार को ही निशाना बना बैठते हैं। शनै: शनै: उनकी भाषा भी कटु होती जा रही है, जिसमें दंभ साफ नजर आता है, इसका नतीजा ये है कि अब कांग्रेस भी उन पर निशाना साधने लगी है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो बाबा रामदेव के ट्रस्ट, आश्रम और देशभर में फैली उनकी संपत्तियों पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। हालांकि यह सही है कि ये संपत्तियां बाबा रामदेव के नाम पर अथवा निजी नहीं हैं, मगर चंद वर्षों में ही उनकी सालाना आमदनी 400 करोड़ रुपए तक पहुंचने का तथ्य चौंकाने वाला ही है। बताया तो ये भी जा रहा है कि कुछ टीवी चैनलों में भी बाबा की भागीदारी है। बाबा के पास स्कॉटलैंड में दो मिलियन पौंड की कीमत का एक टापू भी बताया जाता है, हालांकि उनका कहना है वह किसी दानदाता दंपत्ति ने उन्हें भेंट किया है। भले ही बाबा ने खुद के नाम पर एक भी पैसा नहीं किया हो, मगर इतनी अपार धन संपदा ईमानदारों की आमदनी से तो आई हुई नहीं मानी जा सकती। निश्चित रूप से इसमें काले धन का योगदान है। इस लिहाज से पूंजीवाद का विरोध करने वाले बाबा खुद भी परोक्ष रूप से पूंजीपति हो गए हैं। और इसी पूंजी के दम पर वे चुनाव लड़वाएंगे।
ऐसा प्रतीत होता है कि योग और स्वास्थ्य की प्रभावी शिक्षा के कारण करोड़ों लोगों के उनके अनुयायी बनने से बाबा भ्रम में पड़ गए हैं। उन्हें ऐसा लगने लगा है कि आगामी चुनाव में जब वे अपने प्रत्याशी मैदान उतारेंगे तो वे सभी अनुयायी उनके मतदाता बन जाएंगे। योग के मामले में भले ही लोग राजनीतिक विचारधारा का परित्याग कर सहज भाव से उनके इर्द-गिर्द जमा हो रहे हैं, लेकिन जैसे ही वे राजनीति का चोला धारण करेंगे, लोगों का रवैया भी बदल जाएगा। आगे चल कर हिंदूवादी विचारधारा वाली भाजपा को भी उनसे परहेज रखने की नौबत आ सकती है, क्योंकि उनके अनुयाइयों में अधिसंख्य हिंदूवादी विचारधारा के लोग हैं, जो बाबा के आह्वान पर उनके साथ होते हैं तो सीधे-सीधे भाजपा को नुकसान होगा। कदाचित इसी वजह से 30 जनवरी को देशभर में भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध अभियान के तहत निकाली गई जनचेतना रैलियों को भाजपा या आरएसएस ने खुल कर समर्थन नहीं दिया। बाबा रामदेव के प्रति व्यक्तिगत श्रद्धा रखने वाले लोग भले ही रैलियों में शामिल हुए हों, मगर चुनाव के वक्त वे सभी बाबा की ओर से खड़े किए गए प्रत्याशियों को ही वोट देंगे, इसमें तनिक संदेह ही है। इसकी एक वजह ये है कि वे योग गुरू के रूप में भले ही बाबा रामदेव को पूजते हों, मगर राजनीतिक रूप से उनकी प्रतिबद्धता भाजपा के साथ रही है।
जहां तक देश के मौजूदा राजनीतिक हालात का सवाल है, उसमें शुचिता, ईमानदारी व पारदर्शिता की बातें लगती तो रुचिकर हैं, मगर उससे कोई बड़ा बदलाव आ जाएगा, इस बात की संभावना कम ही है। ऐसा नहीं कि वे ऐसा प्रयास करने वाले पहले संत है, उनसे पहले करपात्रीजी महाराज और जयगुरुदेव ने भी अलख जगाने की पूरी कोशिश की, मगर उनका क्या हश्र हुआ, यह किसी ने छिपा हुआ नहीं है। इसी प्रकार राजनीति में आने से पहले स्वामी चिन्मयानंद, रामविलास वेदांती, योगी आदित्यनाथ, साध्वी ऋतंभरा और सतपाल महाराज के प्रति कितनी आस्था थी, मगर अब उनमें लोगों की कितनी श्रद्धा है, यह भी सब जानते हैं। कहीं ऐसा न हो कि बाबा रामदेव भी न तो पूरे राजनीतिज्ञ हो पाएं और न ही योग गुरू जैसे ऊंचे आसन की गरिमा कायम रख पाएं।
-गिरधर तेजवानी, अजमेर
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'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10' का परिणाम
प्रिय साथियों नमस्कार !!! हम आप सभी का क्रिएटिव मंच पर अभिनन्दन करते हैं। 'सी.एम.ऑडियो क्विज़- 10' आयोजन में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों और विजेताओं को बधाई। इस बार हमने अध्यात्मिक जगत से जुडी दो शख्सियतों- रजनीश 'ओशो' और 'संत मोरारी बापू' की आवाजें सुनवाई थीं और प्रतियोगियों से उनका नाम पूछा था। ये दोनों संत अपना विशेष स्थान रखते हैं। अगर युवा पीढ़ी को इनमें रूचि नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन जीवन दर्शन से रूबरू होना कुछ गलत नहीं है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमने ये दो क्लिप सुनवाई और आज इन दोनों महान गुरुओं का परिचय और उनके कुछ विचार आप के सामने रखे हैं। |
और
दोनों प्रबुद्ध व्यक्तित्व के बारे में जानने के लिए क्लिक करें।
Posted by प्रकाश गोविंद 0 comments
मांतगी.....(राज शिवम)
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भ्रष्टाचार : बाबा ,नेता या फिर कोई और , हम्माम के अंदर सब नगें हैं
” क्या किसी बाबा ने देश की जनता को ये बताने
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मेरी तड़त का मतलब!
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अंदाज़े बयां बब्बर के
राष्ट्रकवि दिनकर ने कभी कहा था , "निरा श्वास का खेल कहो , यदि आग नहीं हो गाने में "।
एक बार कुछ उर्दू के जानकार मित्रों ने कहा कि अपना एक तक्खल्लुस रख लें । मैंने कहा कि रहा "बब्बर"।
लोगों ने कहा कि इस तक्खल्लुस के साथ गजलें कैसे लिखेंगे । मैंने कहा कि देखें ।
सामने आये आज फिर से सिकंदर कोई ,
देखना चाहता मैं एक नया मंजर कोई ।
नापाक होती जा रही इस मुल्क की बस्ती ,
फिर से लिख डाले सियासत का मुक्कद्दर कोई ।
ये जानवर सुनते नहीं आवाज कलम की ,
जाहिद उठाओ हाथ में खंजर कोई।
मौका दो तवारीख को लिखने की शहादत ,
तूफ़ान से टकरा दो समंदर कोई ।
बकरे की तरह आदमी हो रहा रोज क़त्ल
इन्सान में पैदा करो बब्बर कोई ।
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याचना नहीं अब रण होगा-ब्रज की दुनिया
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 4 comments
अज़ब-गज़ब
शान्ति के लिए पत्थरबाज़ी...
बात जरूर अटपटी लगेगी, शान्ति के लिए पत्थर बाजी। लोग क्या नहीं करते हैं समाज में सौहार्द और शान्ति के लिए। जी हां! चंदौली के दो गाँव महुआरी और विशुपुर के लोग शान्ति की खातिर हर वर्ष नाग पंचमी के अवसर पर शान्ति की खातिर एक दुसरे पर पत्थर, कीचड़ फेकते हैं। पेश है इसी पर आधारित 26 नवम्बर 2010 के साप्ताहिक पत्रिका इंडिया न्यूज़ में छपी, एम अफसर खान सागर की ये रिपोर्ट.....
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Shहीद चन्द्रsheखर आजाद के बलिदान दिवस पर हिन्दू मंच की विshaल रैली
दुsमन की गोलियों का हम सामना करेंगे आजाद ही रहे हैं आजाद ही रहेंगे
वह आजाद था.... उसने भारतमाता को अंग्रेजों से आजाद कराने का सपना देखा था। अस्सी वर्S पहले 27 फरवरी 1931 के दिन चन्द्रsheखर आजाद अपने एक पुराने मित्र से मिलने जा रहे थे तभी अंग्रेजों की पुलिस पार्टी ने उन्हे घेर लिया। आजाद ने डटकर उनका मुकाबला किया और अन्त में जब उनके रिवाल्वर में अंतिम एक गोली बची थी वह चारों ओर से घिर चुके थे, आजाद ने प्रण लिया कि मैं किसी भी कीमत पर जिन्दा अग्रेंजो के हाथ नही आउंगा और उसी अंतिम गोली से स्वयं को समाप्त कर भारतमाता की आजादी के लिए Shहीद हो गये ...........। उनके इस बलिदानी क्षणों को याद करते हुए हिन्दू मंच जिला नाहरगढ़ (नजफगढ़) के कार्यकर्ताओं ने एक विSHAL पद यात्रा के जरिए आमजनों में प्रायः लुप्त होती जा रही राsट्रभावना, राsट्रभक्ति, राsट्र संवेदना को जगाने का प्रयास किया। लगभग 6 से 7 सौ स्थानीय युवा हिन्दू मंच के झण्डे लिए जीप पर भव्य रूप से सजायी गई भारतमाता, Shहीद चन्द्रsheखर आजाद और महर्SHI दयानन्द की सवारी के आगे-पीछे देesh पर मर मिटने वाले Shहीदों की जय-जयकार करते हुए चल रहे थे। पद यात्रा बुध बाजार से आरम्भ होकर दिल्ली गेट, छावला बस अड्डा, ढांसा बस अड्डा, बहादुरगढ़ बस अड्डा, नांगलोई बस अड्डे से वापस दिल्ली गेट होते हुए हनुमान मन्दिर पर समाप्त हुई। जहां हिन्दू मंच दिल्ली प्रान्त के अध्यक्ष श्री जय भगवान जी ने Shहीदों की जीवनी पर प्रकाSH डालते हुए लोगों से आह्ावान करते हुए कहा हम सभी को देesh के बारे में सोचना चाहिए। पहले हमारा देesh है, हमारी मातृभूमि है। हमें हमारे देesh के Shहीदों से सीख लेनी चाहिए। किस प्रकार उनमें देeshभक्ति का जज्बा कूट-कूटकर भरा होता था। उसी जज्बे ने हमें आजादी दिलायी। आज गायब होते
जा रहे देeshभक्ति के जज्बे के कारण ही देesh में लूट पड़ गई है। नेता मन्त्री से लेकर सन्त्री तक सभी लूट में Sामिल हैं। उन्होने दुनियां के छोटे से देesh इजरायल के बारे में बताया कि वहां बड़ों से बच्चें तक सभी सैनिक है। वह किस प्रकार चारों तरफ से मुस्लिम देesh से घिरे होने के बावजूद अपनी रक्षा करते हुए उन पर भारी पड़ते हैं। उसके बाद प्रान्त मन्त्री सुsheल तौमर, पSिचमी विभाग के अध्यक्ष मुनshi लाल गुप्ता, विभागमन्त्री सुमेर सिंह ने भी युवाओं को सम्बोधित कर देesh पर Shहीद होने वाले Shहीदों से देeshभक्ति की प्ररेणा लेने का संदेSH दिया। अंत में विभाग अध्यक्ष मुनshi लाल गुप्ता ने हिन्दू मंच नाहरगढ़ जिला के अध्यक्ष राकेSH जिला मन्त्री दीपक भारद्वाज, सह जिला मंत्री SHक्ति डबास, उपाध्यक्ष मयंक पाराSHर, कोSHAध्यक्ष डालचन्द अग्रवाल, जिला प्रभारी अजय रावता, सलाहकार दिगविजय, नगर प्रभारी सुरेन्द्र वत्स, प्रवक्ता राजपाल संगोई व सभी युवा कार्यकर्ताओं को धन्यवाद करते हुए भारतमाता की जय, SHहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले के उद्घGHOS के साथ पद यात्रा की समाप्ती की घोSणा की।
Posted by Suresh Trehan 1 comments
27.2.11
''अपनी माटी'' वेबपत्रिका फरवरी-2011 अंक(Updated)
बेबाक समीक्षा
- ''भारत क्या है? '':-अरविन्द पाण्डे
- उपन्यास ''छपाक-छपाक'' वर्तमान को उकेरता है
- ''छपाक-छपाक'' पर रेणु व्यास की बेबाकी
- हालिया पत्र पत्रिकाएँ
- यादें बाकी रह गई
- आखिर मिला सम्मान
- रपटपक्ष
- चित्तौड़ में संगोष्ठी:-'कितना जरूरी है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून'
- 'लोकतंत्र मज़बूती की ओर है'':डॉ. संजय कुमार के व्याख्यान उदयपुर में -नन्द किशोर शर्मा
- ' वर्तमान विकास का ढांचा मानव समाज के विनाश का कारण बन सकता है''-जगत एस.मेहता
- भोपाल में युवा संवाद द्वारा जश्ने फैज़ आयोजन
- 'रेवान्त' साहित्यिक पत्रिका का का लोकार्पण:-कौशल किशोर
- प्रोफेसर (डॉ.) निकोलस ग्रे उदयपुर में एक व्याख्यान के दौरान
- गांधी,भीमसेन जोशी और श्रीकांत देशपांडे को श्रृद्धांजली
- कवि शमशेर बहादुर सिंह के जन्मशती,कोटा:-नन्द भरद्वाज,जयपुर
- कुमार अजय के कविता संग्रह 'संजीवणी' का विमोचन,चुरू
- पद्मश्री पर डॉ. चंद्रप्रकाश देवल का अभूतपूर्व अभिनंदन:-दुलाराम सहारण
- उदयपुर में 'हिन्दी लघु पत्रकारिता: नयी चुनौतियाँ' विषय पर व्याख्यान
- हंगरी में विश्व हिन्दी दिवस समारोह:-प्रो.विजया सती
- 'अगर आज लोहिया होते '' विषयक व्याख्यान,उदयपुर में
- आलेख
- 'पत्रकारिता का वर्तमान दौर और महिलाएं':-रीता विश्वकर्मा
- जीर्णोद्धार की बाट जोहती अम्बेडकरनगर की धरोहर:-रीता विश्वकर्मा
- 'बाजार का समाजीकरण जरूरी है':-शिवराम,कोटा,राजस्थान
- डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद की प्रेरणा से आरम्भ भोजपुरी सिनेमा के 50 वर्ष पूरे-रीता विश्वकर्मा
- 'सीमा आजाद कब होगी आजाद ?'-कौशल किशोर,लखनऊ
- ब्लॉगचर्चा -''शब्दों का साम्य-स्वर और वैश्विक हिस्सेदारी''- अरविन्द श्रीवास्तव
- ख़ास व्यक्तित्व
- सार समाचार
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